सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की कविता- प्रेयसी, जिसमें उन्होंने अपने शब्द-शृंखला में 'अपल' शब्द का उपयोग किया, साहित्यिक दुनिया में एक महत्वपूर्ण स्थान बनाया है। कविता में निराला ने प्रेम और छोड़ की भावनाओं को व्यक्त किया है।
अपल शब्द का अर्थ है- पलशून्य, मांसहीन, मांस-रहित, निरामिष। इस शब्द का उपयोग कविता में प्रेमी और प्रेयसी के बीच के संबंधों को दर्शाने के लिए किया गया है। कविता में निराला ने कहा है-
"देख मैं रुक गयी, चल पद हुए अचल,
आप ही अपल दृष्टि, फैला समाष्टि में खिंच स्तब्ध मन हुआ।"
यहाँ कविता के इस भाग से हमें यह जानकर आनंद आता है कि निराला ने प्रेमी और प्रेयसी के बीच के संबंधों को व्यक्त करने के लिए 'अपल' शब्द का उपयोग किया है।
कविता में निराला ने कहा है-
"दिये नहीं प्राण जो इच्छा से दूसरे को,
इच्छा से प्राण वे दूसरे के हो गये!"
यहाँ कविता के इस भाग से हमें यह जानकर आनंद आता है कि निराला ने प्रेम और छोड़ की भावनाओं को व्यक्त करने के लिए कविता में उपयोग किया गया है।
कविता में निराला ने कहा है-
"मिली ज्योति छवि से तुम्हारी,
ज्योति-छवि मेरी, नीलिमा ज्यों शून्य से;
बँधकर मैं रह गयी, डूब गए प्राणों में
पल्लव-लता-भार वन-पुष्प-तरु-हार
कूजन-मधुर चल विश्व के दृश्य सब,-
सुन्दर गगन के भी रूप दर्शन सकल-
सूर्य-हीरकधरा प्रकृति नीलाम्बरा,
सन्देशवाहक बलाहक विदेश के।"
यहाँ कविता के इस भाग से हमें यह जानकर आनंद आता है कि निराला ने प्रेमी और प्रेयसी के बीच के संबंधों को व्यक्त करने के लिए कविता में उपयोग किया गया है।
कविता में निराला ने कहा है-
"बँधी हुई तुमसे ही, देखने लगी मैं फिर-
फिर प्रथम पृथ्वी को;
भाव बदला हुआ-"
यहाँ कविता के इस भाग से हमें यह जानकर आनंद आता है कि निराला ने प्रेम और छोड़ की भावनाओं को व्यक्त करने के लिए कविता में उपयोग किया गया है।
कविता में निराला ने कहा है-
"देखती हुई सहज
हो गयी मैं जड़ीभूत,
जगा देहज्ञान,
फिर याद गेह की हुई;
लज्जित
उठे चरण दूसरी ओर को
विमुख अपने से हुई!"
यहाँ कविता के इस भाग से हमें यह जानकर आनंद आता है कि निराला ने प्रेम और छोड़ की भावनाओं को व्यक्त करने के लिए कविता में उपयोग किया गया है।
कविता में निराला ने कहा है-
"चली चुपचाप,
मूक सन्ताप हृदय में,
पृथुल प्रणय-भार।
देखते निमेशहीन नयनों से तुम मुझे-
रखने को चिरकाल बाँधकर दृष्टि से-"
यहाँ कविता के इस भाग से हमें यह जानकर आनंद आता है कि निराला ने प्रेमी और प्रेयसी के बीच के संबंधों को व्यक्त करने के लिए कविता में उपयोग किया गया है।
कविता में निराला ने कहा है-
"सजल शिशिर-धौत पुष्प ज्यों प्रात में-
देखता है एकटक किरण-कुमारी को।–
पृथ्वी का प्यार, सर्वस्व उपहार देता-
नभ की निरुपमा को,
पलकों पर रख नयन-"
यहाँ कविता के इस भाग से हमें यह जानकर आनंद आता है कि निराला ने प्रेमी और प्रेयसी के बीच के संबंधों को व्यक्त करने के लिए कविता में उपयोग किया गया है।
कविता में निराला ने कहा है-
"आयी मैं द्वार पर सुन प्रिय कण्ठ-स्वर,
अश्रुत जो बजता रहा था झंकार भर
जीवन की वीणा में,
सुनती थी मैं जिसे।"
यहाँ कविता के इस भाग से हमें यह जानकर आनंद आता है कि निराला ने प्रेमी और प्रेयसी के बीच के संबंधों को व्यक्त करने के लिए कविता में उपयोग किया गया है।
कविता में निराला ने कहा है-
"पूर्ण मैं कर चुकी।
गर्वित, गरीयसी अपने में आज मैं।
रूप के द्वार पर
मोह की माधुरी-"
यहाँ कविता के इस भाग से हमें यह जानकर आनंद आता है कि निराला ने प्रेमी और प्रेयसी के बीच के संबंधों को व्यक्त करने के लिए कविता में उपयोग किया गया है।
यहाँ हमारे यूट्यूब चैनल पर आपके लिए यह लेख प्रस्तुत किया गया है, तो अगर आप इस लेख की प्रतिक्रिया करना चाहते हैं तो नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स में अपनी राय व्यक्त कर सकते हैं।
अपल शब्द का अर्थ है- पलशून्य, मांसहीन, मांस-रहित, निरामिष। इस शब्द का उपयोग कविता में प्रेमी और प्रेयसी के बीच के संबंधों को दर्शाने के लिए किया गया है। कविता में निराला ने कहा है-
"देख मैं रुक गयी, चल पद हुए अचल,
आप ही अपल दृष्टि, फैला समाष्टि में खिंच स्तब्ध मन हुआ।"
यहाँ कविता के इस भाग से हमें यह जानकर आनंद आता है कि निराला ने प्रेमी और प्रेयसी के बीच के संबंधों को व्यक्त करने के लिए 'अपल' शब्द का उपयोग किया है।
कविता में निराला ने कहा है-
"दिये नहीं प्राण जो इच्छा से दूसरे को,
इच्छा से प्राण वे दूसरे के हो गये!"
यहाँ कविता के इस भाग से हमें यह जानकर आनंद आता है कि निराला ने प्रेम और छोड़ की भावनाओं को व्यक्त करने के लिए कविता में उपयोग किया गया है।
कविता में निराला ने कहा है-
"मिली ज्योति छवि से तुम्हारी,
ज्योति-छवि मेरी, नीलिमा ज्यों शून्य से;
बँधकर मैं रह गयी, डूब गए प्राणों में
पल्लव-लता-भार वन-पुष्प-तरु-हार
कूजन-मधुर चल विश्व के दृश्य सब,-
सुन्दर गगन के भी रूप दर्शन सकल-
सूर्य-हीरकधरा प्रकृति नीलाम्बरा,
सन्देशवाहक बलाहक विदेश के।"
यहाँ कविता के इस भाग से हमें यह जानकर आनंद आता है कि निराला ने प्रेमी और प्रेयसी के बीच के संबंधों को व्यक्त करने के लिए कविता में उपयोग किया गया है।
कविता में निराला ने कहा है-
"बँधी हुई तुमसे ही, देखने लगी मैं फिर-
फिर प्रथम पृथ्वी को;
भाव बदला हुआ-"
यहाँ कविता के इस भाग से हमें यह जानकर आनंद आता है कि निराला ने प्रेम और छोड़ की भावनाओं को व्यक्त करने के लिए कविता में उपयोग किया गया है।
कविता में निराला ने कहा है-
"देखती हुई सहज
हो गयी मैं जड़ीभूत,
जगा देहज्ञान,
फिर याद गेह की हुई;
लज्जित
उठे चरण दूसरी ओर को
विमुख अपने से हुई!"
यहाँ कविता के इस भाग से हमें यह जानकर आनंद आता है कि निराला ने प्रेम और छोड़ की भावनाओं को व्यक्त करने के लिए कविता में उपयोग किया गया है।
कविता में निराला ने कहा है-
"चली चुपचाप,
मूक सन्ताप हृदय में,
पृथुल प्रणय-भार।
देखते निमेशहीन नयनों से तुम मुझे-
रखने को चिरकाल बाँधकर दृष्टि से-"
यहाँ कविता के इस भाग से हमें यह जानकर आनंद आता है कि निराला ने प्रेमी और प्रेयसी के बीच के संबंधों को व्यक्त करने के लिए कविता में उपयोग किया गया है।
कविता में निराला ने कहा है-
"सजल शिशिर-धौत पुष्प ज्यों प्रात में-
देखता है एकटक किरण-कुमारी को।–
पृथ्वी का प्यार, सर्वस्व उपहार देता-
नभ की निरुपमा को,
पलकों पर रख नयन-"
यहाँ कविता के इस भाग से हमें यह जानकर आनंद आता है कि निराला ने प्रेमी और प्रेयसी के बीच के संबंधों को व्यक्त करने के लिए कविता में उपयोग किया गया है।
कविता में निराला ने कहा है-
"आयी मैं द्वार पर सुन प्रिय कण्ठ-स्वर,
अश्रुत जो बजता रहा था झंकार भर
जीवन की वीणा में,
सुनती थी मैं जिसे।"
यहाँ कविता के इस भाग से हमें यह जानकर आनंद आता है कि निराला ने प्रेमी और प्रेयसी के बीच के संबंधों को व्यक्त करने के लिए कविता में उपयोग किया गया है।
कविता में निराला ने कहा है-
"पूर्ण मैं कर चुकी।
गर्वित, गरीयसी अपने में आज मैं।
रूप के द्वार पर
मोह की माधुरी-"
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