दावा-असम सरकार ने 6 साल सिर्फ 26 बांग्लादेशी वापस भेजे:विपक्ष का आरोप- यहां भारतीय ही बांग्लादेशी घोषित; नो मेंस लैंड में रह रहे 67

असम सरकार ने बांग्लादेशी घुसपैठियों को वापस भेजने का दावा करते हुए, लेकिन विपक्ष ने इस पर आरोप लगाया है कि असम में बसे 676 परिवारों के लोग स्वयं भारतीय हैं और उन्हें बांग्लादेशी बताकर वापस भेजने की प्रक्रिया में नाकाम हुई।

सरकार का दावा है कि ये लोग अवैध प्रवासी थे, लेकिन स्थानीय नागरिक कहते हैं कि वे भारतीय हैं, उनके पास 1951 की एनआरसी और 1971 से पहले के दस्तावेज मौजूद हैं।

बांग्लादेश जेल भेजने और फिर भारत लौटाने का दौरा बाकी कांग्रेस सरकार के समय हुआ था, जबकि भाजपा सरकार ने सिर्फ 6 साल में 26 लोगों को वापस भेजा।

असम में मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने 'पुशबैक पॉलिसी' के नाम पर कानून को दरकिनार कर रहे हैं, जिसमें उन्होंने कहा है कि 2017 से 2023 तक में केवल 26 लोगों को वापस भेजा।

विपक्षी दल ने इस पॉलिसी पर सवाल उठाया और आरोप लगाया है कि मुख्यमंत्री 'बांग्लादेशियों को वापस भेजो' अभियान में एक्सपोज हो गए।

असम से जुड़ी यह खबर भी पढ़ें, जिसमें बंगाल-असम के लोग अपनी पहचान और नागरिकता के बारे में बताते हैं।
 
नाकाम दावा 🤦‍♂️, सरकार को तो लगता है कि असम में बसे 676 परिवारों के लोग स्वयं भारतीय हैं और उन्हें बांग्लादेशी बताकर वापस भेजने की प्रक्रिया में नाकाम हुई। यह तो सरकार के खिलाफ एक बड़ा सवाल है, क्योंकि 1951 की एनआरसी और 1971 से पहले के दस्तावेज मौजूद हैं।

मुख्यमंत्री सरमा जी की 'पुशबैक पॉलिसी' 🤔 तो बिल्कुल नाकाम हुई, क्योंकि सरकार के द्वारा वापस भेजे गए लोगों की संख्या सिर्फ 26 है, जबकि कांग्रेस सरकार के समय लोगों की संख्या बिल्कुल अलग थी।

मैंने हमेशा कहा है कि असम में बसे लोगों को उनकी पहचान और नागरिकता के बारे में ध्यान देने की जरूरत है, लेकिन सरकार ने इस पर ध्यान नहीं दिया।
 
मैंने अभी भारतीय टीवी पर ऐसी एक खबर देखी, जहां असम सरकार ने कहा था कि उन्होंने बांग्लादेशी लोगों को वापस भेज दिया है, लेकिन विपक्ष ने उनकी बात से बचने की कोशिश कर रहे हैं। मुझे लगता है कि सरकार अपने खिलाफ आरोप लगाने की कोशिश कर रही है। मैंने भी अपने पिताजी को बताया था, जो बांग्लादेश से आये हैं, उन्हें 1971 में जब भारत ने पाकिस्तान को हराया था तब वे भारतीय थे। वे अपने दस्तावेज़ और पहचान पत्रों को लेकर हमारी सरकार के पास दिखा रहे हैं, लेकिन नहीं मिल रहे हैं। यह सच्चाई तो समझ में आती है, लेकिन सरकार द्वारा यह बताया जा रहा है कि वे बांग्लादेशी नहीं हैं और उन्हें वापस भेजना पड़ा। मुझे लगता है कि हमारी सरकार अपने खिलाफ आरोप लगाने की कोशिश कर रही है, लेकिन सच्चाई तो यही है।
 
बिल्कुल, यह बहुत दुखद है 🤕 कि असम सरकार बांग्लादेशी घुसपैठियों को वापस भेजने का दावा कर रही है, लेकिन वास्तविकता तो ज्यादा ही सुनने में आती है। ये लोग असम में स्वयं रहने वाले परिवारों के बीच एक भागीदारी की तरह जीवन जीते हैं, और उनके पास सभी दस्तावेज मौजूद हैं 📚

सरकार द्वारा लगाए गए 'पुशबैक पॉलिसी' से लोगों को बहुत निराशा हुई है 🤔। असम के 676 परिवारों के लोग भारतीय हैं, और उन्हें इस तरह से वापस भेजने की प्रक्रिया में नाकाम होना दुर्भाग्य है। यह सरकार को अपने निर्णयों पर विचार करने और लोगों की जरूरतों को समझने का मौका देता है 🤝
 
मुझे लगता है कि असम सरकार को इस मामले में बहुत चतुराई से काम करने की जरूरत है। लेकिन यह देखकर मुझे थोड़ा डर लग रहा है कि वे इतनी तेजी से बांग्लादेशी घुसपैठियों को वापस भेजने की कल्पना कर रहे हैं।

क्या वे जानते हैं कि यह लोग असम में 1951 की एनआरसी और 1971 से पहले के दस्तावेजों के साथ आए थे। यह तो बहुत बड़ा सवाल है। और उन्हें बताना कि वे स्वयं भारतीय हैं... लेकिन मुझे लगता है कि सरकार ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया।

और यही न केवल असम का मामला है, बल्कि पूरे देश में ऐसे कई मामले हो सकते हैं जहां लोगों की पहचान और नागरिकता के बारे में गलत तरीके से जानकारी दी जा रही है।
 
बस, ये तो बहुत अजीब है 🤔। सरकार दावा करती है कि 676 परिवारों के लोग अवैध प्रवासी थे, लेकिन फिर भी उन्हें वापस भेजने में इतना समय लगा। यह तो कोई बड़ा से बड़ा मुद्दा नहीं है, बस ऐसे लोगों को वापस भेजने की प्रक्रिया में सुधार करना चाहिए।

मुझे लगता है कि सरकार को यह समझने की जरूरत है कि नागरिकता और पहचान कुछ और हैं जिन्हें नहीं बदला जा सकता। ये लोग 1951 की एनआरसी और 1971 से पहले के दस्तावेज मौजूद हैं, तो उन्हें वापस भेजने के लिए क्या सबूत हैं?

मुख्यमंत्री ने कानून को दरकिनार कर रहे हैं, जिसमें उन्होंने कहा है कि 2017 से 2023 तक में केवल 26 लोगों को वापस भेजा। यह तो एक बड़ा झूठ है, क्या सरकार दावा नहीं करती कि ये लोग अवैध प्रवासी थे?

इस मामले में मुझे लगता है कि सरकार और विपक्षी दल दोनों को एक साथ मिलकर बात करनी चाहिए। उन्हें यह समझने की जरूरत है कि नागरिकता और पहचान कुछ ऐसी चीजें हैं जिन्हें नहीं बदला जा सकता।
 
मुझे तो ये जानकर गहरी दुख हुआ 🤕, असम के इन परिवारों की जिंदगी से जुड़ी सभी कहानियां निराशाजनक हैं । जब तक उन्हें अपनी पहचान बताने का मौका नहीं मिला तो उनकी बातें सुननी नहीं चाहिए थीं। यह भी सच है कि 6 साल में केवल 26 लोगों को वापस भेजना देखकर लगता है कि कुछ गलत चल रहा है। पुलिस ने उन्हें वापस भेजने की प्रक्रिया में इतनी चूक कैसे कर सकती? यह तो एक बड़ी नाकामी है ।
 
बिल्कुल सही है कि हम सब ब्रिटिश शासन के समय से ही भारतीय हैं और जिस प्रणाली के तहत 1951 की एनआरसी बनाई गई थी, उसमें हमारा नाम शामिल होना चाहिए।

इन लोगों को बांग्लादेशी बताकर वापस भेजने की क्या समझ है? ये लोग सिर्फ अपनी अस्थायित्व की समस्या को दिखाते हुए नहीं तो, हमारे इतिहास और पहचान को भी दिखाते हैं।

हमें इस प्रक्रिया में धैर्य रखना चाहिए और समझना चाहिए कि यह एक लंबी और जटिल प्रक्रिया है। हमें अपने नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करनी चाहिए, भले ही उनकी कहानियाँ जटिल हों।

क्या हम बिना सोचने वाले लोग थे? क्या हमने कभी सोचा कि ये लोग हमारा हिस्सा हैं?
 
बस बात करो, असम में बांग्लादेशी घुसपैठियों को वापस भेजने की बात तो देर से हुई, लेकिन लगता है कि सरकार को यह पता चल गया है कि 676 परिवार के लोग पूरी तरह से भारतीय हैं और उन्हें वापस भेजने की कोशिश में नाकाम होने का दौरा तय कर दिया है।
 
मेरा सोचता है कि असम सरकार को वास्तव में बांग्लादेशी घुसपैठियों को वापस भेजने की जरूरत नहीं है। ये लोग असम में 50 साल से रहते आ रहे हैं और उनके पास सब कुछ है जो नागरिकता का दर्जा होने का दावा करने वालों के पास भी होता है।

सरकार का दावा अवैध प्रवासी है, लेकिन मैं सोचता हूँ कि यह एक राजनीतिक मुद्दा हो सकता है जिस पर असम सरकार को ध्यान नहीं देना चाहिए।

पुशबैक पॉलिसी बहुत ही अनुपयोगी है, इसे बदलना चाहिए और नई नीति बनानी चाहिए जिसमें सभी लोगों की सुरक्षा और पहचान को ध्यान में रखा जाए।
 
अस्सम में तो ऐसे ही कई मामले हैं जहां सरकार दावा करती है कि कोई व्यक्ति अवैध रूप से आया है, लेकिन वास्तविकता तो बिल्कुल अलग है। मुझे लगता है कि यह 'पुशबैक पॉलिसी' अस्सम में एक बड़ा भ्रष्टाचार का मामला है। 676 परिवारों को वापस भेजने से पहले उन्हें जांच लेने की जरूरत थी, लेकिन सरकार ने तुरंत ही उन्हें बांग्लादेश भेज दिया।

मुझे लगता है कि अस्सम में सरकार को अपने नागरिकों के अधिकारों और सुरक्षा को लेकर ध्यान देने की जरूरत है। अगर वास्तव में कोई अवैध प्रवासी है, तो उन्हें जांच लेनी चाहिए, लेकिन सरकार ने ऐसा नहीं किया। इस तरह की गलतियाँ होने से अस्सम के नागरिकों को और भी अधिक परेशानी होगी।

किसी भी देश में अपने नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करनी चाहिए, इसलिए सरकार को इस मामले पर ध्यान देने की जरूरत है। हमें ऐसी सरकारों से बातचीत करनी चाहिए जो अपने नागरिकों की रक्षा करती हैं।
 
मुझे ये घटना बहुत प्रभावित कर रही है 🤕, असम में ऐसे परिवार तो बस गए हैं जिनके पास भी 1951 की एनआरसी और 1971 से पहले के दस्तावेज़ हैं। लेकिन फिर भी सरकार दावा कर रही है कि वे अवैध प्रवासी थे। यह तो बहुत अजीब है 🤔। मुझे लगता है कि मुख्यमंत्री ने इस समस्या पर ध्यान नहीं रखा है।
 
😕 ये तो बहुत दुखद है असम में ऐसे लोगों के साथ दुर्व्यवहार किया जा रहा है। 676 परिवारों के लोग स्वयं भारतीय हैं, लेकिन सरकार उन्हें बांग्लादेशी बताकर वापस भेजने की कोशिश कर रही है। यह तो बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि मुख्यमंत्री सरमा ने इस पॉलिसी पर सवाल उठाने से पहले ही 'पुशबैक पॉलिसी' के नाम पर कानून को दरकिनार कर लिया है। 🤔
 
मेरा मन थोड़ा घबराया 😕, असम सरकार ने क्या बोल दिया? यह तो ऐसा जैसे किसी फिल्म में दिखाई देता। 676 परिवारों के लोग स्वयं भारतीय हैं और उन्हें वापस भेजने की प्रक्रिया में नाकाम हुई। यह तो सरकार के खिलाफ एक बड़ा आरोप है। मुझे लगता है कि मुख्यमंत्री 'पुशबैक पॉलिसी' में फंस गए हैं और उनकी संख्या 26 लोगों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए थोड़ी कम हो गई है। यह तो एक बड़ा विवाद है और सरकार को इस पर जवाब देना चाहिए।
 
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