वोट वाइब के नए सर्वे में PK को लेकर चौंकाने वाला खुलासा, कितने लोगों ने बताया- CM बनेंगे प्रशांत किशोर

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 जैसे करीब आ रहे हैं, राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गई हैं. सत्तारूढ़ एनडीए और विपक्षी महागठबंधन दोनों ही ओर से चुनावी प्रचार चरम पर हा. वोट वाइब सर्वे के नए आंकड़ों ने इस मुकाबले को और दिलचस्प बना दिया है.

ताजा सर्वे के अनुसार, बिहार के मतदाता दो प्रमुख खेमों में लगभग बराबर बंटे नजर आ रहे हैं. करीब 34.7% लोगों ने कहा कि वे महागठबंधन को सत्ता में देखना चाहते हैं,जबकि 34.4% मतदाताओं ने एनडीए पर भरोसा जताया. यह मामूली अंतर बताता है कि इस बार की जंग पूरी तरह कांटे की होगी,जहां हर सीट निर्णायक भूमिका निभा सकती है.

सर्वे का सबसे रोचक पहलू रहा प्रशांत किशोर और उनकी जन सुराज पार्टी का प्रदर्शन. लगभग 12% मतदाताओं ने माना कि इस बार राज्य में जन सुराज भी जीत दर्ज कर सकती है. यह नतीजा दिखाता है कि बिहार की राजनीति अब दो नहीं, बल्कि तीन प्रमुख ध्रुवों में बंट चुकी है.

दिलचस्प यह है कि प्रशांत किशोर ने खुद चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया है, फिर भी लोगों के बीच उनकी लोकप्रियता कायम है. लगभग 13% मतदाता उन्हें मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं. हालांकि पार्टी का अनुमानित वोट शेयर 9 से 10 प्रतिशत के बीच है, जिससे यह साफ झलकता है कि उनकी पहचान तो बनी है, लेकिन उसे जनसमर्थन में बदलना अभी चुनौती बना हुआ है.

सर्वे में जब यह सवाल पूछा गया कि क्या मतदाता जन सुराज पार्टी का चुनाव चिन्ह जानते हैं तो लगभग आधे लोगों ने कहा कि उन्हें इसका पता नहीं है. कुछ लोगों ने बताया कि पार्टी का सिंबल स्कूल बैग है, लेकिन एक बड़ा वर्ग अब भी इससे अनजान है. यह स्थिति दिखाती है कि पार्टी का संगठनात्मक विस्तार अभी शुरुआती चरण में है.

एक्सपर्ट् का मानना है कि अगर जन सुराज पार्टी अपने वोट प्रतिशत को 10% से ऊपर बनाए रखती है तो वह कई सीटों पर निर्णायक भूमिका निभा सकती है. बिहार विधानसभा चुनाव में तेजस्वी यादव महागठबंधन का चेहरा हैं, नीतीश कुमार अनुभव और शासन की छवि लेकर मैदान में हैं, जबकि प्रशांत किशोर जनता के बीच विकल्प के रूप में उभर रहे हैं. इस वजह से बिहार का चुनाव इस बार परंपरागत दो-तरफा लड़ाई से आगे बढ़कर एक त्रिकोणीय संघर्ष का रूप ले रहा है.

वोट वाइब सर्वे 15 से 19 अक्टूबर 2025 के बीच किया गया था, जिसमें राज्य के सभी 38 जिलों के 10,000 से अधिक लोगों की राय शामिल की गई. यह सर्वे भले अंतिम नतीजा न बताए, लेकिन इतना तय है कि इस बार का बिहार चुनाव उतना ही करीबी और अप्रत्याशित रहेगा, जितना लंबे समय से नहीं देखा गया.
 
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तैयारी में हर दिन नई सुर्खियां उगने लगी हैं. यह चुनाव हमेशा की तरह राजनीतिक सरगर्मी और उत्साह के साथ आ रहा है. लेकिन इस बार कुछ नया भी है - जनसुराज पार्टी का प्रदर्शन. प्रशांत किशोर जैसे नेताओं की बढ़ती लोकप्रियता दिखाती है कि बिहार की राजनीति अब दो नहीं, बल्कि तीन प्रमुख ध्रुवों में बंट गई है. यह एक बड़ा बदलाव है, जिस पर हमें इंतजार रखना होगा.
 
चुनावी भावना का माहौल वास्तव में ताजगी से भरपूर है 🌼। प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी ने बिहार की राजनीति में एक नई खलल डाल दी है. उनकी लोकप्रियता और समर्थन के आंकड़ों से यह पता चलता है कि तीन ध्रुवों का विपरीत बहिष्कार नहीं बल्कि वास्तविक प्रतिस्पर्धा बन गया है.

लेकिन चुनावी नतीजों की भविष्यवाणी करना हमेशा आसान नहीं होती है, और यह भी देखने में रुचि है कि जन सुराज पार्टी वास्तव में अपना प्रभुत्व स्थापित कर सकेगी या नहीं. वोट वाइब सर्वे ने हमें यह जानकारी दी, लेकिन अंतिम परिणाम और राजनीतिक गेमचेंज को आने वाले समय में ही पता चलेगा.

दिलचस्प है कि चुनावी तैयारियों के बीच इतनी तेजी से गतिविधियाँ शुरू हुई हैं, और अब लोग अपने मतदान की आदतों को बदलने का विचार कर रहे हैं. यह भारतीय राजनीति में एक नई दिशा की ओर झुकने की संभावना है.
 
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में तीन पक्षों की लड़ाई होने की बात सचमुच रोचक लग रही है 🤔। प्रशांत किशोर ने अपनी जन सुराज पार्टी को दिलचस्प बनाया है, लेकिन अभी भी उनकी पहचान तय नहीं हुई है. मुझे लगता है कि चुनाव में तेजस्वी यादव और नीतीश कुमार दोनों अच्छे प्रदर्शन करेंगे, लेकिन जन सुराज पार्टी को भी अपना खिलाड़ी ढूंढना होगा. वोट वाइब सर्वे से पता चलता है कि बिहार में चुनाव में तीन पक्षों की लड़ाई होने की संभावना है, जो एक नए दौर का निर्धारण करेगा.
 
यदि प्रशांत किशोर ने खुद मुख्यमंत्री के रूप में चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया है तो फिर भी लोगों के बीच उनकी लोकप्रियता कायम है. यह एक अच्छा संकेत है, क्या ना? 🤔

लेकिन हमें याद रखना है कि चुनावी जीत तो सिर्फ मतदाताओं के समर्थन पर आधारित होती है, लेकिन इसके पीछे एक मजबूत व्यवस्था और एक अच्छी राजनीतिक नाक की जरूरत है. प्रशांत किशोर की पहचान तो बन गई है लेकिन उसे अपनी पार्टी को मजबूत करने और उसे जनसमर्थन में बदलने का काम अभी शुरू हुआ है.

मुझे लगता है कि इस बार का बिहार चुनाव उतना ही करीबी और अप्रत्याशित रहेगा, जितना लंबे समय से नहीं देखा गया. यह एक ऐसा मामला है जहां हर उम्मीद और अविश्वास मिलकर तेजस्वी यादव महागठबंधन और प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी को चुनौती दे रहा है.
 
आज के युग में ऐसा सवाल उठता है कि क्या एक व्यक्ति की राजनीतिक सफलता उसके निजी चरित्र पर आधारित हो सकती है? प्रशांत किशोर के जन सुराज पार्टी का प्रदर्शन देखकर लगता है कि राजनीति में लोगों की धारणाओं और अपेक्षाओं को समझने की ज़रूरत है.

क्या हमने अपने नेताओं को इतनी सरल स्थिति में रख दिया है कि उनकी पहचान उनकी व्यक्तिगत लोकप्रियता पर आधारित है? प्रशांत किशोर ने खुद चुनाव लड़ने से इनकार किया, फिर भी लोगों को उनकी विकल्प की भावना है. यह हमें राजनीतिक दिशानिर्देश के बजाय, लोकप्रियता और प्रभावशालितता पर ध्यान केंद्रित करने से रोकने की जरूरत है.

आज की चुनौतियाँ हमारे नेताओं को अपनी विश्वास गहराइयों में खोजने और अपने मतदाताओं की असली जरूरतों को समझने की प्रेरित करती है.
 
बीते दिनों में नेताओं को देखकर लगता है कि वे सभी एक ही खेल खेल रहे हैं... यानी, चुनावी भाषा जिस तेजी से बोलते हैं, वह दूसरों की समझ में नहीं आ पाती। प्रशांत किशोर का जनसुराज पार्टी का प्रदर्शन वाकई दिलचस्प है, लेकिन लगता है कि उनकी पहचान अभी भी सिर्फ पोस्टर और जिंदगी में नहीं बदलने वाली।
 
अरे, ये सर्वे बहुत ही रोचक है 🤔, प्रशांत किशोर ने इतनी लोकप्रियता बनानी की तय्यार हैं वो चुनाव लड़ें, लेकिन खुद लड़ने से इनकार करना तो थोड़ा अजीब है... मुझे लगता है कि प्रशांत किशोर की पहचान बनाने के लिए उनकी राजनीतिक व्यवस्था पर ध्यान देने की जरूरत है. और जन सुराज पार्टी को अपने वोट प्रतिशत को 10% से ऊपर बनाए रखने की जरूरत है ताकि वह कई सीटों पर निर्णायक भूमिका निभा सके.
 
यह बिहार विधानसभा चुनाव तो देखने को मिलेगा 🤔, यह पूरा मैच निश्चित रूप से फिट होगा, हर सीट पर चुनौती होगी, और तेजस्वी यादव महागठबंधन और प्रशांत किशोर जन सुराज पार्टी दोनों ही अपने पक्ष में मजबूत हैं, जबकि नीतीश कुमार अनुभव और शासन की छवि लेकर आगे बढ़ रहे हैं... लेकिन अगर वोट प्रतिशत 10% से ऊपर जाता है तो जन सुराज पार्टी बाकी सभी पर देखेगी 😎.
 
चुनावी माहौल बहुत ही रोमांचक लग रहा है .. लोगों को यह तय करना पड़ता है कि वे कौन सा पार्टी चुनेंगे, और यह तय करने के लिए दोनों पक्ष दोनों अपनी-अपनी माहौल बनाने में लग गए हैं. लेकिन सच्चाई यह है कि चुनावी राजनीति में सारा मज़ा पार्टी व्यापारियों को ही मिलता है .. और दूसरे तो बस खुशी और गुस्सा ..
 
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