दैनिक भास्कर की विनम्र पहल- सार्थक दीपावली: एक छोटी सी कोशिश किसी जरूरतमंद की जिंदगी में खुशियां ला सकती हैं- शॉर्ट फिल्म

"सार्थक दीपावली" नामक इस शॉर्ट फिल्म में हमें एक ऐसा संदेश मिलता है जो हमें अपने आसपास के लोगों की खुशियों में हिस्सा बनने के महत्व पर जोर देता है। यह फिल्म हमें याद दिलाती है कि जब हम किसी और की खुशियों में शामिल होते हैं, तो वही खुशी हमारे जीवन में लौटकर आती है।

इस फिल्म ने संदेश दिया है कि दीपावली के दीयों की तरह हम अपने जीवन में भी उजाला भर सकते हैं। हमें अपने घर के साथ किसी और के दिल में भी रोशनी भरने की आवश्यकता है। जरूरतमंद की मदद करना, बच्चों के चेहरे पर मुस्कान लाना, या किसी बुजुर्ग का अकेलापन मिटाने - यह सब हमारी दीपावली को सार्थक बना सकता है।

इस शॉर्ट फिल्म को देखने के लिए आप नीचे क्लिक कर सकते हैं। इससे यह श्रृंखला चलती रहेगी और किसी न किसी जिंदगी में नया उत्साह और नई उम्मीद जगाती रहेगी।
 
दीपावली वाले दिन तो हमेशा खुशियों से भर जाते हैं, लेकिन फिर भी कुछ लोग एक-दूसरे की खुशियों में शामिल नहीं होते। इसके बारे में यह शॉर्ट फिल्म मुझे बहुत पसंद आई, क्योंकि वह हमें याद दिलाती है कि जब हम किसी और की खुशियों में शामिल होते हैं, तो वही खुशी हमारे जीवन में लौटकर आती है।
 
मैंने देखा तो फिल्म की बात, दीपावली का अर्थ है दिवाली तो इसका पूरा अर्थ कुछ और भी है। वाह, खुशियों में शामिल होने का संदेश अच्छा लगता है, लेकिन अगर हमारा घर ठीक नहीं है तो जिंदगी में रोशनी कैसे भरेगा? फिल्म में जरूरतमंद मदद करना और बच्चों के चेहरे पर मुस्कान लाना अच्छा है, लेकिन भाई, अगर घर में पैसे नहीं हैं तो कैसे?
 
ये तो बहुत अच्छी बात है कि फिल्म दीपावली के मौके पर एक सार्थक संदेश लेकर आती है। लेकिन मुझे लगता है कि यह संदेश थोड़ा सुनिश्चित नहीं है। क्या हमें यह बातना ही होगी कि जरूरतमंद को मदद करने से हमारी दीपावली सार्थक होती है? क्या इसका मतलब यह नहीं है कि अगर हम जरूरतमंद की मदद नहीं करते तो उसकी दीपावली भी निर्दोष होगी? मुझे लगता है कि फिल्म में थोड़ा अधिक विवरण और जटिलता लानी चाहिए थी।
 
मैंने देखी है दीपावली की ये फिल्म, तो मेरे मन में एक बात आ गई है कि हमारे आसपास के लोगों की खुशियों में शामिल होना बहुत जरूरी है। जब हम उनकी खुशियों में होते हैं तो वाह, यह खुशी हमारे जीवन में लौटकर आती है 🤩। और फिल्म का दूसरा बात यह है कि हम अपने घर की तरह भी किसी और के दिल में रोशनी भर सकते हैं । जरूरatmand ki madad karna, bachon ke cheheron par muskan lana aur bujurgon ka akelaapan mitchana... yeh sab hamari diwali ko saarthak banata hai 💡
 
मैंने भी सुना है कि दीपावली के इस वर्ष तो बहुत ही रोशनी भरी बन चुकी है। लेकिन मुझे लगता है कि हमें अपने आसपास के लोगों की खुशियों में भाग लेने से न केवल दूसरों का दिल रोशन करने की जरूरत, बल्कि हमारे जीवन में भी इस तरह की रोशनी आती है। अगर हम जरूरतमंदों की मदद करते हैं और बच्चों को खुशी देते हैं, तो मुझे लगता है कि हमारी दीपावली जैसी ही रोशनी भरती है।
 
ਰੇ, ਮुझੇ ਦੀ ਧੁਖਲ ਹੋਵੇ ਉਸ ਫਿਲਮ 'सार्थक दीपावली' ਤੋਂ... ਜਿਸਨੂੰ ਵੇਖਣ ਕੇ ਮੈਂ ਯਾਦ ਆ ਗਿਆ ਹੈ ਮੇਰੀ ਬਚਪਨ ਦੀਆਂ ਤੁਜੰਗਾਂ। ਉਸ ਵੇਲੇ ਦੀਆਂ ਛोटੀਆਂ ਫਿਲਮਾਂ, ਜਦੋਂ ਹਰ ਕੁਝ ਖੇਡਣ-ਖੇਲਣ ਨਾਲ ਬਣਿਆ ਹੁੰਦਾ ਸੀ। ਅੱਜ ਵੇਲੇ ਤੁਝੋਂ ਕੁਝ ਭੀ ਉਹੀ ਖੇਡ ਮਿਲ ਗਈ... 'दीपावली' ਦੇ ਸੰਦੇਸ਼ ਨੂੰ ਵੇਖਣ।
 
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