जब आतंकियों ने दिल्ली में 92 लाशें बिछा दीं: बस और कूड़ेदानों में रखे थे कुकर बम, सेल्समैन बनकर पुलिस ने एनकाउंटर किया था

कांग्रेस नेताओं ने बाटला हाउस एनकाउंटर को फर्जी बताया, जबकि भाजपा ने इसे चुनावी मुद्दा बनाया।
 
जैसे में देखा है तो यह बहुत अजीब लग रहा है। बाटला हाउस एनकाउंटर में जो चीज़ हुई वह थोड़ी भी सच नहीं है। कांग्रेस नेताओं ने इसे फर्जी बताया लेकिन देखिए कि उन्होंने अभी तक कोई सबूत नहीं दिखाया। और भाजपा ने तो इसे चुनावी मुद्दा बना रखा है। यह बहुत अजीब लग रहा है कि दोनों पक्ष एक ही चीज़ पर फंस गए हैं।

मुझे लगता है कि अगर कोई सच्चाई उजागर हो तो अच्छा होगा, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा। यह जैसे कुछ लोग चाहते हैं कि हम सब अपनी राय डालें और बातचीत करें। लेकिन मुझे लगता है कि सच्चाई को ढूंढने के लिए सबसे अच्छा है विश्लेषण करना 🤔
 
Wow 😮, बाटला हाउस एनकाउंटर से पहले तो मुझे लगा था कि ये दोनों पार्टियाँ एक दूसरे को बताने की कोशिश कर रही थीं कि वे ज्यादा सच्चे नेता हैं। लेकिन अब जब इस एनकाउंटर को फर्जी बताया गया है, तो मुझे लगता है कि दोनों पार्टियाँ एक दूसरे से भारी फायदा उठाने की कोशिश कर रही हैं।
 
मुझे लगा कि यह दोनों पार्टियाँ एक दूसरे से बचने की कोशिश कर रही हैं 🙅‍♂️। बाटला हाउस एनकाउंटर से जो भी बड़ा मुद्दा उभरा है, उसका समाधान निकालना चाहिए, न कि एक दूसरे पर लगातार आरोप लगाना 🤔. यह चुनावी मुद्दा बनाना और एक दूसरे को बदनाम करना केवल वोटों के लिए ही नहीं बल्कि अपनी पार्टी की छवि को भी खराब कर रहा है 🤷‍♂️.
 
बोलते हुए तो कांग्रेसी खुद अपने पार्टी के दुश्मनों को बुलाने की जिद क्यों करते हैं? ये तो बहुत बड़ा मुद्दा है! मैंने तो अपने प्रेमी से भी ऐसा नहीं किया होगा। लेकिन फिर भी कांग्रेसी नेता दोनों पक्षों की बातें सुनने के लिए तैयार नहीं हैं। मुझे लगता है कि ये एक बहुत बड़ा चुनावी मुद्दा बन गया है। मेरी पत्नी ने हाल ही में अपने भाई के शादी में बॉलीवुड सेलिब्रिटी से मिलने जाना है, लेकिन मैंने उसे कहा कि वह शायद तो भी ऐसा नहीं करेगी, खासकर अगर वे दोनों किसी बड़े चुनावी मुद्दे को उठाते हैं।
 
मैंने देखा है कि बाटला हाउस एनकाउंटर को लेकर हर कोई अपनी पक्षपाती दृष्टिकोण से बोल रहा है। लेकिन मेरे ख्याल में यह सब चुनावी राजनीति का हिस्सा बन गया है। मुझे लगता है कि अगर हमें अपने नेताओं और पार्टियों को उनकी गुणवत्ता पर ध्यान देना चाहिए, तो यह सब भूल जाएं। बाटला हाउस एनकाउंटर को एक घटना के रूप में नहीं देखना चाहिए, बल्कि इसके पीछे की सच्चाई को समझना चाहिए।

मुझे लगता है कि अगर हम अपने नेताओं को उनकी नैतिकता और गुणवत्ता पर जोर दें, तो यह सब भूल जाएंगे। लेकिन जब तक हम ऐसा नहीं करते, तब तक बाटला हाउस एनकाउंटर को एक चुनावी मुद्दे के रूप में चलाना स्वाभाविक है।
 
बोलते हुए देखा कि कांग्रेस और भाजपा नेताओं के बीच बाटला हाउस में मुठभेड़ के बारे में, तो लगता है कि यह सब बस एक बड़ा फॉर्मेटिंग मेल था। दोनों पक्षों ने अपनी तरफ से कहा, लेकिन कोई वास्तविकता नहीं आ गई। क्या यह वास्तव में एक चुनावी मुद्दा है या बस एक बड़ा फॉर्मेटिंग मेल था जिसमें दोनों पक्षों ने अपनी तरफ से कहा। 🤔

मुझे लगता है कि यह सब बस एक बड़ा डिस्ट्रैक्शन था, जो लोगों की ध्यान भटका रहा है। चुनावी मुद्दों पर चर्चा करने के बजाय, हमें अपने देश की वास्तविक समस्याओं पर ध्यान देना चाहिए। लेकिन लगता है कि यह सब बस एक बड़ा फॉर्मेटिंग मेल है, जिसमें लोगों को चकित कर रहा है। 😐
 
बात है कि लोगों को पासपोर्ट कानून से ज्यादा परेशानी होती रहेगी... 🤔 यह तो दिखाई नहीं देता कि वो चुनाव में जीतने के लिए हर किसी पर आड़े होंगे। पार्टियां अपने-अपने हिस्सेदारों को राजनीति करने के लिए इस तरह से बोल रही हैं... 🤑 वोटर्स को यह तो क्या पता कि सच्चाई क्या है? मुझे लगता है कि देश की राजनीति में ऐसे ही कई जाल हैं जो लोगों को धोखे में रखते हैं।
 
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