भारत में निपाह के खिलाफ स्वदेशी एंटीबॉडी तैयार करने का दौर शुरू हो गया है। पुणे स्थित आईसीएमआर-नेशनल इस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (एनआईवी) ने निपाह वायरस के खिलाफ ऐसी मोनोक्लोनल एंटीबॉडी बनाई है, जिसका उत्पादन बीएसएल-4 स्तर की प्रयोगशाला में किया गया है। अब भारत देश में हर सप्ताह कम से कम एक लाख खुराक निपाह वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी तैयार करेगा।
निपाह वायरस भारत के लिए गंभीर स्वास्थ्य चुनौती बना हुआ है। जुलाई 2025 तक, केरल में कुल नौ मामलों की सूचना मिली है, और देश में पहली बार यह संक्रमण 2001 में सिलीगुड़ी (प. बंगाल) में दर्ज हुआ था। आईसीएमआर के अनुसार, साझेदार कंपनियों को ऐसी क्षमता होनी चाहिए कि वे हर सप्ताह कम से कम एक लाख खुराक निपाह वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी तैयार कर सकें और 400-500 खुराक आपातकालीन उपयोग के लिए भंडारित रखें।
निपाह वायरस जानवरों से इंसानों में फैलता है, इसलिए यह एक जूनोटिक वायरस है। इसका प्राकृतिक वाहक फल्न खाने वाले चमगादड़ होते हैं। इसका संक्रमण आमतौर पर संक्रमित चमगादड़ों या उनके मल-मूत्र से दूषित फलों के सेवन, संक्रमित पशुओं (जैसे सूअर) या संक्रमित व्यक्ति के सीधे संपर्क से फैलता है। निपाह संक्रमण की मृत्यु 40 से 75% तक होती है, जो इसे सबसे घातक वायरल बीमारियों में शामिल करती है।
मोनोक्लोनल एंटीबॉडी ऐसी विशेष प्रोटीन अणु होते हैं जो वायरस के विशिष्ट हिस्से को निशाना बनाकर संक्रमण को रोकते हैं। निपाह वायरस के लिए अभी कोई टीका या दवा मौजूद नहीं है, इसलिए ऐसे में मोनोक्लोनल एंटीबॉडी सबसे प्रभावी जैव-चिकित्सीय उपाय माना जा रहा है।
निपाह वायरस भारत के लिए गंभीर स्वास्थ्य चुनौती बना हुआ है। जुलाई 2025 तक, केरल में कुल नौ मामलों की सूचना मिली है, और देश में पहली बार यह संक्रमण 2001 में सिलीगुड़ी (प. बंगाल) में दर्ज हुआ था। आईसीएमआर के अनुसार, साझेदार कंपनियों को ऐसी क्षमता होनी चाहिए कि वे हर सप्ताह कम से कम एक लाख खुराक निपाह वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी तैयार कर सकें और 400-500 खुराक आपातकालीन उपयोग के लिए भंडारित रखें।
निपाह वायरस जानवरों से इंसानों में फैलता है, इसलिए यह एक जूनोटिक वायरस है। इसका प्राकृतिक वाहक फल्न खाने वाले चमगादड़ होते हैं। इसका संक्रमण आमतौर पर संक्रमित चमगादड़ों या उनके मल-मूत्र से दूषित फलों के सेवन, संक्रमित पशुओं (जैसे सूअर) या संक्रमित व्यक्ति के सीधे संपर्क से फैलता है। निपाह संक्रमण की मृत्यु 40 से 75% तक होती है, जो इसे सबसे घातक वायरल बीमारियों में शामिल करती है।
मोनोक्लोनल एंटीबॉडी ऐसी विशेष प्रोटीन अणु होते हैं जो वायरस के विशिष्ट हिस्से को निशाना बनाकर संक्रमण को रोकते हैं। निपाह वायरस के लिए अभी कोई टीका या दवा मौजूद नहीं है, इसलिए ऐसे में मोनोक्लोनल एंटीबॉडी सबसे प्रभावी जैव-चिकित्सीय उपाय माना जा रहा है।