'शरीर पर नहीं मिले निशान तो दुष्कर्म नहीं...', रेप केस पर SC के फैसले को CJI ने बताया शर्मिंदगी

भारत की न्यायपालिका ने 1979 में एक आदिवासी लड़की से थाने में रेप होने के मामले में दो पुलिसकर्मियों को रिहा कर दिया था। इस फैसले को मुख्य न्यायाधीश भूषण रामकृष्ण गवई ने 'संस्थागत शर्मिंदगी' का क्षण बताया है। उन्होंने कहा है कि इस फैसले से नागरिकों को निराश किया गया था।

इस मामले में दो पुलिसकर्मियों पर आरोप लगाया गया था कि उन्होंने एक आदिवासी लड़की के साथ बलात्कार किया था। लेकिन जब कोर्ट ने पूछा तो लड़की के शरीर पर कोई निशान नहीं मिले, जिससे यह पता चला कि उसके साथ जबरदस्ती की गई और उसने इसका विरोध किया। इस फैसले को मुख्य न्यायाधीश गवाई ने 'देश के लिए टर्निंग पॉइंट' बताया है।

उन्होंने कहा है कि इस फैसले ने क्रिमिनल लॉ की कमियों को उजागर किया और इनमें संशोधन की जरूरत को उत्प्रेरित किया। इस फैसले ने सहमति की अवधारणा को फिर से परिभाषित किया और कस्टोडियल रेप में कानूनी सुरक्षा को मजबूत किया।

मुख्य न्यायाधीश गवाई ने कहा है कि जेंडर जस्टिस के लिए कई क्रांतिकारी कानून लाए गए और 1979 का फैसला छोड़कर लैंगिक समानता के लिए कोर्ट ने भी कई फैसलों के जरिए योगदान दिया। उन्होंने कहा है कि इसके परिणामस्वरूप परिवार और रीति-रिवाज में अंतर्निहित संरचनात्मक असमानताएं समाप्त हो गईं और निर्भरता के हाशिए से महिलाएं संवैधानिक नागरिकता के केंद्र में आ गईं।
 
🤦‍♂️ यह तो बहुत बड़ा मुद्दा है, लेकिन याद रखें, जिंदगी भी खेल है, और जैसे खिलाड़ी होते हैं वैसे ही खेल खत्म होता है। 1979 का फैसला तो एक बड़ा सवाल उठाता है कि अदालत में हमारे पास कितनी स्वतंत्रता है? 🤔
 
बस पागलपन की बात है यह... 1979 का फैसला तो क्या हुआ था, इसकी और भी कई गहराइयों हो सकती हैं। दो पुलिसकर्मियों को रिहा कर दिया गया और मुख्य न्यायाधीश ने क्यों कहा कि यह 'संस्थागत शर्मिंदगी' का क्षण था? क्या वास्तव में लड़की के साथ हुआ था, या बस थाने में खेल का मजाक था? और इसके बाद से देश के लिए टर्निंग पॉइंट कैसे बन गया?
 
अरे, इस फैसले से हमारे देश की न्यायपालिका को बहुत बड़ा दर्द हुआ होगा। जैसे मैंने पढ़ा, तो यह फैसला 1979 में था, जब एक आदिवासी लड़की के साथ बलात्कार का आरोप लगाया गया था। लेकिन जब कोर्ट ने पूछा तो लड़की के शरीर पर कोई निशान नहीं मिले, जैसे यह सब उसकी सहमति से हुआ था, या नहीं। यह एक बहुत बड़ा सवाल है और मुझे लगता है कि इस फैसले से हमारे देश की न्यायपालिका को अपनी गलतियों पर सोचने की जरूरत है।

मैंने पढ़ा, तो मुख्य न्यायाधीश गवाई ने कहा है कि इस फैसले ने क्रिमिनल लॉ की कमियों को उजागर किया और इनमें संशोधन की जरूरत को उत्प्रेरित किया। लेकिन मुझे लगता है कि हमारे देश की न्यायपालिका को अपनी कमियों पर काम करने की जरूरत है, और उन्हें तुरंत सुधारने की जरूरत है।

मुझे लगता है कि इस फैसले से हमारे देश में जेंडर जस्टिस के लिए अभी भी बहुत काम करने की जरूरत है। और हमें अपने न्यायपालिका को मजबूत बनाने की जरूरत है, ताकि वह हमारे देश की नागरिकों के अधिकारों की रक्षा कर सके।

🤔
 
अरे, यह तो बहुत गंभीर मामला है... पुलिसकर्मियों को रिहा करने से लोग कैसे महसूस करेंगे? यह देश हमारी न्यायपालिका को कितना अमनत समझता है 🤕। मैं तो ऐसे मामलों में पुलिसकर्मियों को पकड़ने और सजा देने की उम्मीद करता था। लेकिन जब से हमारी न्यायपालिका की 'संस्थागत शर्मिंदगी' का यह रिश्ता बना, तो ऐसे मामले होते जाते हैं... कुछ तो बदले में ही बदल लेते हैं।

अब, जब मुख्य न्यायाधीश गवाई ने कहा है कि इस फैसले से क्रिमिनल लॉ की कमियों को उजागर किया गया और यह सहमति की अवधारणा को फिर से परिभाषित किया, तो मैं तो समझता हूँ। हमारी न्यायपालिका को जरूरी है कि वह ऐसे मामलों में सख्ती बरते।
 
मुझे यह फैसला बहुत गंभीरता से लेना चाहिए कि दो पुलिसकर्मियों को जस्ती का मामला खंडित कर दिया गया। लेकिन मेरे अनुसार, इस फैसले ने हमें यह भी सिखाया है कि अदालत की प्रक्रिया में भी तेजी से सुधार की जरूरत है।

यह अच्छा है कि मुख्य न्यायाधीश गवाई ने इस फैसले को 'देश के लिए टर्निंग पॉइंट' बताया है। यह हमें यह याद दिलाता है कि हमारी न्यायपालिका में भी बहुत सुधार करने की जरूरत है, ताकि हम अपने नागरिकों को न्याय प्रदान कर सकें।

मुझे लगता है कि इस फैसले से हमें यह सबक सीखना चाहिए कि हमारी न्यायपालिका में भी तेजी से सुधार करने की जरूरत है, ताकि हम अपने देश को एक बेहतर बनाने में मदद कर सकें।
 
🤯 यह तो सच तो सच है कि हमारी न्यायपालिका में भी ऐसे कई मामले हैं जहां न्याय हासिल नहीं हो पाता है। 1979 में की गई इस अदालती सुनवाई में दो पुलिसकर्मियों को रिहा कर देने का फैसला तो बहुत ही असहज है... क्या हमारे न्यायपालिका में यहाँ तक की थाने में भी रेप होने के मामले में पुलिसकर्मियों को रिहा कर देने का फैसला लेने वाले अधिकारी तो वो ही ऐसे हैं जिनकी अपनी नैतिकता और मूल्यों से बिल्कुल भी परवाह नहीं करते। हमें लगता है कि यह फैसला नागरिकों को निराश कर देना चाहिए, लेकिन हमें उम्मीद करनी चाहिए कि हमारी न्यायपालिका में भी ऐसे कई अधिकारी हैं जो निष्पक्षता और न्याय के प्रति सच्चे हैं।

हमें लगता है कि यह फैसला तो हमारे देश के लिए एक बड़ा टर्निंग पॉइंट है, हमें अपनी न्यायपालिका में सुधार करने की जरूरत है। हमें निष्पक्षता और न्याय के प्रति सच्चे अधिकारियों को बढ़ावा देने की जरूरत है, ताकि हमारे नागरिकों को निराश नहीं होना पड़े।
 
🤔 ये जस्टिस गवाई की बात समझ नहीं आई, जब से 1979 का फैसला आया तो क्या लड़की वास्तव में बलात्कार हुआ था? शरीर पर निशान तो नहीं थे, तो कैसे कहें कि उसके साथ जबरदस्ती की गई। और फिर भी उन दोनों पुलिसकर्मियों को रिहा कर दिया। 🤷‍♂️
 
मुझे लगता है कि जब तुम्हारी पत्नी तुम्हारे साथ रेप कर रही है, तो तुम्हारे दिमाग में सबसे पहले यही सवाल आता है - मैंने अपने पति/पत्नी को रिहा कर दिया, अब वह तो बिल्कुल नहीं! 🤣
 
🤔 मैंने पहले कहा था कि इस फैसले से न्यायपालिका की खामियों को उजागर हुआ है, लेकिन अब मैं कह रहा हूँ कि यह एक बड़ा कदम है जिसमें हमें अपनी असुविधा को रोकने की जरूरत है। मैंने कहा था कि यह फैसला क्रिमिनल लॉ की कमियों को उजागर कर रहा है, लेकिन अब मैं कह रहा हूँ कि यह हमें सुधारने की एक मौका देता है। मैंने पहले कहा था कि इसमें संशोधन की जरूरत है, लेकिन अब मैं कह रहा हूँ कि यह फैसला हमारे लिए एक नई दिशा दिखाता है। 🤷‍♂️
 
इस देश की न्यायपालिका तो एकदम बुरी तरह मुश्किल में पड़ गयी है 🤦‍♂️। 1979 में कैसे ऐसा बड़ा अपमान और शर्मिंदगी का क्षण हुआ, यह सोच कर कि लड़की को पुलिसकर्मियों ने रेप किया, तो बिल्कुल वास्तविक जजमेंट में शर्मिंदगी का दर्जा दिया गया। लेकिन फिर भी यह हमारे देश की न्यायपालिका की खामियों को उजागर करता है। पुलिसकर्मियों को रिहा करने का फैसला एक बड़ा सवाल उठाता है - लड़की का बचाव नहीं किया गया, बल्कि उसकी शर्तों पर ध्यान देने में कमजोरी दिखाई गई। लेकिन मुख्य न्यायाधीश गवाई जी ने सही कहा है - यह हमारे देश के लिए एक टर्निंग पॉइंट था, और इसमें संशोधन की जरूरत बहुत है।
 
वाह! यह तो बहुत बुरी तरह से गड़बड़ी हुई थी... दो पुलिसकर्मियों को रिहा कर देना और फिर भी लड़की को सही न्याय नहीं मिला। मुख्य न्यायाधीश गवाई जी ने संस्थागत शर्मिंदगी बतायी है ... लेकिन हमें लगता है कि ये आदिवासी लड़की के लिए भी बहुत मुश्किल हुई थी।

क्या हमें उम्मीद करनी चाहिए कि जैसे-जैसे समय बीतता गया, न्यायपालिका को यह बदलाव करने की ताकत मिलेगी? हमें लोगों की आवाज़ सुनने की जरूरत है और उन्हें सही न्याय मिलने देना चाहिए। 🙏💪
 
मुझे बहुत दुख हुआ जब 1979 में एक आदिवासी लड़की को जस्ता में रेप होने का मामला सुनकर पिया। ये एक बहुत बड़ा फैसला था जिसमें दो पुलिसकर्मियों को रिहा कर दिया गया था, और इससे नागरिकों को बहुत निराशा हुई। यह एक बहुत बड़ी शर्त है जिससे सामाजिक न्याय की लड़ाई में कई समस्याएं पैदा हुईं।

इस मामले को देखते हुए मुझे लगता है कि हमें अपने न्यायपालिका के पास सुधार की जरूरत है। हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि जैसे-जैसे लोगों के अधिकार क्षेत्र में विस्तार होता जा रहा है, वही न्यायपालिका भी अपने कामकाज में भी सुधार करे।

हमें यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि हमारे देश में हर किसी को समान अधिकार मिलें, चाहे वह लड़की हो, लड़का, या कोई अन्य। हमें अपने समाज में जस्ता और सामाजिक न्याय की बातों को लेकर चलने वाले व्यक्तियों को समर्थन देना चाहिए।

यह एक अच्छा समय है जब हम अपने देश की ओर एक नई दिशा में बढ़ रहे हैं। हमें इस दिशा में और भी आगे बढ़ना चाहिए।
 
Back
Top