उत्तर भारत में कड़ाके की ठंड ने रफ्तार पकड़ ली है। हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में शीतलहर का प्रकोप बढ़ गया है, जबकि राजस्थान और पश्चिम बंगाल में तापमान सामान्य से नीचे चला गया है। मौसम विभाग ने आने वाले दिनों में तापमान में और गिरावट की चेतावनी दी है।
हिमाचल प्रदेश में ठंड ने पहाड़ों और घाटियों दोनों को अपनी गिरफ्त में ले लिया है। इस मौसम की सबसे ठंडी रात दर्ज हुई, जिसमें तापमान माइनस 7.4 डिग्री सेल्सियस तक गिर गया। कीलोंग में न्यूनतम तापमान माइनस 3.3 डिग्री, कुकुमसेरी में माइनस 3.1 डिग्री और कल्पा में माइनस 0.4 डिग्री रहा।
राज्य के अन्य हिस्सों में भी पारा सामान्य से दो से पांच डिग्री नीचे रहा। शिमला और धर्मशाला में न्यूनतम तापमान क्रमशः 8.2 और 8 डिग्री रहा। मौसम विभाग के मुताबिक, एक अक्तूबर से 13 नवंबर के बीच प्रदेश में सामान्य से 113 फीसदी अधिक वर्षा दर्ज की गई है।
उत्तर भारत में इस तरह की ठंड की स्थिति कई दशकों में नहीं आई है। ऐसा माना जा रहा है कि यह शीतलहर पृथ्वी पर ग्रीनहाउस गैसों के बढ़ते स्तर के कारण हुई है, जो जलवायु परिवर्तन के प्रमुख कारकों में से एक है।
इस तरह की ठंड के कारण लोगों को अपने घरों में बैठकर रहना पड़ रहा है, जबकि तापमान इतना नीचा गया है कि लोगों को ठीक-ठीक जाने नहीं देता। यही नहीं, पेड़ों और अन्य वनस्पतियों पर भी इस तरह की ठंड का प्रभाव पड़ रहा है, जिससे उनकी संख्या में कमी आ रही है।
इस तरह की ठंड के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए मौसम विभाग ने कई समाचार पत्रों और टीवी चैनलों पर बातचीत की। इस शीतलहर का प्रभाव उत्तर भारत में महसूस होने लगा, जहां लोग अपने घरों में बैठकर रहने लगे।
हिमाचल प्रदेश में ठंड ने पहाड़ों और घाटियों दोनों को अपनी गिरफ्त में ले लिया है। इस मौसम की सबसे ठंडी रात दर्ज हुई, जिसमें तापमान माइनस 7.4 डिग्री सेल्सियस तक गिर गया। कीलोंग में न्यूनतम तापमान माइनस 3.3 डिग्री, कुकुमसेरी में माइनस 3.1 डिग्री और कल्पा में माइनस 0.4 डिग्री रहा।
राज्य के अन्य हिस्सों में भी पारा सामान्य से दो से पांच डिग्री नीचे रहा। शिमला और धर्मशाला में न्यूनतम तापमान क्रमशः 8.2 और 8 डिग्री रहा। मौसम विभाग के मुताबिक, एक अक्तूबर से 13 नवंबर के बीच प्रदेश में सामान्य से 113 फीसदी अधिक वर्षा दर्ज की गई है।
उत्तर भारत में इस तरह की ठंड की स्थिति कई दशकों में नहीं आई है। ऐसा माना जा रहा है कि यह शीतलहर पृथ्वी पर ग्रीनहाउस गैसों के बढ़ते स्तर के कारण हुई है, जो जलवायु परिवर्तन के प्रमुख कारकों में से एक है।
इस तरह की ठंड के कारण लोगों को अपने घरों में बैठकर रहना पड़ रहा है, जबकि तापमान इतना नीचा गया है कि लोगों को ठीक-ठीक जाने नहीं देता। यही नहीं, पेड़ों और अन्य वनस्पतियों पर भी इस तरह की ठंड का प्रभाव पड़ रहा है, जिससे उनकी संख्या में कमी आ रही है।
इस तरह की ठंड के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए मौसम विभाग ने कई समाचार पत्रों और टीवी चैनलों पर बातचीत की। इस शीतलहर का प्रभाव उत्तर भारत में महसूस होने लगा, जहां लोग अपने घरों में बैठकर रहने लगे।