West Bengal: एसआईआर के डर से बांग्लादेशी प्रवासियों में भगदड़, दो हफ्तों में करीब 26,000 लोग हो गए गायब

विशेषज्ञों का मानना है कि एसआईआर की चर्चा और दस्तावेज जांच के डर ने अवैध प्रवासियों के पलायन को स्वतः तेज कर दिया है। बंगाल में इस तरह की गतिविधि कभी नहीं देखी गई है, जिसमें इतनी बड़ी संख्या में लोग एक ही समय में अपने निर्धारित पते छोड़कर वापस जाने की योजना बनाते हैं।

इस तरह की बढ़ती असुरक्षा और अनिश्चितताओं की स्थिति में प्रवासियों को अपने भविष्य के बारे में आश्वस्त नहीं होने देने वाली नीतियां ही जिम्मेदार हैं।

विशेषज्ञों का मानना है कि एसआईआर की संभावित कार्रवाई से पूरे दक्षिण एशियाई समुदाय को प्रभावित होने की संभावना है, क्योंकि प्रवासी इस दिशा में आने-जाने में हमेशा एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं।

इस तरह की व्यवधानों को कम करने के लिए नीतियों में बदलाव की जरूरत है।

लेकिन इस दौरान बंगाल की सरकार और प्रशासन को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए।
 
मेरा ख्याल है कि एसआईआर से जुड़ी सभी व्यवधानों में यह एक बड़ा कारण है। लोग इतने डर गए हैं कि वे अपने निर्धारित पते छोड़कर वापस जाने की योजना बनाते हैं। इससे पूरे समुदाय पर दबाव पड़ रहा है और यह एक बड़ा मुद्दा है।

मुझे लगता है कि हमें अपने नीतियों में बदलाव करने की जरूरत है, ताकि लोगों को अपने भविष्य के बारे में आश्वस्त होने का मौका मिले। एसआईआर से जुड़ी सभी व्यवधानों को कम करने के लिए हमें एक साथ मिलकर काम करने की जरूरत है।
 
मेरा फैसला है कि एसआईआर की चर्चा से हमें वास्तविकता के सामने आने का मौका मिलेगा। पूरे देश में लोगों को अपने भविष्य के बारे में चिंतित होने की ज़रूरत नहीं है। सरकारें और नीतियां बदलनी चाहिए, लेकिन हमें भी अपने जीवन का फैसला करने की ज़रूरत नहीं।

मुझे लगता है कि प्रवासियों को भी अपने फैसले लेने की ज़रूरत है। अगर वे ठीक से पता लगाएं और अच्छा रोजगार की तलाश करें, तो वे अपने भविष्य के बारे में आश्वस्त हो सकते हैं।

लेकिन, सरकारों को नीतियों में बदलाव करने की ज़रूरत है। हमें सुनिश्चित करना होगा कि प्रवासियों को उनके अधिकार मिलें।

क्या यह सही है? 🤔
 
मुझे लगता है कि एसआईआर की चर्चा से क्योंकि लोगों ने अपनी बात कहने का मौका दिया तो उन्हें अब अपने पलायन के बारे में खुलकर बोलने की जान पड़ गई। लेकिन सरकार की नीतियां तो बदलनी चाहिए, न कि राजनीति करनी चाहिए 🤔

बंगाल में इस तरह की गतिविधि कभी नहीं देखी गई है, इसका मतलब यह नहीं है कि लोगों ने सोचा था कि वे ऐसा कर सकते हैं। और फिर सरकार क्यों लोगों को ऐसा करने की अनुमति देती है? 🤷‍♂️

मुझे लगता है कि एसआईआर से हमें एक बात सीखनी चाहिए, जो है - प्रवासियों को भी अपने भविष्य के बारे में आश्वस्त नहीं होने देने वाली नीतियां बनाने का विचार करना चाहिए। और सरकार को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए और ऐसी स्थिति तो सुधारनी चाहिए 🙏
 
अगर एसआईआर के बाद वैसा ही हुआ तो यह बहुत बड़ी समस्या बन गई है 🤕
कोई नीति नहीं बनाता है, लेकिन उसका पूरा असर तब दिखाई देता है जब नीतियों के बाद वैसा ही होता है
बंगाल में ऐसी स्थिति कभी नहीं देखी गई है, यह तो एक बड़ी समस्या है
इस तरह की असुरक्षा और अनिश्चितताओं की स्थिति में प्रवासियों को अपने भविष्य के बारे में आश्वस्त नहीं होने देने वाली नीतियां ही जिम्मेदार हैं
कोई भी प्रभावित होता है और उसका सामना करने के लिए कोई तैयार नहीं होता
इस तरह की व्यवधानों को कम करने के लिए नीतियों में बदलाव की जरूरत है, और अगर ऐसा नहीं होगा तो फिर कैसे कम हो सकता है
 
🙏 एक तो एसआईआर से जुड़े विशेषज्ञों का मानना है कि हमें अवैध प्रवासियों के परिणामस्वरूप उत्पन्न होने वाली असुरक्षा और अनिश्चितताओं को कम करने के लिए नीतियों में बदलाव करना चाहिए।

लेकिन क्या हम इस बात पर गंभीर नहीं हैं कि पूरे दक्षिण एशियाई समुदाय से जुड़े लोग एसआईआर की चर्चा और दस्तावेज जांच के डर में वापस जा रहे हैं?

इस समय को समझने के लिए हमें यह भी स्वीकार करना चाहिए कि प्रवासी हमेशा से ही एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं और इस तरह की व्यवधानों को कम करने के लिए हमें अपनी सरकार और प्रशासन पर जोर देना चाहिए।

क्या हम इसके लिए कुछ नहीं कर सकते? 🤔
 
मेरा विचार है कि एसआईआर से निपटने के लिए हमें एक समग्र दृष्टिकोण अपनाना चाहिए 😊। सस्पेंडर रूट (एसआईआर) की चर्चा और दस्तावेज जांच के डर से अवैध प्रवासियों के पलायन में तेजी आ गई है। यह तो समझने के लिए नहीं है, लेकिन इससे निकलने वाली समस्या को देखने की जरूरत है।

चार्ट: एसआईआर से निपटने की प्रभावशीलता 📈

संख्यात्मक रूप से, 2022 में भारत में अवैध प्रवासियों की संख्या लगभग 10 करोड़ हो गई है।

पैटर्न: एसआईआर से निपटने की प्रभावशीलता 📊

बंगाल की सरकार और प्रशासन को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए। अगर हमें एक समग्र दृष्टिकोण अपनाना है, तो नीतियों में बदलाव की जरूरत है। लेकिन इससे पहले, हमें एसआईआर से निपटने के तरीकों पर विचार करना चाहिए।

चार्ट: एसआईआर से निपटने के तरीके 📊

आपको लगता है कि एसआईआर से निपटने की प्रभावशीलता में क्या बदलाव किया जा सकता है?
 
भाई, एसआईआर का यह सिर्फ एक बड़ा मंच नहीं है, बल्कि यह हमारे समाज की असुरक्षितता को दर्शाता है। पूर्वी बंगाल में इतने लोग एक साथ जाने की सोच तो और भी अजीब है 🤯। ये नीतियां तो बस एक बड़ा झूठ हैं जिस पर हम सभी को आड़ नहीं लगाता 🤑

ज़रूर, दक्षिण एशियाई समुदाय को प्रभावित होने की संभावना है, लेकिन यहाँ भी सरकार और प्रशासन की जिम्मेदारी है। हमें अपने भविष्य के बारे में आश्वस्त नहीं होने देने वाली नीतियां बनानी चाहिए।

लेकिन, मैं तो सोचता हूँ कि सरकार और प्रशासन की तरफ से यह तो कुछ भी न करने की हिम्मत नहीं है। ये लोग तो बस एक दूसरे को दांव पर लगाते रहते हैं 🤑
 
मैंने हाल ही में अपने दोस्त का राज सुना था जो नेपाल से आया था। वहाँ तो हर दिन लोगों की पलायन की बात करते रहते हैं, लेकिन बंगाल में यह तरह की गतिविधि कभी नहीं देखी गई। वह कहता है कि वहाँ लोग निराश हैं और सुरक्षित नहीं महसूस कर रहे हैं। मुझे लगता है कि सरकारों को अपने नागरिकों की जरूरतों को समझने और उन्हें सुरक्षित रखने पर ध्यान देने की जरूरत है।
 
क्या यह तो एक बड़ा मुद्दा है ये एसआईआर नीति... 🤔 लोगों के भविष्य के बारे में कोई सोच और योजना नहीं बनाते, बस दूर-दूर जाने की इच्छा और वहीं खट्टे पनीर खाने की उम्मीद... 😂 क्या यह ठीक है? इसके लिए नीतियों में बदलाव जरूर चाहिए, लेकिन सरकार भी अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए, सबको एक साथ मिलकर समाधान ढूंढना चाहिए... 🤝 तो फिर वे कहाँ ध्यान देंगे?
 
મેં દોર થયું છે, ક્યારેય જ બંગાળની સરકાર અને પ્રશાસન એવી ભલેમણી પોતાની જિમ્મેદારી સમજતા હશે! વૈધિક પ્રવાસીઓ છે, નહીં? તેમનો અર્થ-આર્થિક પ્રભાવ બંગાળની સરકારને ખુલ્લી તાકાત આપે છે, એટલે દરેક વૈધિક મહિલા અને પુરૂષ તેમની ફરી આગામી યાત્રાઓ બાદ વિશ્વસનીય હશે?
 
मैंने कभी नहीं सोचा था कि एसआईआर की चर्चा इतनी तेजी से होगी, और इतनी बड़ी संख्या में लोगों ने अपने निर्धारित पते छोड़कर वापस जाने की योजना बनाई है। यह बहुत ही असुरक्षा की भावना है...

मुझे लगता है कि हमें अपने भविष्य के बारे में सुनिश्चित करने वाली नीतियां बनानी चाहिए, ताकि लोगों को आश्वस्त महसूस हो। लेकिन इस दौरान सरकार और प्रशासन को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए...

मुझे याद आया था जब मैं बच्चा था, हमारे गाँव में कभी कोई अवैध प्रवासी नहीं आया था। ऐसा लगता है कि आज का समय बहुत ही अलग हो गया है।
 
अरे, ये तो बहुत बड़ा समस्या है, ऐसे लोगों के साथ निपटना जरूर मुश्किल है 🤔. सबसे पहले प्रावसियों की जान-माल की सुरक्षा पर ध्यान देना चाहिए, लेकिन यह तो एक मामूली बात नहीं है, उन्हें अपने भविष्य के बारे में आश्वस्त करने के लिए जरूरी है और सरकार को इस तरह से नीतियां बनानी चाहिए जिससे हर किसी को अपना भविष्य सुरक्षित महसूस करे।

और फिर, एसआईआर की चर्चा और दस्तावेज़ जांच के डर से लोगों का मनोबल नष्ट हो रहा है, इससे बंगाल में यह तरह की गतिविधि कभी नहीं देखी गई है, यह तो बहुत बड़ा संदेश है किसी भी सरकार के लिए।

मेरा विचार है कि पूरे दक्षिण एशियाई समुदाय को इस तरह से प्रभावित न होने देने के लिए, हमें इन नीतियों में बदलाव करने की जरूरत है। और सरकार को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए।
 
मुझे लगा कि यह सिर्फ एक बड़ा मिसाल है... यानी कि एसआईआर ने क्यों नहीं कहा, "देखो, हमें तो बस अपने पते बदल देना है, लोगों को इतनी बात करने की जरूरत नहीं!" 🙄 और फिर भी ऐसी बड़ी संख्या में लोग एक ही समय में जाने की योजना बनाते हैं। यह तो पूरी तरह से अनियमित है। 😒

और तो और, देखो, एसआईआर ने इतनी बड़ी संख्या में लोगों को एक ही समय में जाने की अनुमति देने के बाद, क्या अब सरकार कह सकती है कि यह एक समस्या नहीं? 🤔

लेकिन ठीक है, नीतियों में बदलाव करने की जरूरत है। लेकिन इसके लिए हमें सबसे पहले अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए। और बंगाल की सरकार को भी तैयार रहना चाहिए कि नीतियों में बदलाव करने से कुछ समस्याएं हो सकती हैं। 🤝
 
सब्सक्राइबर, एसआईआर से निकलने वाले लोगों की यह गतिविधि खुलकर होती हुई देखी जा रही है 🚨। नीतियां बदलें, लेकिन सरकार भी अपनी जिम्मेदारी समझे।
 
ਦੁਖदायी, ਸਭ ਨੂੰ ਇਹ ਯाद ਕਿ ਜੇ ਅਸੀਂ ਆਪਣੇ ਨਾਗਰਿਕਾਂ ਦੀ ਉੱਚੀ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਬਣਾਉਣ ਲਈ ਮੁਹਿੰਮ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਨਾਹ ਹੋ ਤਾਂ, ਅਜਿਹਾ ਕਦਮ ਬਣਨ ਲੱਗ ਪੈਂਦਾ ਹੈ। ਇਹ ਵੀ ਯਾਦ ਰੱਖੋ ਕਿ ਜੇ ਅਸੀਂ ਆਪਣੇ ਨਾਗਰਿਕਾਂ ਨੂੰ ਸਹੀ ਦਿਸ਼ਾ ਵਿੱਚ ਮੋੜਨ ਲਈ ਨਹੀਂ ਤਾਂ, ਉਹ ਅਜਿਹੇ ਕਦਮ ਪੈਣ ਲੱਗੇ ਹਨ।
 
मुझे यह सब बहुत दिलचस्प लग रहा है 🤔, एसआईआर की बात करने से पहले मैं सोचता हूँ कि ये सब कैसे हुआ और जो निर्णय लिए गए हैं वो सही से नहीं थे। लोगों को जागरूक होने देना चाहिए, उन्हें अपने भविष्य के बारे में सोचने देना चाहिए। और सरकार को भी नीतियों में बदलाव करना चाहिए ताकि लोगों को आश्वस्त होने को कुछ खास नहीं मिले। यह एक बड़ा मुद्दा है और इस पर सभी को सोचना चाहिए।
 
प्रवासियों का भविष्य कैसे सुनिश्चित होगा? सरकारें तय कर देनी चाहिए कि कौन प्रवासी और कौन नागरिक माना जाएगा। लेकिन अगर यह तय किया गया कि केवल कुछ ही लोग नागरिकता प्राप्त कर सकते हैं, तो इससे और भी अधिक समस्याएं जन्म लेंगी।

जैसे बंगाल में एसआईआर की चर्चा में, यहां तक कि सबसे छोटे बदलाव से लाखों लोग अपने-अपने भविष्य के बारे में चिंतित हो जाएंगे। अगर सरकार ऐसा कोई निर्णय लेती है तो इससे पूरे समुदाय पर प्रभाव पड़ेगा।

इसलिए, हमें नीतियों में बदलाव करने की जरूरत नहीं है, बल्कि यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हर व्यक्ति के लिए जानबूझकर सही तरीके से और न्यायपूर्ण रूप से निर्णय लिया जाए। 🙏
 
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