'हमारी लड़ाई जारी रहेगी...', बिहार में हार के बाद मल्लिकार्जुन खरगे का आया पहला रिएक्शन

बिहार में कांग्रेस-आरजेडी समर्थित महागठबंधन पूरी तरह से फेल होकर, अब यह सवाल उठने लगा है कि क्या राजनीतिक रणनीतियों में बदलाव की जरूरत है?

कांग्रेस-आरजेडी की इस पूरी तरह से नाकाम रही महागठबंधन को लेकर, मल्लिकार्जुन खरगे ने अपना पहला बयान दिया है। उन्होंने लिखा, 'हम बिहार की जनता के फ़ैसले का सम्मान करते हुए, ऐसी ताक़तों के खिलाफ़ अपनी लड़ाई जारी रखेंगे, जो संवैधानिक संस्थाओं का दुरुपयोग कर, लोकतंत्र को कमज़ोर करने में जुटी हैं। हम चुनाव के परिणामों का गहराई से अध्ययन करेंगे और नतीजों के कारणों को समझने के बाद विस्तृत बात रखेंगे।'

खरगे ने यह भी कहा, 'हम चुनाव के परिणामों का गहराई से अध्ययन करेंगे. नतीजों के कारणों को समझने के बाद विस्तृत बात रखेंगे. बिहार में जिन मतदाताओं ने महागठबंधन का साथ दिया है, उनके हम तहे दिल से आभारी हैं।'

उन्होंने कहा, 'कांग्रेस के हर कार्यकर्ता से कहना चाहता हूं कि आपको हतोत्साहित होने की ज़रूरत नहीं. आप हमारी आन-बान-शान है. आपकी कड़ी मेहनत हमारी ताकत है. हम जनता को जागरूक करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। जनता के बीच रहकर संविधान और लोकतंत्र को बचाने का संघर्ष जारी रखेंगे। यह लड़ाई लंबी है - और हम इसे पूरी निष्ठा, साहस और सत्य के साथ लड़ेंगे।'

क्या यह महागठबंधन का फेल होना एक बड़ी चुनौती थी, इसका जवाब अब पता चलेगा। बिहार की 243 सीटों पर हुए मतदान का रिजल्ट सामने आ गया है. इसमें NDA को 202 सीटें मिली हैं. इनमें JDU को 85 सीटें, बीजेपी को 89, LJPR को 19, HAM को 05 और आरएलएम को 04 सीटें मिलीं हैं।
 
अरे यार, यह देखकर मजाक नहीं है कि कांग्रेस-आरजेडी ने बिहार में इतनी बड़ी जीत हासिल कर ली। तो अब यह सवाल उठता है कि क्या पार्टियों के पास अपनी रणनीतियों में बदलाव करने की जरूरत है? मल्लिकार्जुन खरगे ने बात कही अच्छी, लेकिन वो देखिए कि उनकी पार्टी NDA के खिलाफ इतनी ताकत से लड़ रही थी। शायद अपनी रणनीतियों में थोड़ा बदलाव करना जरूरी होगा, लेकिन यह देखना रोचक होगा कि क्या वो सचमुच परिवर्तन कर पाते हैं या नहीं।
 
अरे, देखिए बिहार में क्या हुआ तो यह बहुत बड़ी चुनौती थी, लेकिन हमें उम्मीद रखनी चाहिए कि राजनीतिक रणनीतियों में बदलाव की जरूरत नहीं है, बस कुछ सुधार होने चाहिए। मल्लिकार्जन खरगे जी ने बात की है और कहा है कि हम जनता को जागरूक करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। तो यह अच्छी बात है, लेकिन हमें यह भी देखना चाहिए कि क्या नेताओं के पास अपने विचारों को समझाने की क्षमता है।

मुझे लगता है कि अगर हम सभी कुछ सुधारने की कोशिश करते हैं और एक दूसरे की बात सुनते हैं, तो शायद हमें यह महागठबंधन का फेल होने का जवाब मिल सकता है।
 
बिहार के नतीजों से जुड़े इस मुद्दे पर बोलते समय एक बात तय करनी चाहिए - कि आगे क्या रास्ता लेना है? #नेतृत्वक्यामहत्वपूर्ण #राजनीतिकफेल_कैसेसुधारा_जाए #बिहारकेनतीजोंसेशिक्षा
 
अरे दोस्त, यह नतीजा तो बहुत बड़ी चुनौती है 🤔। कांग्रेस-आरजेडी के इस महागठबंधन को फेल करने से हमें सोचना पड़ेगा कि अब कैसे आगे बढ़ें? मल्लिकार्जुन खरगे की बातों से लगता है कि उन्हें ताकत मिली है, लेकिन यह सवाल उठता है कि क्या उनकी रणनीतियाँ बदल गई हैं? क्या वे जनता की जरूरतों को समझने में सफल रहे? हमें देखना होगा कि आगे कैसे कदम उठाएंगे।

कुछ लोग कह सकते हैं कि यह नतीजा राजनीतिक दलों की कमजोरियों का प्रदर्शन करता है, जबकि अन्य खोलेंगे कि यह एक नई शक्ति की शुरुआत है। मुझे लगता है कि आगे को देखने के लिए ज़रूरियात है कि नेताओं ने जनता की बात सुनी या नहीं।
 
क्या ये परिणाम तो बिल्कुल भी अच्छे नहीं हैं, लेकिन जीतने वालों को अपने निर्णय के पीछे कुछ मजबूत सिद्धांत होने चाहिए, फिर किसी और का दोषी होना बिल्कुल सही नहीं। NDA को 202 सीटें मिलने पर मुझे लगता है कि वे निरंतर सत्ता में रहने के लिए कड़ी मेहनत करें।
 
बिहार में कांग्रेस-आरजेडी का महागठबंधन फेल होने का मतलब यह है कि लोगों ने अपनी पसंद पूरी तरह से दूसरी तरफ मोड़ दिया है। यह तो एक बड़ा सबक है, भले ही हमें इसका पीछे का कारण समझने में थोड़ी देर लगे।

हमारे राजनेताओं को तो अब यह सीखने का समय है कि लोगों की नज़रिया बदल गया है, और हमें उनकी बात समझनी है। शायद, बहुत से लोगों ने महागठबंधन में विश्वास नहीं किया, इसलिए मतदान में उन्होंने अपना वोट दूसरी तरफ दे दिया।

लेकिन अब यह सवाल उठता है कि आगे क्या हमारा राजनीतिक लैंडस्केप बदलेगा? क्या हमें नए रणनीतियों को स्वीकार करने की जरूरत है? मुझे लगता है, अब यह समय है कि हम अपने चुनावी अभियानों में बदलाव करें।

हमारे राजनेताओं पर तो अब लोगों की अपेक्षाएँ बढ़ गई हैं। उन्हें जनता के सामने अपने वचनों को पूरा करने की जरूरत है, और उनकी स्वतंत्रता की बात नहीं करनी चाहिए।

अब हमें यह देखना होगा कि नए राजनेताओं क्या करेंगे, लेकिन मुझे लगता है कि अगर वे सच्चाई को समझते हैं और लोगों की जरूरतों को सुनते हैं, तो हमारा भविष्य अच्छा दिखेगा।
 
बिहार के चुनाव का परिणाम देखने के बाद यह स्पष्ट है कि राजनीतिक दलों की विश्वसनीयता और जनता की धारणा में गहरी भूमिका खेलती है। मेरी राय में, इस चुनाव में NDA के जीतने के पीछे कई महत्वपूर्ण कारक थे। सबसे पहले, JDU ने अपनी विशाल जनसंख्या और देशभर में अपनी मजबूत संगठनात्मक इकाइयों का उपयोग करके अपने समर्थन को अच्छी तरह से जुटाया है। इसके अलावा, बीजेपी ने अपने प्रदेश अध्यक्ष मंगलधन सिंह द्वारा अपने नेतृत्व और रणनीति में महत्वपूर्ण बदलाव किया है, जिससे उन्होंने अपने समर्थन को बढ़ाया है।

हालांकि, यह विजय भी एक चुनौती है। NDA की सरकार अब स्पष्ट रूप से दिखाएगी कि वह जनता की उम्मीदों और आकांक्षाओं को पूरा कर सकती है या नहीं। इसके लिए उन्हें अपनी नीतियों और कार्यक्रमों में महत्वपूर्ण बदलाव करने की जरूरत है। यह भी एक संकेत है कि राजनीतिक दलों को अपनी विश्वसनीयता को बनाए रखने के लिए सतत प्रयास करना चाहिए।
 
बिहार में यह नतीजे देखना राहत देने वाले थे, लेकिन अब यह सवाल उठने लगा कि आगे क्या करें। मल्लिकार्जुन खरगे के बयान से लगता है कि हमें चुनाव की जीत में हार न केवल मानना पड़ा बल्कि उसमें शामिल लोगों को समझने की जरूरत है। अगर हम जनता को जागरूक करने में सामील होने का संकल्प करेंगे, तो शायद नंबर 2 और 3 पर पहुँचने में भी समस्या नहीं होगी।
 
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