1995 में पहली बार भारत आया था इंटरनेट! उससे पहले कैसे काम करता था ISRO?

1995 में भारत में इंटरनेट आने से पहले, भारतीय विज्ञान संग्रहालय (आईआईटी) और राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संशोधन संस्थान (एनसीएसटी) के बीच एक छोटा सा डायल अप ईमेल सेवा शुरू हुई थी। लेकिन यह सेवा आम लोगों के लिए नहीं थी और उनके घरों में इसका उपयोग करना मुश्किल था। इसके बजाय, कुछ लोग बुलेटिन बोर्ड सिस्टम जैसी शुरुआती डिजिटल सेवाओं के जरिए कंप्यूटरों को जोड़ते थे।

1989 में, मुंबई के पवई में छात्रों ने देश का पहला और सबसे बड़ा बुलेटिन बोर्ड सिस्टम लाइव वायर शुरू किया। इसने शुरुआती डिजिटल कम्युनिटी तैयार की, लेकिन यह सुविधा समिति थी और इंटरनेट अभी भी भारत के लिए दूर की चीज थी।

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इस्रो) ने अपना पहला उपग्रह आर्यभट्ट अंतरिक्ष में भेजा था, जो 20 साल पहले हुआ था। इस्रो ने गांवों को जोड़ने के लिए सेटेलाइट से शैक्षणिक प्रसार भी किया था। देश के हजारों गांव में टीवी के जरिए पढ़ाई और कृषि के कार्यक्रम भी पहुंचाए जाते थे।

इस्रो ने 1980 में एसएलवी 3 से अपना उपग्रह लॉन्च कर दिया था, जिससे भारत दुनिया का छठा देश बन गया था जो खुद का रॉकेट बनाकर सैटेलाइट भेज सकता था। इस्रो ने फ्री कम्युनिकेशन सिस्टम, सैटेलाइट नेटवर्क, ग्राउंड स्टेशन्स और वैज्ञानिक कंप्यूटिंग सिस्टम के सहारे काम करता था।

इस्लिए, भारत में इंटरनेट आने से पहले, इस्रो अपने फ्री कम्युनिकेशन सिस्टम, सैटेलाइट नेटवर्क और अन्य तकनीकों के सहारे काम कर रहा था।
 
मुझे लगता है कि 90 के दशक में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इस्रो) ने बहुत कुछ पेश किया था। जैसे उनका पहला उपग्रह आर्यभट्ट जिसने हमारे देश को दुनिया की सबसे आगे वाली स्थिति में लाया। और फिर भारत ने अपना रॉकेट बनाकर सैटेलाइट भेजने की सुविधा प्राप्त कर ली। इसके अलावा, इस्रो ने गांवों में शैक्षणिक प्रसार किया था और लोगों को नई तकनीकों की जानकारी दिलाई थी। यह सब बहुत ही उत्साहजनक है।
 
अरे, यह तो बहुत ही दिलचस्प बात है लेकिन हमारे प्लेटफ़ॉर्म पर इसका अच्छा तरीके से विश्लेषण नहीं करने का मौका मिल नहीं रहा है।

इंसानियत जैसी बड़ी दुनिया को समझने के लिए हमें न केवल इंटरनेट की आवश्यकता होती है, बल्कि यहां तक कि 1980 के दशक में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इस्रो) ने अपने फ्री कम्युनिकेशन सिस्टम और सैटेलाइट नेटवर्क के माध्यम से कई गांवों में शैक्षणिक प्रसार किया था। लेकिन, आजकल जब हम सभी बुलेटिन बोर्ड्स और कंटेंट्स को देखते हैं तो यह सब बहुत ही अजीब लगता है।
 
रॉकेट भेजने वाले इस्रो ने हमारे देश में खुद की यात्रा शुरू हुई है! 1980 में एसएलवी 3 से अपना पहला उपग्रह लॉन्च करने का दौरा उन्होंने बिताया, जिससे हमारा देश दुनिया का छठा रॉकेट बन गया।

आज भी इस्रो ने गांव-गांव जाकर शैक्षणिक प्रसार और तकनीकी सहायता पहुंचाई है। उनके फ्री कम्युनिकेशन सिस्टम और सैटेलाइट नेटवर्क ने हमें इंटरनेट की ओर बढ़ने में मदद की। अब भारत एक सुसंगत और जागरूक देश बन रहा है, जो अपने युवाओं को भविष्य की तकनीकों की ओर ले जा रहा है।

इस्रो ने हमारे देश में कई प्रगतियां की हैं और हमारे समाज को बेहतर बनाने में मदद की है। उनकी इस पहल से हमें उम्मीद है कि हम अपने देश को और भी आगे बढ़ाएंगे।
 
वाह ! भारत में इंटरनेट आने की बात तो हाल ही में हुई है लेकिन याद है, भारत ने अपने अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ISRO के जरिए देश का पहला उपग्रह भेजा था। और यह सब पहले से ही इंटरनेट नहीं था, लेकिन इस्रो ने अपने फ्री कम्युनिकेशन सिस्टम और सैटेलाइट नेटवर्क के जरिए देशभर में शैक्षणिक प्रसार और अन्य सेवाएं पहुंचाई थीं। यह तो बहुत ही रोचक है कि भारत ने अपनी तकनीक के माध्यम से इंटरनेट आने से पहले ही देशभर में कई अच्छी सेवाएं प्रदान कर रहा था। 🚀💻
 
अरे, यह देखकर मुझे लगता है कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने इंटरनेट आने से पहले ही अपनी खुद की डिजिटल यात्रा शुरू कर ली थी। वो समय उन्होंने बुलेटिन बोर्ड सिस्टम जैसी शुरुआती डिजिटल सेवाओं के जरिए कंप्यूटरों को जोड़ते हुए देश भर में अपनी छाप छोड़ी। और जब इंटरनेट वास्तव में आने लगा, तो उन्होंने फ्री कम्युनिकेशन सिस्टम, सैटेलाइट नेटवर्क और अन्य तकनीकों के सहारे देश को जुड़ाव देने का अभियान शुरू कर दिया। यह एक बहुत ही प्रेरणादायक कहानी है! 🚀
 
मुझे लगता है कि भारत में इंटरनेट आने से पहले, इस्रो ने बहुत अच्छी तरह से देश को जोड़ दिया था, लेकिन यह सब कुछ वास्तव में खास नहीं था। आर्यभट्ट उपग्रह की बात करते हुए, मुझे लगता है कि वह एक बहुत बड़ा झांसा था और देश में इसका उपयोग करने के लिए बहुत सारे छोटे छोटे समस्याएं आईं। और तो भी वास्तव में यह पूरा उपग्रह कैसे संचालित होता था, नाहीं पता। 🤔
 
इंटरनेट की शुरुआत हुई तो मेरे दादाजी को खुद जानते थे। उन्हें पता नहीं था कि इंटरनेट कितना बेहतर है हमारे लिए। सैटेलाइट नेटवर्क और आर्यभट्ट अंतरिक्ष पर उपग्रह भेजने की बात मुझे अच्छी लगती है। लेकिन फ्री कम्युनिकेशन सिस्टम की गहराई समझ नहीं पाता मेरा दिमाग। मैं जानता हूं कि इस्रो ने बहुत कुछ किया है, लेकिन कौन से थे पहले लोग जिन्होंने इंटरनेट शुरू किया था। क्या उनकी कहानी भी पढ़ सकते हैं? 😊
 
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन की यादें हमेशा बहुत प्रेरणादायक होती हैं 🚀। 1980 में एसएलवी 3 को लॉन्च करने से देश ने एक नया आयाम बनाया था। और बिना इंटरनेट के भी, इसरो ने अपने फ्री कम्युनिकेशन सिस्टम और सैटेलाइट नेटवर्क का उपयोग करके देश को जोड़ने में सफलता पाई थी। यह हमें याद दिलाता है कि इंटरनेट आने से पहले, भी हमारे पास बहुत सारे ताकतें थीं।
 
मैंने देखा है कि हमारे देश में इंटरनेट आने से पहले, इस्रो जैसी संगठनों ने अपनी खुद की तकनीक स्थापित की थी। और ये सच है कि उनके प्रयासों से हमारा देश अपनी खुद की बुलेटिन बोर्ड सिस्टम और अन्य डिजिटल सेवाओं में आगे बढ़ गया। लेकिन ये भी सच है कि आम लोगों को इन तकनीकों तक पहुंच नहीं मिल रही थी। फिर भी, इस्रो ने अपने उपग्रह और सैटेलाइट नेटवर्क का उपयोग करके गांवों को जोड़ने की कोशिश की और शैक्षणिक प्रसार किया। यह एक अच्छा कदम था, लेकिन अभी भी बहुत कुछ बदलना था।
 
इस देश के लिए आर्यभट्ट जैसे स्पेस मिशन बहुत जरूरी हैं और हमें उन्हें विकसित करने के लिए पैसे देने चाहिए, नहीं तो हमारा देश खुद का रॉकेट बनाने के लिए कुछ भी नहीं कर पाएगा।
 
अरे, ये तो बिल्कुल सच है... 1995 में इंटरनेट आने से पहले भी हमारे पास कई ऐसे टेक्नोलॉजी विकसित होने के बाद शुरू हुई थी। लेकिन, ये सच नहीं है कि ग्रामीण इलाकों में इंटरनेट तक पहुंच नहीं थी। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने अपना पहला उपग्रह आर्यभट्ट 1984 में लॉन्च किया था, लेकिन यह बिल्कुल सही नहीं है कि इसे इंटरनेट आने से पहले शुरू हुआ था।

और, ये बात भी सच नहीं है कि इंटरनेट आने से पहले हमारे पास केवल बुलेटिन बोर्ड सिस्टम और लाइव वायर थे। मुंबई के पवई में छात्रों ने देश का पहला और सबसे बड़ा बुलेटिन बोर्ड सिस्टम शुरू किया था, लेकिन यह तो 1989 में हुआ था। और, इंटरनेट की उपलब्धता बढ़ने से ग्रामीण इलाकों में भी पढ़ाई और कृषि प्रसार में सुधार हुआ।

इसरो ने अपने फ्री कम्युनिकेशन सिस्टम, सैटेलाइट नेटवर्क और अन्य तकनीकों के सहारे काम कर रहा था, लेकिन यह तो हमेशा से ऐसा नहीं रहा है। ये कहानी बहुत जटिल है, और इसके पीछे कई ऐसे फैक्ट्स हैं जिनकी जांच करने की जरूरत है।
 
मुझे लगता है कि इंटरनेट आने से पहले, भारत में जैसी तकनीकें शुरू हुईं, वो बिल्कुल आम लोगों के लिए नहीं थी। यह तो उन लोगों के लिए थी जो खुद को रोजगार देने के लिए खुद का काम करते हैं।

लेकिन फिर, 1989 में बुलेटिन बोर्ड सिस्टम शुरू हुआ तो यह तो समाज के लिए एक नए अवसर की तरह था। लेकिन, इसे लागू करने वाली सरकार तो बहुत दूर थी, जैसा कि इंटरनेट आने के बाद भी बहुत सारे लोगों को फायदा नहीं हुआ।

आज जब भी खुद अपना रॉकेट बनाता है और उपग्रह भेजता है, तो मुझे लगता है कि यह कुछ जैसा ही है जो हमें 20 साल पहले दिखाया गया था। लेकिन फिर, आज जब खुद अपना फ्री कम्युनिकेशन सिस्टम बना रहा है, तो मुझे लगता है कि यह कुछ नया नहीं है।
 
मैं तो याद है जब मेरे दादाजी ने भी बुलेटिन बोर्ड सिस्टम का उपयोग करते हुए इंटरनेट के बारे में सुना था, वाह! 1995 में इंटरनेट आया तो बहुत ही शुरुआती अवस्था में, लेकिन इस्रो ने अपने फ्री कम्युनिकेशन सिस्टम और सैटेलाइट नेटवर्क के माध्यम से बिल्कुल भी पीछे नहीं पड़ा, देखिए!
 
मैं याद करता हूँ कि जब हमारे देश में इंटरनेट आने से पहले, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Isro) की बात करने वालों को लोग खास कर पंजाब और हरियाणा में मानते थे। उन्होंने अपने संचार सिस्टम का उपयोग करके समुदाय को जोड़ा था। उनके उपग्रह ने गांव-गांव पहुंचकर लोगों की जिंदगी में बदलाव लाने में मदद की थी। और जब इंटरनेट आया, तो बहुत से लोग पहले ही अपने घरों में एक कमरे का पुस्तकालय तैयार कर देते थे।
 
1995 से भारत में इंटरनेट शुरू हुआ था, लेकिन यह तो हमारी शुरुआती दिनों में ही हुआ था। लेकिन अगर मैं बात करूँ तो इस्रो ने अपने फ्री कम्युनिकेशन सिस्टम और सैटेलाइट नेटवर्क से बहुत कुछ हासिल किया था। मेरा विचार है कि हमें उनकी पहलों पर गौर करना चाहिए, खासकर जब बोले जाते हैं इंटरनेट के समय। 📺
 
अरे बात है! भारत में इंटरनेट आने से पहले, हमारी सरकार और संगठन इस्रो की बहुत बड़ी मदद करते थे। उनके फ्री कम्युनिकेशन सिस्टम और सैटेलाइट नेटवर्क से लोगों को जुड़ने का मौका मिलता था। मैंने पुराने दिनों की कहानियां पढ़ीं तो लगता है कि हमारे पास इस तरह की तकनीकें से काम करने की बहुत जिम्मेदारी थी।
 
अगर 1995 में इंटरनेट आ जाता, तो भारतीय विज्ञान संग्रहालय और एनसीएसटी दोनों ही बहुत आगे नहीं थे। लेकिन इस्रो की तरह कुछ अन्य जगहें पहले ही फ्री कम्युनिकेशन सिस्टम का उपयोग कर रही थीं।

मुझे लगता है कि अगर इंटरनेट वास्तव में भारत आया, तो यह हमारी तकनीकी शक्तियों को और अधिक बढ़ा देगा। लेकिन इसके अलावा, हमें अपने शैक्षणिक संस्थानों में ऐसे सुविधाएं जैसे कि ईमेल और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म विकसित करने की जरूरत होगी।
 
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