हमारा देश हमेशा से महिलाओं की असुरक्षा और हिंसा की समस्याओं पर चर्चा में रहा है। लेकिन आज हम 'अस्पृश्य' शब्द के अर्थ को समझने जा रहे हैं, जिसका अर्थ है कि किसी को स्पर्श करने के योग्य नहीं माना जाता है, खासकर महिलाओं को। इस शब्द का उपयोग सुमित्रानंदन पंत ने अपनी कविता 'नारी' में किया है।
पंत ने लिखा, "हाय, मानवी रही न नारी लज्जा से अवगुंठित", जिसका अर्थ है कि महिलाएं भी अपनी स्वतंत्रता और सम्मान को बनाए रखने के लिए मजबूर हैं। वह "नर की लालस प्रतिमा, शोभा सज्जा से निर्मित!" है, अर्थात उन्हें आकर्षण और सुंदरता मिले, लेकिन यह भी महत्वपूर्ण है कि उनके साथ सम्मान और वफादारी का मेल हो।
पंत ने आगे कहा, "युग युग की वंदिनी, देह की कारा में निज सीमित, वह अदृश्य अस्पृश्य विश्व को, गृह पशु सी ही जीवित!" अर्थात महिलाएं अपने शरीर को अपने स्वयं के अधिकार के रूप में देखती हैं और उनका सम्मान करना जरूरी है।
इस कविता ने महिलाओं की असुरक्षा और हिंसा की समस्याओं पर जोर दिया है, लेकिन इसका संदेश यह भी है कि हमें अपने समाज में नर और नारी के बीच सहजता और सम्मान को बढ़ावा देना चाहिए। पंत ने कहा, "सदाचार की सीमा उसके तन से है निर्धारित, पूत योनि वह: मूल्य चर्म पर केवल उसका अंकित;" अर्थात महिलाओं को उनके शरीर के मूल्य को समझना चाहिए और उन्हें सम्मान देना चाहिए।
इस कविता ने हमें यह सिखाया है कि नर और नारी एक दूसरे के लिए महत्वपूर्ण हैं और उनके बीच सहजता और सम्मान को बढ़ावा देना जरूरी है।
पंत ने लिखा, "हाय, मानवी रही न नारी लज्जा से अवगुंठित", जिसका अर्थ है कि महिलाएं भी अपनी स्वतंत्रता और सम्मान को बनाए रखने के लिए मजबूर हैं। वह "नर की लालस प्रतिमा, शोभा सज्जा से निर्मित!" है, अर्थात उन्हें आकर्षण और सुंदरता मिले, लेकिन यह भी महत्वपूर्ण है कि उनके साथ सम्मान और वफादारी का मेल हो।
पंत ने आगे कहा, "युग युग की वंदिनी, देह की कारा में निज सीमित, वह अदृश्य अस्पृश्य विश्व को, गृह पशु सी ही जीवित!" अर्थात महिलाएं अपने शरीर को अपने स्वयं के अधिकार के रूप में देखती हैं और उनका सम्मान करना जरूरी है।
इस कविता ने महिलाओं की असुरक्षा और हिंसा की समस्याओं पर जोर दिया है, लेकिन इसका संदेश यह भी है कि हमें अपने समाज में नर और नारी के बीच सहजता और सम्मान को बढ़ावा देना चाहिए। पंत ने कहा, "सदाचार की सीमा उसके तन से है निर्धारित, पूत योनि वह: मूल्य चर्म पर केवल उसका अंकित;" अर्थात महिलाओं को उनके शरीर के मूल्य को समझना चाहिए और उन्हें सम्मान देना चाहिए।
इस कविता ने हमें यह सिखाया है कि नर और नारी एक दूसरे के लिए महत्वपूर्ण हैं और उनके बीच सहजता और सम्मान को बढ़ावा देना जरूरी है।