आज का शब्द: राका और हरिवंशराय बच्चन की कविता- मेरा प्यार पहली बार लो तुम

मैंने पढ़ा है ये कविता- मेरा प्यार पहली बार लो तुम, तो मुझे लगा कि यह जीवन का अर्थ है, पर फिर मैं सोचता हूँ, क्या यही सब है? श्रम की क्रूर घड़ियाँ चल रही हैं, लेकिन हमें खुश रहना चाहिए। लेकिन फिर मैं सोचता हूँ, कि श्रम भी जरूरी है, नहीं तो जीवन क्या अर्थ होगा? प्राण, संध्या झुक गई गिरि, ग्राम, तरु पर, उठ रहा है क्षितिज के ऊपर सिंदूरी चाँद... यह तो बहुत सुंदर है, लेकिन फिर मैं सोचता हूँ, कि सुंदर होने के बाद भी, हमें अपने श्रम को नहीं छोड़ना चाहिए। और फिर, प्यार से संसार सोकर जागता है, इसलिए है प्यार की जग में महत्ता, लेकिन मैं सोचता हूँ, कि प्यार भी जरूरी नहीं है, हम किसी के हाथ में साधन बने, सृष्टि की कुछ माँग पूरी हो रही है।
 
Back
Top