बंगाल, यूपी और राजस्थान समेत 12 राज्यों में आज से शुरू हो रहा SIR, ये दस्तावेज जरूरी, घर-घर जाए

अजीब नियम, मतदाताओं को घर-घर जाकर पहचान कराने का काम शुरू, चुनाव आयोग का दौरा करने वाली टीम

चुनावी सरगर्मी में तेजी, 12 राज्यों में स्पेशल इंटेंसिव रिविजन (SIR) प्रक्रिया शुरू हो गई, जहां मतदाताओं की पहचान के लिए घर-घर जाकर एनुमरेशन फॉर्म बांटे जाएंगे। इस बार सिर्फ आधार कार्ड मान्य नहीं है, बल्कि मतदाता के घर-घर जाकर उनकी पहचान कराने का काम शुरू हो गया है।

चुनाव आयोग ने पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश सहित कई राज्यों में SIR प्रक्रिया शुरू कर दी है, जहां मतदाताओं को उनके घर जाकर एनुमरेशन फॉर्म बांटे जाएंगे। इसके तहत, 4 दिसंबर 2025 तक ये फॉर्म जमा किए जाएंगे, और 7 फरवरी 2025 को अंतिम मतदाता सूची प्रकाशित की जाएगी।

चुनाव आयोग ने अपने एक दल एसआईआर की समीक्षा के लिए पश्चिम बंगाल का दौरा करने का फैसला किया, जहां चार राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं। इसमें संबंधित अधिकारी तीन बार लोगों के घर जाएंगे।

एसआईआर के लिए जरूरी दस्तावेज इस प्रकार हैं: बर्थ सर्टिफिकेट, 10वीं या किसी अन्य परीक्षा का सर्टिफिकेट, पासपोर्ट, सरकारी जमीन और मकान के कागजात, जाति प्रमाण-पत्र, मूल निवास प्रमाण-पत्र, सरकारी नौकरी का पहचान पत्र या पेंशन पेमेंट ऑर्डर, परिवार रजिस्टर की कॉपी, आधार कार्ड से जुड़ी आयोग की दिशा-निर्देश, NRC की एंट्री, 1 जुलाई 1987 से पहले जारी कोई भी पहचान पत्र, और सरकार की ओर से जारी भूमि या मकान आवंटन प्रमाणपत्र।

निर्वाचन आयोग ने अपनी 9 दिसंबर को JARI करने वाली मतदाता सूची के बारे में घोषणा की, और अंतिम मतदाता सूची 7 फरवरी 2025 को प्रकाशित की जाएगी।
 
अरे ये तो चुनावी माहौल में बहुत तेजी आ गई है 🚨। घर-घर जाकर पहचान कराने का काम शुरू हुआ है, और अब सिर्फ आधार कार्ड ही मतदाताओं के लिए पर्याप्त नहीं माना जाएगा। यह तो बहुत ही अच्छा निर्णय है 🤝, ताकि किसी भी गलती या भ्रष्टाचार को रोका जा सके।

लेकिन इतने समय में घर-घर जाकर पहचान कराने का काम करना थोड़ा सा परेशानियां भी पहुंचा सकता है 🤔। लोगों की चिंता तो समझ नहीं आ रही है, और सभी मतदाताओं को यह फॉर्म मिल जाए ताकि वे अपनी पहचान करा सकें।

यह भी अच्छी बात है कि चुनाव आयोग ने पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश सहित कई राज्यों में SIR प्रक्रिया शुरू कर दी है। अब सिर्फ आधार कार्ड से मतदाताओं को पहचाना जा सकेगा, और उनकी पहचान कराने का काम घर-घर जाकर किया जाएगा।
 
अरे, इस चुनाव में मजाक है या नहीं? घर-घर जाकर पहचान कराने का काम शुरू हो गया है, यह तो सिर्फ राजनीति की खेल है ना? पहले आधार कार्ड पर भरोसा करते थे, लेकिन अब ये नहीं हैं तो मजाक है क्या?

मुझे लगता है कि इन सभी दस्तावेजों को इकट्ठा करने में भी कुछ छुपा हुआ होगा, जैसे कि मतदाताओं की पहचान को नियंत्रित करने का तरीका। और ये सिर्फ पश्चिम बंगाल नहीं है, बल्कि कई राज्यों में भी यही सिस्टम शुरू होगा।

मैं तो सोचता हूं कि चुनाव आयोग को कुछ बड़ी चीज़ करनी होगी, जैसे कि मतदाताओं की संख्या कम करने या उनकी पहचान बदलने का तरीका। लेकिन मुझे लगता है कि वास्तविकता में यह सब कुछ एक बड़ा खेल है, और हमें अपने मनोबलों को बनाए रखना होगा।
 
बेटा, यह तो एक बहुत ही अजीब नियम है घर-घर जाकर मतदाताओं की पहचान कराने का। मुझे लगता है कि यह सिर्फ वोट बेचने वालों के लिए है, ताकि वे सुनिश्चित कर सकें कि मतदाता उनकी पार्टी को सपोर्ट करे।

मैं समझता हूं कि चुनावी माहौल में तेजी होनी चाहिए, लेकिन यह तो बहुत ही अजीब तरीके से है। मतदाताओं को घर-घर जाकर पहचान कराने का काम शुरू करना एकदम सही नहीं है, इससे बहुत से लोगों को परेशानी होगी।

मुझे लगता है कि चुनाव आयोग ने इस बारे में गलत रणनीति बनाई है। मतदाताओं की गोपनीयता और सुरक्षा को ध्यान में रखकर, उन्हें घर-घर जाकर पहचान कराने की जरूरत नहीं थी।
 
अरे ये तो बहुत ही अजीब नियम लग रहा है 🤔, घर-घर जाकर पहचान कराने का काम शुरू हुआ है। लोगों को पहले से ही बहुत परेशानी हुई होगी, और अब यह काम भी करना पड़ सकता है। और फिर से, आधार कार्ड मान्य नहीं है, तो यह तो बहुत ही निष्क्रिय है 🙄। सिर्फ इतनी बात है कि मतदाताओं को उनके घर जाकर पहचान कराने का काम शुरू हुआ है, लेकिन मुझे लगता है कि यह एक बहुत बड़ा खेल है। और फिर, चार राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं, तो यह तो बहुत ही राजनीतिक है 😬
 
बेटा, यह तो बहुत अजीब नियम है कि चुनाव आयोग घर-घर जाकर पहचान कराने वाली टीम को भेज रहा है। क्या यह तो बातचीत करने की जरूरत नहीं थी, न कि घर-घर जाने? लेकिन देखो, चुनाव में तेजी आ गई, और सिर्फ आधार कार्ड मान्य नहीं है, बल्कि घर जाकर पहचान कराना पड़ेगा। इसमें बहुत समय और संसाधन लगेगा, न कि तो यह अच्छा विचार था।

मद्रास में भी ऐसे ही नियम लागू हुए हैं, जहां मतदाताओं को घर-घर जाकर पहचान कराने का काम शुरू हो गया है। और पश्चिम बंगाल में चुनाव आयोग ने अपने दौरे के लिए तैयारी करने का फैसला किया, जहां चार राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं।

मुझे लगता है कि यह टीम घर-घर जाने की जरूरत नहीं थी, और इन दस्तावेजों को जमा करने की जरूरत भी नहीं थी। लेकिन अब तो ये नियम लागू हुए हैं, तो चुनाव में सुरक्षा की जरूरत होगी।
 
यह तो बहुत ही अजीब नियम है घर-घर जाकर पहचान करने का। मुझे लगता है कि यह बहुत ही सही निर्णय है, हमें सुनिश्चित करना है कि हर कोई भाई-भावना के साथ और सम्मान के साथ अपना मतपत्र डालने जाए। इससे हमारे देश में चुनावी प्रक्रिया बहुत ही साफ और ईमानदार बनेगी। मुझे लगता है कि यह एक अच्छी समस्या है, और इसका समाधान जल्द से जल्द करना चाहिए।
 
😂🤣 ये तो एक अजीब नियम है घर-घर जाकर पहचान करने का। मैं समझ नहीं पाया कि चुनाव आयोग ने इतनी गहराई से मतदाताओं की पहचान की जरूरत है। यह व्यस्ती तो एक्सप्रेस वोटिंग को भी बाधित कर सकती है?

लेकिन मुझे लगता है कि यह सब मतदाताओं को डराने-धमकाने के लिए नहीं है, बल्कि हमेशा से चुनावी प्रक्रिया को साफ करने और सुनिश्चित करने के लिए कि हर वोट मायने रखता है।

आजकल इतनी जटिलताएं तो मुझे थोड़ा परेशान करती हैं क्या? 😅 फिर भी, मैं उम्मीद करूंगा कि यह सब चुनावी शांति और स्थिरता के लिए मदद करेगा।
 
बोलते है कि यह सब चुनावी तैयारियों का हिस्सा है, लेकिन थोड़ा अजीब लग रहा है घर-घर जाकर मतदाताओं की पहचान कराने का खेल। मुझे लगता है कि इससे मतदाताओं को कभी नहीं पता चलेगा कि उनकी पहचान कैसे ली जाएगी। तो फिर इसका उद्देश्य यही कि हर किसी की पहचान कराने के लिए कुछ पासपोर्ट वालों की भी पहचान कराने की जरूरत है। लेकिन इससे मतदाताओं की सुरक्षा नहीं होगी, बल्कि उनकी गोपनीयता पर असर पड़ेगा।
 
मुझे लगता है यह सब क्यों करना पड़ा? पहले घर-घर जाकर एनुमरेशन फॉर्म बांटे जाएंगे और फिर सिर्फ आधार कार्ड मान्य नहीं होगा, इससे तो मतदाताओं पर बहुत दबाव डाल दिया जाएगा। और 4 दिसंबर को इन फॉर्म जमा करने की बारी तो शायद टिक सेट हो गई है 🙄। इससे पहले चुनाव आयोग वास्तव में मतदाताओं की पहचान के लिए ऐसा नहीं कर रहा था। और अब 7 फरवरी तक अंतिम मतदाता सूची प्रकाशित की जाएगी, इससे पहले तो क्या इस समय वोट डालने का मौका नहीं है? 🤔
 
अरे, यह तो बहुत अजीब नियम है! मतदाताओं को घर-घर जाकर पहचान कराने का काम, शायद बिहार की तरह चुनावी स्थिति में नहीं है, लेकिन भारत में यह कितना जरूरी होगा, सोचो।

लेकिन सच्चाई तो यह है कि यह नियम बहुत ही महत्वपूर्ण है ताकि मतदाताओं की पहचान सुनिश्चित की जा सके और चोरी या गलतफहमी में नहीं लगे।

लेकिन सवाल उठता है, क्या यह नियम सिर्फ मतदाताओं को बांटने से पर्याप्त नहीं होगा, ताकि वे सही मतदान कर सकें।

कोई ऐसी प्रक्रिया बनाएं, जिससे चुनावी दौरान भ्रष्टाचार कम हो। और हमें उम्मीद है कि यह नियम सिर्फ एक छोटा कदम होगा, जिससे हमें चुनावी सफलता मिले।
 
ये तो सुनकर हैरानी है कि अब घर-घर जाकर पहचान कराने का काम शुरू हुआ है, लेकिन मैंने सोचा, यार यह तो एक अच्छा बात हो सकती है। इससे मतदाताओं की वैधता की जांच करने में मदद मिलेगी, और हमारे चुनावी प्रक्रिया में साफ-सफाई आ जाएगी। तो मैं इसे सकारात्मक देखने की कोशिश करूंगा, शायद इससे मतदान में भी वृद्धि हो सकती है और हमें एक बेहतर भविष्य मिलेगा।
 
बोलते हैं लोगों की पहचान घर-घर देखाने का बार में कोई चिंता नहीं है? सिर्फ आधार कार्ड नम्बर तो ही नहीं, घर के सभी दस्तावेज़ और फ़ोन कंपनियों के रिसेप्शनिस्ट की जानकारी देनी पड़ेगी।
 
ये तो देखो, चुनाव आयोग ने घर-घर जाकर मतदाताओं की पहचान कराने का मौका दिया है, यह तो सचमुच तेजी से हो रहा है चुनाव। लेकिन मुझे लगता है कि इससे पहले भी बहुत सारे मतदाताओं की पहचान कराने की बातें हुई थी, और अब फिर से यह सब करने की जरूरत है? मुझे लगता है कि हमें अपनी मताधिकार की रक्षा करनी चाहिए, लेकिन इससे पहले कि हम ऐसा करें, तो पार्टियों और नेताओं को अपने वादों पर चलना चाहिए। 🙄
 
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