बिहार में जातिवाद और राजनीति एक दूसरे से गहराई से जुड़े हुए हैं। यह विषय हमेशा रहा है, लेकिन आज भी वही प्रश्न बने हुए हैं कि बिहार में जातिवाद क्यों इतना प्रभावशाली है? इसके पीछे कौन से कारक हैं, और यह राजनीति कैसे बदल रही है? हम इन सवालों के जवाब ढूंढने के लिए अमर उजाला ने विशेष शृंखला 'मगधराज' लायी है।
बिहार में जातिवाद की कहानी एक ऐतिहासिक और पारंपरिक माहौल से जुड़ी हुई है। यहां पहाड़ और नदियों के बीच बैठा देश अपनी समृद्ध विरासत के लिए प्रसिद्ध है, लेकिन उसी समय अपनी जातीय पहचान को बनाए रखने में भी बहुत बल दिखाता रहा है। यहां की राजनीति भी इसी जातिवादी सोच के अधीन चली है।
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने महाकाव्य 'कुरukanश' में अपनी प्रेरणा और जीवन विचारों को लिखा था। वहीं उन्होंने जातिवाद के खिलाफ आवाज उठाई थी। लेकिन आज भी बिहार में जातिवाद राजनीति में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
बिहार की प्रमुख दलों ने अपनी-अपनी राजनीतिक परियोजनाओं के लिए जातिवाद को एक शक्तिशाली उपकरण बनाया है। नेताओं ने जातीय पहचान और आर्थिक स्थिति को अपने-अपने लाभ के लिए प्रयोग किया है, जिससे समाज में विभाजन और असमानता बढ़ गई है।
आजादी के पहले अंग्रेजों ने बिहार को प्रीमियर दिया, लेकिन बाद में वहां के नेताओं ने अपनी-अपनी जातीय पहचान को मजबूत बनाए रखा। इस तरह से राजनीति और जातिवाद एक-दूसरे के साथ गहराई से जुड़े हुए हैं।
आज, बिहार में जातिवाद और राजनीति का संबंध बहुत गंभीर है। यहां की राजनीति पली-फुली जातीय पहचान पर आधारित है, और इससे समाज में विभाजन बढ़ रहा है।
इस शृंखला 'मगधराज' के माध्यम से, हम बिहार में जातिवाद और राजनीति की गहराई में जाने की कोशिश करेंगे।
बिहार में जातिवाद की कहानी एक ऐतिहासिक और पारंपरिक माहौल से जुड़ी हुई है। यहां पहाड़ और नदियों के बीच बैठा देश अपनी समृद्ध विरासत के लिए प्रसिद्ध है, लेकिन उसी समय अपनी जातीय पहचान को बनाए रखने में भी बहुत बल दिखाता रहा है। यहां की राजनीति भी इसी जातिवादी सोच के अधीन चली है।
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने महाकाव्य 'कुरukanश' में अपनी प्रेरणा और जीवन विचारों को लिखा था। वहीं उन्होंने जातिवाद के खिलाफ आवाज उठाई थी। लेकिन आज भी बिहार में जातिवाद राजनीति में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
बिहार की प्रमुख दलों ने अपनी-अपनी राजनीतिक परियोजनाओं के लिए जातिवाद को एक शक्तिशाली उपकरण बनाया है। नेताओं ने जातीय पहचान और आर्थिक स्थिति को अपने-अपने लाभ के लिए प्रयोग किया है, जिससे समाज में विभाजन और असमानता बढ़ गई है।
आजादी के पहले अंग्रेजों ने बिहार को प्रीमियर दिया, लेकिन बाद में वहां के नेताओं ने अपनी-अपनी जातीय पहचान को मजबूत बनाए रखा। इस तरह से राजनीति और जातिवाद एक-दूसरे के साथ गहराई से जुड़े हुए हैं।
आज, बिहार में जातिवाद और राजनीति का संबंध बहुत गंभीर है। यहां की राजनीति पली-फुली जातीय पहचान पर आधारित है, और इससे समाज में विभाजन बढ़ रहा है।
इस शृंखला 'मगधराज' के माध्यम से, हम बिहार में जातिवाद और राजनीति की गहराई में जाने की कोशिश करेंगे।