Bihar Chunav: तीखी बयानबाजी के बाद पटना में जब आमने-सामने हुए खेसारी और मनोज तिवारी, जानें क्या हुआ

ਆਵੇ ਬिहार ਦੀਆਂ ਚੋਣਾਂ! ਮੈਨੂੰ ਖੇਸ਼ਰੀ ਅਤੇ ਮਣੋਜ ਤਿਵਾਰੀ ਦੀ ਮੁਲਾਕਾਤ 'ਚ ਹੈ, ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਬੇਅੰਤ ਪ੍ਰਵਾਸ ਵਿੱਚ ਦੇਖੋ! ਮੈਨੂੰ ਉਹਨਾਂ ਦੀ 'याद-मुल्ला' ਬੋਲਣ ਦੀ ਗੱਲ ਭੁੱਖੇਗੀ, ਮੈਂ ਵੀ ਆਪਣੇ ਅਭਿਆਨ 'ਚ ਸ਼ਾਸ਼ਤ੍ਰ' ਦੀ ਬੋਲਣ ਦੀ ਗੱਲ ਕਰਾਂਗਾ! 🙌
 
खेसारी और मनोज तिवारी की मुलाकात देखने से यह बात स्पष्ट है कि जब कोई व्यक्ति अपने मकसद को समझाने का प्रयास करता है, तो दूसरों को उनकी बात नहीं सुनना एक बड़ा बुरा काम है। खेसारी की बात सुनने के बजाय, मनोज को उसकी चाल थोड़ी-बहुत जल्दी पूरी करनी पड़ी।
 
मुझे लग रहा है कि ये दोनों व्यक्ति किसी भी तरह से एक-दूसरे को समझने में असमर्थ हैं 😐। खेसारी जी और मनोज तिवारी जी ने बातचीत में बहुत तीखापन लाया है, जिससे यह देखने में आना है कि वे अपने मतभेदों पर सही तरीके से चर्चा कर पाएं नहीं हैं।

खेसारी जी ने शिक्षा और विकास पर बहुत जोर दिया है, लेकिन यह सवाल उठता है कि अगर उनके द्वारा प्रस्तुत विचार सही हैं, तो फिर उन्हें 'याद-मुल्ला' कहने क्यों मिल रहा है? 🤔
 
खेसारी के बोलों से लगता है कि वे अपने अभियान में विकास और शिक्षा पर जोर देना चाहते हैं 🤔। एनडीए नेताओं पर आक्रोश व्यक्त करने वाले मनोज तिवारी से उनकी बातों में कुछ अलग नहीं लगता, लेकिन खेसारी को लगता है कि वे पागल घोषित कर देने की बात बिल्कुल सही नहीं कर रहे हैं 😐। शिक्षा और विकास पर जोर देने से उन्हें राजनीतिक लाभ मिल सकता है, लेकिन यह देखना दिलचस्प होगा कि वे अपने अभियान में यह बातों को कैसे पूरा करेंगे।
 
तस्वीरें देखकर मुझे यह विचार आया कि हमारे देश में राजनीति में तीखापन और नकारात्मकता बढ़ रही है। खेसारी और मनोज तिवारी की बातचीत से यह पता चलता है कि लोग अपने विरोधियों पर बयानबाजी करने के लिए तैयार हो गए हैं। यह हमें सोचने पर मजबूर करता है कि हम अपने राजनेताओं को कैसे चुनते हैं और उनके प्रति कैसे व्यवहार करते हैं।

क्या हम अपने नेताओं को व्यक्तिगत हमलों से जीतना चाहते हैं? क्या हम अपने देश के भविष्य की बात करने के बजाय नकारात्मकता पर ध्यान केंद्रित करते हैं? यह सवाल हमें सोचने पर मजबूर करता है कि हम अपने देश के लिए क्या चाहते हैं और हम कैसे एक-दूसरे के प्रति सहानुभूति और समझ का माध्यम बन सकते हैं। 🤔
 
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