Bihar Election 2025: चुनाव प्रचार के आखिरी दिन मैदान से हटे मुकेश सहनी के भाई, बड़ी वजह आई सामने

बिहार विधानसभा चुनाव 2025: नीतिश कुमार के खिलाफ लड़ने वाले उम्मीदवारों में से एक हैं अफज़ल अली, लेकिन उनकी राजनीतिक पारिवारिक परिस्थितियां इस दौरान उलझ गईं। उन्हें चुनाव के आखिरी दिन मैदान से हटा दिया गया, और इसके पीछे बड़ी वजह है महागठबंधन के सीट बंटवारे में।

चुनाव के पहले दिन लालू और तेजस्वी ने अफज़ल अली को सिंबल देने का फैसला किया, लेकिन बाद में यह सीट वीआईपी के खाते में चली गई। इसके बाद तेजस्वी ने अफज़ल से मैदान से हटने के लिए कहा, लेकिन वह नहीं माने। चुनाव का पर्चा सही होने पर अफज़ल को राजद का चुनाव चिन्ह भी मिल गया।
 
ਦੱਖਣੀ ਪੂਰਬ ਵਿੱਚ ਆਏ ਇਹ ਚੁਣਾਵਟ ਤਾਂ ਗੈਲਾਪ੍ਰਿੰਸ ਹੀ ਦਿੱਖ ਰਹੀ। 🙄

ਨीतish Kumar ki chunauti wale kisi bhi ke liye pichle pehli baar thodi darr lag gayi hogi. Ab ismein afzal alie ko bhi samajne mein aya hai. Par woh sachmaan hai, koi to phas gae nahin.

Mahagathbandhan ke seat distribution ne usko mushkilein pahuncayi hain. Tazeewi aur Laloo ki team wali baat sahi nahi chal rahi hai. Ab afzal alie ko thoda alag kahan dekhne padega.
 
अफज़ाल अली की सीट की बात करें, तो यह सच है कि उनकी पारिवारिक परिस्थितियां इस दौरान उलझ गईं। लेकिन मुझे लगता है कि चुनाव के आखिरी दिन उन्हें हटा देना एक अच्छा निर्णय था। राजनीति में तेजस्वी और लालू पांडे की अनुभव और ज्ञान को उनके खिलाफ लड़ने वालों के लिए खतरा हो सकता है।

लेकिन, चुनाव के पहले दिन अफज़ाल अली को सिंबल देने का फैसला करने का तरीका थोड़ा अजीब लगा। और जब बाद में यह सीट वीआईपी के खाते में चली गई, तो यह एक बड़ी चोट लगी। अफज़ाल अली ने अपने निर्णय पर बहुत भारी बोझ उठाया है, और अब देखना दिलचस्प होगा कि वह आगे क्या करेंगे।

मुझे लगता है कि चुनाव के बाद, हमें अपने नेताओं को एक विशेष तरीके से मूल्यांकन करना होगा। उनकी दूरदर्शिता, उनकी राजनीतिक समझ, और उनकी नेतृत्व क्षमता को ध्यान में रखते हुए हमें उनके फैसलों पर विचार करना होगा।
 
क्या तो बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की सीट बंटवारों की गहराई देखकर हैरान हूं... नीतिश कुमार के खिलाफ लड़ने वाले अफज़ल अली पर ऐसी परिस्थितियां लगातार उलझ रही हैं। सबसे पहले यह सीट राजद का था, फिर तेजस्वी ने इसे अपनाया, लेकिन अचानक बाद में क्यों हुआ? और अफज़ल अली ने चुनाव से खुद को अलग रखने की बहुत मुश्किल तय की, क्या ये वास्तव में उनके राजनीतिक लक्ष्यों को बढ़ावा देना है? यह सब चुनावी जालचर्चा तो नहीं बन गया? 🤔
 
अरे, यह बहुत दुखद है कि अफज़ल अली को चुनाव के आखिरी दिन मैदान से हटा दिया गया। उनकी पारिवारिक परिस्थितियां ऐसी हैं जिसमें उम्मीदें टूटती हैं। लेकिन फिर भी, मुझे लगता है कि यह एक अच्छा मौका है उन्हें अपनी राजनीतिक जिंदगी को दोबार से सोचकर आगे बढ़ने का। चुनाव के पहले दिन लालू और तेजस्वी ने अफज़ल अली को सिंबल देने का फैसला किया, लेकिन बाद में यह सीट वीआईपी के खाते में चली। यह तो बहुत भाईचारा है। 🤔
 
अफज़ल अली की सीट बंटवारी में लालू और तेजस्वी ने विपक्षी दलों के साथ ही अपने खुद के राजनीतिक परिवार को भी धोखा दिया। यहां तक कि चुनाव के आखिरी दिन भी उनकी पार्टी के नेतृत्व में उन्हें मैदान से बाहर कर दिया गया, जो एक बड़ा झटका है। यह दिखाता है कि विपक्ष में अपने आप सही ढंग से लड़ने की क्षमता नहीं है, खासकर जब राजनीतिक परिवारों के बीच धोखाधड़ी और समझौते शामिल होते हैं।
 
अफज़ल अली को ऐसा दौर तो अच्छा लगता होगा नहीं... उनकी पारिवारिक स्थिति इस समय बहुत खराब है। उन्हें यह पता भी नहीं था कि सीट बंटवारे में अपना पर्चा निकल जाएगा। और फिर तेजस्वी से लड़ने के लिए उन्हें इतना साहस तो कहाँ से आया? 🤔

चुनाव पहले ही उलझ गया था, और अब यह देखना दिल का दARRRR पटवारा है। चुनाव के आखिरी दिन उनका पर्चा निकलने का मतलब एक बात तो साफ़ है - राजनीति में जीने के लिए बहुत साहस और दमदार नहीं होता।
 
मुझे लगता है कि अगर हम अपनी सड़कों की साफ-सफाई पर ध्यान दें तो ज्यादा ही अच्छे परिणाम मिल सकते हैं। यह बात मेरी दादी की भी कहती हैं जिन्होंने हमेशा कहा कि "सड़कें पहली सीट हैं, अगर नहीं साफ-सुथरी है तो दूसरी सीटों को किसी भी तरह से संभाल लेना मुश्किल है।"

मैंने कल अपने नानाजी के पास जाकर उनसे उन्हें कैसे खाना पकाएं, उन्होंने मुझे एक अच्छा टिप कहा था, जिससे बिना किसी मिश्रण के मीठा बनाया जा सकता है।
 
अफज़ाल अली को उनके राजनीतिक पारिवारिक जीवन की बातें करने से पहले तो मुझे यकीन था वो इस चुनाव में जीत लेंगे, लेकिन फिर चुनाव की दिनचर्या को देखने पर मुझे लगता है कि यह बहुत ही अजीब तरीके से चल रहा है। पहले तो लालू पासों ने उनके लिए सिंबल दिया, लेकिन फिर वीआईपी ने उस सिंबल को अपने खाते में ले लिया। अब तेजस्वी भी उन्हें लड़ने का मन नहीं कर रहे हैं, लेकिन फिर भी वो चुनाव जीतने के लिए एक्सप्रेस वोट बनाने का दौर चल रहा है। 🤔 मुझे लगता है कि यह चुनाव बहुत ही दिलचस्प होगा, और यह देखना मजेदार होगा कि आखिर में किसको सफलता मिलेगी।
 
अफज़ल अली से चुनाव मैदान से हटा दिया जाना तो बहुत अच्छा है लेकिन यह वास्तविकता है कि राजनीति में हर बार खेल खेलना जरूरी नहीं है। अफज़ल अली ने अपने फैसलों से दिखाया है कि वह एक सच्चा नेता हैं और राजद के लिए बहुत मेहनत कर रहे थे।
 
बिहार विधानसभा में चुनाव का यह दौरा हमेशा से ऐसे ही रहा, माफ कर दिया 🙏। चुनाव के पहले दिन लालू और तेजस्वी ने अफज़ल अली को सिंबल देने का फैसला किया, लेकिन बाद में यह सीट वीआईपी के खाते में चली गई। मुझे लगता है कि यह चुनाव किसी भी उम्मीदवार के लिए चुनौतीपूर्ण होगा।
 
अफज़ल अली को मैदान से हटा दिया गया? तो लगता है वीवीआईपी ने फिर से राजनीति में अपनी खाली पंजाबी कुर्सी खोजी हुई। लेकिन यह सवाल उठता है कि अगर अफज़ल अली नहीं बन सकते, तो उनकी पार्टी कैसे बन सकती है?
 
बिहार विधानसभा चुनाव में ऐसी बातें तो बहुत होती हैं! 😂 इस बार अफज़ल अली की सीट बंटवारे में उलझना कुछ अजीब लग रहा है। पहले उन्हें लालू और तेजस्वी ने सिंबल दिया, फिर वीआईपी को दे दी, फिर तेजस्वी ने भी कह दिया कि बाहर जाओ, लेकिन वह नहीं माना। अब चुनाव के आखिरी दिन मैदान से हटा दिया गया, यह तो कोई नई चीज़ नहीं है। लेकिन यह तो राजनीति की ऐसी बातें हैं जो हमेशा होती रहती हैं। 🤔
 
अरे, यह बिहार विधानसभा चुनाव बहुत दिलचस्प होगा 🤔। तेजस्वी ने अफज़ल अली से लड़ने का फैसला किया, लेकिन पार्टी की परिस्थितिें ऐसी थीं कि वह उन्हें मैदान से हटा देनी पड़ी। चुनाव के आखिरी दिन वहां ऐसी गतिविधियाँ होनी ज़रूरी हैं कि वोटों का नतीजा पता नहीं चल पाएगा।
 
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