बिहार में चुनावों में रोजगार, घुसपैठ, सांस्कृतिक पहचान और पलायन, सीमांचल का वोटर 'सुरक्षा' और 'अस्मिता' के बीच फंसा है।
इस चुनाव में, एनडीए, महागठबंधन और एआईएमआईएम ने अलग-अलग पिच पर खड़े होकर अपनी-अपनी राजनीति कर रहे हैं। पूर्णिया और आस-पास के जिलों में घूमते ही यह समझ आता है कि सीमांचल की मिट्टी नरम है, लेकिन यहां राजनीतिक फैसले बहुत सख्त होते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि मतदान हमेशा बिहार के अन्य हिस्सों से अधिक होता है।
इस चुनाव में, कृषि अर्थव्यवस्था ने जातीय समीकरणों को सीधी चुनौती दिया है। सीमांचल-मिथिलांचल का मखाना अब सुपरफूड नहीं, बल्कि राजनीतिक सुपरफॉर्मूला बन चुका है। नरेंद्र मोदी ने मखाना बोर्ड, मक्का प्रोसेसिंग क्लस्टर और बिहार न्यूट्री-बास्केट जैसी योजनाओं से सीमांचल के किसानों को नई पहचान दी है। यह सिर्फ योजना नहीं, बल्कि वह राजनीतिक सूत्र है, जिसके जरिये एनडीए ने पारंपरिक एमवाई (मुस्लिम-यादव) आधार पर प्रहार किया है।
राहुल गांधी ने खेत में उतरकर मजदूरों की रोजी-रोटी और प्रवास की मजबूरी पर सवाल उठाए। उन्होंने मखाना की मेहनत को सीधे रोजगार और सरकारी मदद से जोड़ा, ताकि यह मुद्दा सिर्फ उत्पादन नहीं, बल्कि वितरण और न्याय का बन जाए। इस राजनीति ने मखाना के मुद्दे को खेती-किसानी ही नहीं, बल्कि पलायन, गरीबी और बिहार की अर्थव्यवस्था से जोड़ दिया।
इस चुनाव में, घुसपैठ और राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे हावी हो गए। पहले चरण में विकास और सुशासन पर फोकस करती रहे एनडीए के शीर्ष नेताओं ने अपनी-अपनी शैली में इस मुद्दे को जनता की पहचान से जोड़कर यहां का सबसे ज्वलंत मुद्दा हवा दे दी।
पीएम मोदी ने सीमांचल में हो रही रैलियों में अवैध बांग्लादेशी घुसपैठ, सीमा की असुरक्षा और मदरसा मॉनिटरिंग को उठाया। उनका सीधा संदेश था कि सीमा असुरक्षित तो बिहार असुरक्षित। पीएम ने यहां राम मंदिर का मुद्दा भी उठाया, उसे कौन नहीं बनने दे रहा था।
गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि घुसपैठ बढ़ी तो बिहार की धार्मिक-सांस्कृतिक विरासत तक खतरा पहुंच सकता है। यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने अपने फायरब्रांड अंदाज में इसे और तीखा किया। उन्होंने कहा कि एनडीए सत्ता में आई घुसपैठियों को बाहर कर उनकी संपत्तियां जब्त कर गरीबों को बांटी जाएंगी।
महागठबंधन व एआईएमआईएम ने अलग-अलग तरह से पलटवार किया है। राहुल-तेजस्वी की जोड़ी ने एनडीए की बहस को ध्रुवीकरण की राजनीति बताकर खारिज किया। राजद व कांग्रेस दोनों की कोशिश है कि इस मुद्दे पर भाजपा की पिच पर न जाया जाए।
ओवैसी ने कहा कि यहां घुसपैठिया कोई नहीं, बराबर के नागरिक हैं। ओवैसी पूछ रहे हैं कि जब हर जाति का अपना नेता हो सकता है, तो मुसलमानों का क्यों नहीं?
इस चुनाव में, सुरक्षा बनाम अधिकार, अर्थशास्त्र बनाम जाति, विकास बनाम विवशता, भितरघात बनाम दल-बदल की रणनीति और सांस्कृतिक संकेत बनाम विकास के दावे में निर्णायक लड़ाई हो रही है।
इस चुनाव में, एनडीए, महागठबंधन और एआईएमआईएम ने अलग-अलग पिच पर खड़े होकर अपनी-अपनी राजनीति कर रहे हैं। पूर्णिया और आस-पास के जिलों में घूमते ही यह समझ आता है कि सीमांचल की मिट्टी नरम है, लेकिन यहां राजनीतिक फैसले बहुत सख्त होते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि मतदान हमेशा बिहार के अन्य हिस्सों से अधिक होता है।
इस चुनाव में, कृषि अर्थव्यवस्था ने जातीय समीकरणों को सीधी चुनौती दिया है। सीमांचल-मिथिलांचल का मखाना अब सुपरफूड नहीं, बल्कि राजनीतिक सुपरफॉर्मूला बन चुका है। नरेंद्र मोदी ने मखाना बोर्ड, मक्का प्रोसेसिंग क्लस्टर और बिहार न्यूट्री-बास्केट जैसी योजनाओं से सीमांचल के किसानों को नई पहचान दी है। यह सिर्फ योजना नहीं, बल्कि वह राजनीतिक सूत्र है, जिसके जरिये एनडीए ने पारंपरिक एमवाई (मुस्लिम-यादव) आधार पर प्रहार किया है।
राहुल गांधी ने खेत में उतरकर मजदूरों की रोजी-रोटी और प्रवास की मजबूरी पर सवाल उठाए। उन्होंने मखाना की मेहनत को सीधे रोजगार और सरकारी मदद से जोड़ा, ताकि यह मुद्दा सिर्फ उत्पादन नहीं, बल्कि वितरण और न्याय का बन जाए। इस राजनीति ने मखाना के मुद्दे को खेती-किसानी ही नहीं, बल्कि पलायन, गरीबी और बिहार की अर्थव्यवस्था से जोड़ दिया।
इस चुनाव में, घुसपैठ और राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे हावी हो गए। पहले चरण में विकास और सुशासन पर फोकस करती रहे एनडीए के शीर्ष नेताओं ने अपनी-अपनी शैली में इस मुद्दे को जनता की पहचान से जोड़कर यहां का सबसे ज्वलंत मुद्दा हवा दे दी।
पीएम मोदी ने सीमांचल में हो रही रैलियों में अवैध बांग्लादेशी घुसपैठ, सीमा की असुरक्षा और मदरसा मॉनिटरिंग को उठाया। उनका सीधा संदेश था कि सीमा असुरक्षित तो बिहार असुरक्षित। पीएम ने यहां राम मंदिर का मुद्दा भी उठाया, उसे कौन नहीं बनने दे रहा था।
गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि घुसपैठ बढ़ी तो बिहार की धार्मिक-सांस्कृतिक विरासत तक खतरा पहुंच सकता है। यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने अपने फायरब्रांड अंदाज में इसे और तीखा किया। उन्होंने कहा कि एनडीए सत्ता में आई घुसपैठियों को बाहर कर उनकी संपत्तियां जब्त कर गरीबों को बांटी जाएंगी।
महागठबंधन व एआईएमआईएम ने अलग-अलग तरह से पलटवार किया है। राहुल-तेजस्वी की जोड़ी ने एनडीए की बहस को ध्रुवीकरण की राजनीति बताकर खारिज किया। राजद व कांग्रेस दोनों की कोशिश है कि इस मुद्दे पर भाजपा की पिच पर न जाया जाए।
ओवैसी ने कहा कि यहां घुसपैठिया कोई नहीं, बराबर के नागरिक हैं। ओवैसी पूछ रहे हैं कि जब हर जाति का अपना नेता हो सकता है, तो मुसलमानों का क्यों नहीं?
इस चुनाव में, सुरक्षा बनाम अधिकार, अर्थशास्त्र बनाम जाति, विकास बनाम विवशता, भितरघात बनाम दल-बदल की रणनीति और सांस्कृतिक संकेत बनाम विकास के दावे में निर्णायक लड़ाई हो रही है।