मुझे लगता है कि अगर हम संविधान बनाने वालों को अलग करके देखें, तो भीमराव अंबेडकर की भूमिका थोड़ी मुश्किल हो जाती है। वह एक सच्चे राजनेता और समाज सेवक थे, लेकिन कुछ लोग उनकी दलित पहचान को कभी नहीं भूल पाए।
अगर हम याद दिलाते हैं कि अंबेडकर जी ने अपनी जिंदगी में बहुत सारे सामाजिक परिवर्तन लाने का साहस किया, तो उनकी पहचान को सवाल करना थोड़ा गलत लग सकता है। लेकिन फिर भी, अगर हम उन्हें संविधान बनाने वालों में से एक के रूप में देखते हैं, तो यह सवाल जरूर उठाया जाना चाहिए।
मुझे लगता है कि हमें अपनी ऐतिहासिक परंपराओं और सांस्कृतिक विरासत को समझने की जरूरत है, न कि उन्हें नकारने की।