मोकामा ग्राउंड रिपोर्ट: बिहार की सियासत में खूनी धूल की परत...अब बाहुबल से मुक्ति चाहता है युवा वर्ग

बिहार में खूनी धूल की परत फिर से पड़ी है, जब मोकामा ग्राउंड पर हत्या और जदयू प्रत्याशी अनंत सिंह की गिरफ्तारी ने राजनीतिक वर्चस्व में गरमाया है। लेकिन यह घटना भारतीय राजनीति में एक नई खेल को शुरू करती है, जहां युवाओं को बीच-बीच में तात्कालिकता के साथ सत्ता के लिए संघर्ष करना पड़ता है।

बिहार की इस मिट्टी में एक पुरानी कहावत है कि यहां धूल सिर्फ उड़ती नहीं, इतिहास भी लिखती है। मोकामा ग्राउंड पर हुई घटना के बाद, यह कहावत और भी अधिक महत्वपूर्ण हो गई। युवाओं को यह देखना नहीं चाहिए, जहां जातीय श्रेष्ठता का बोध या गुटबंदी यहां के आकाश पर अपराध और दहशत की कालिमा लगाने को तैयार हो।

नब्बे के दशक में अखबारों की सुर्खियां...कहीं अपहरण, कहीं नरसंहार, कहीं चुनावी हत्याएं थीं। लालू-राबड़ी शासन और जंगलराज का शब्द उसी समय राजनीतिक शब्दावली में स्थायी जगह ले गया। जहानाबाद की धरती पर नक्सली सेनाएं और प्रतिहिंसक जन्म यानी रणवीर सेना बनी थी। तब यहां की रातें सिर्फ अंधेरी नहीं, बल्कि खौफ से सनी होती थीं। यही वह पृष्ठभूमि थी जिसमें बिहार की राजनीति में बाहुबली अध्याय फूटा।

अब, जब युवाओं को सत्ता के लिए तात्कालिकता से संघर्ष करना पड़ता है, तो उन्हें यह समझना चाहिए कि राजनीति में न केवल मतों की जंग लड़ी जाती है, बल्कि ताकत और सम्मान की भी घोषणा होती है। उन्हें अपने अधिकारों और स्वतंत्रता के लिए लड़ना चाहिए, न कि गुटबंदी और अपराध की दिशा में।
 
मोकामा ग्राउंड की घटना ने बिहार की राजनीति में एक नए खेल को शुरू कर दिया है 🤯। युवाओं को तात्कालिकता के साथ सत्ता के लिए संघर्ष करना पड़ता है, और यही ऐसा होने का एक कारण है। लेकिन मेरे अनुसार, यह घटना भारतीय राजनीति को एक नई दिशा देने का अवसर है 🌟

बिहार की इस मिट्टी में इतिहास लिखता है, और हमें यह देखना नहीं चाहिए कि यहां जातीय श्रेष्ठता या गुटबंदी का बोध तैयार हो। हमें अपने अधिकारों और स्वतंत्रता के लिए लड़ना चाहिए, न कि अपराध और दहशत की दिशा में। 🌱

नब्बे के दशक में, अखबारों की सुर्खियां थीं अपहरण, नरसंहार, और चुनावी हत्याएं। लेकिन अब, हमें यह समझना चाहिए कि राजनीति में न केवल मतों की जंग लड़ी जाती है, बल्कि ताकत और सम्मान की भी घोषणा होती है। 🤝

युवाओं को सत्ता के लिए तात्कालिकता से संघर्ष करने दें, लेकिन उन्हें यह समझना चाहिए कि राजनीति में न केवल लड़ना होता है, बल्कि समझना और सही निर्णय लेना भी होता है। 💡
 
मोकामा ग्राउंड पर बीती घटना बहुत ही दुखद है। युवाओं को पता नहीं है कि उनकी असहिष्णुता और भावनात्मक नियंत्रण से शुरू होने वाले यह टकराव कैसे तीव्र हो सकते हैं। मैंने देखा है कि कई बार अपने दोस्तों या परिवार के साथ कोई छोटी गलती करने पर हमें खुशी-खुशी और शांति से माफ कर दिया जाता है, लेकिन राजनीतिक विरोधियों को तात्कालिकता से अपने समर्थन पाने के लिए अपना गुस्सा बाहर करने के लिए मजबूर किया जाता है। यह बहुत ही खतरनाक है और हमें इसके खिलाफ हमेशा सजग रहना चाहिए।
 
मोकामा ग्राउंड पर हुई घटना से लगता है कि बिहार में राजनीतिक वर्चस्व के लिए तात्कालिकता फिर से शुरू हो गई है 🤯। लेकिन यह बात सही नहीं है, युवाओं को सत्ता के लिए तात्कालिकता से संघर्ष करना पड़ता है तो इसका मतलब है कि वे अपने मतों की जंग लड़ना भूल गए हैं और अब ताकत और सम्मान के लिए लड़ने लगते हैं। 🤔

मुझे लगता है कि यहां पर एक बड़ा मुद्दा उठने का समय आ गया है, हमें युवाओं को समझने की जरूरत है और उन्हें अपने अधिकारों और स्वतंत्रता के लिए लड़ने के लिए प्रेरित करने की जरूरत है। लेकिन सबसे पहले हमें यह तय करना होगा कि हम अपने राजनेताओं को ऐसे व्यक्ति चुनना चाहते हैं जो सत्य और न्याय के साथ चलें, नहीं तो यह घटना फिर से हो सकती है। 🙏
 
मुझे यह घटना बहुत पेचीदा लग रही है...बिहार की राजनीति में ताकत और शक्ति की लड़ाई में युवाओं को खुद को फंसाना खतरनाक है। वे अपने अधिकारों के लिए लड़ना चाहिए, न कि जातीय प्रतिशोध या गुटबंदी में। यह हमेशा से बिहार की समस्या रही है, और अब जब युवाओं को सत्ता के लिए तात्कालिकता से संघर्ष करना पड़ता है...तो उन्हें अपने भविष्य के बारे में सोचने देना चाहिए, न कि केवल वर्तमान की परवाह करें।

अगर युवाओं ने राजनीति में सत्ता की लड़ाई में ताकत और सम्मान की भावना को अपनाया, तो बिहार की यह पूरी कहावत सच होगी। यहां धूल सिर्फ उड़ती नहीं, इतिहास भी लिखती है। मैं आशा करता हूं कि युवाओं ने अपने भविष्य के लिए एक नई दिशा चुनने का फैसला कर लिया होगा।

कुछ सोचें...बढ़पे को तुम्हारी मिट्टी कौन लिखती है? 🌾💬
 
मोकामा ग्राउंड पर हुई घटना से हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि राजनीति में तात्कालिकता और शक्ति का खेल क्यों इतना खतरनाक होता है। लेकिन फिर भी, हमें याद रखना चाहिए कि राजनेताओं के पास अपने देशभक्ति और नागरिक कर्तव्य को पूरा करने की क्षमता होनी चाहिए। अगर वे सत्ता के लिए तात्कालिकता से संघर्ष करते हैं, तो उन्हें यह समझना चाहिए कि उनके नेतृत्व में देश की एकता और शांति पर कैसा प्रभाव पड़ता है। हमें अपने युवाओं को यह सिखाना चाहिए कि राजनीति में सत्ता लेने का सही तरीका है न केवल अपने वोटों को बढ़ाने के लिए बल्कि अपने समाज की समस्याओं का समाधान करने के लिए। 🙏
 
Wow 😮 बिहार में ऐसी घटनाएं तो पहले भी हुई हैं लेकिन अब यह एक नई खेल को शुरू करती है जहां युवाओं को तात्कालिकता से सत्ता के लिए लड़ना पड़ता है। यह एक बहुत बड़ा मुद्दा है और हमें इसकी सावधानी से निगरानी करनी चाहिए।
 
"जीवन जीने का सिर्फ एक रास्ता है, लेकिन हमें अपने विचारों और निर्णयों को उसी रास्ते पर चलना चाहिए।" 💡

मुझे लगता है कि बिहार में जो घटनाएं हो रही हैं, वह एक बड़ा संकेत है। हमें अपने देश की राजनीति में बदलाव लाने की जरूरत है, जहां युवाओं को सत्ता में आने के लिए तात्कालिकता से संघर्ष करना पड़ता है। लेकिन हमें यह भी समझना चाहिए कि राजनीति में न केवल मतों की जंग लड़ी जाती है, बल्कि ताकत और सम्मान की भी घोषणा होती है।
 
मैंने बिहार में हुई घटना को पढ़ा तो यह तो बहुत दुखद है...मोकामा ग्राउंड पर हत्या हुई, अनंत सिंह जदयू प्रत्याशी को गिरफ्तार कर लिया गया, फिर युवाओं में गर्माई हुई और राजनीतिक वर्चस्व में शोर बढ़ गया...मैंने अपने दोस्तों से बात की, वे भी कह रहे थे कि यह तो बहुत ही अजीब है कि क्यों युवाओं को सततिकता से लड़ना पड़ता है, और फिर से इतिहास लिखने लगता है...बिहार में यह पुरानी कहावत सचमुच वाजिब है, यहां धूल सिर्फ उड़ती नहीं है, इतिहास भी लिखती है...मैंने अपनी बहन से पूछी, क्या वह इस घटना को देख सकती है? उसने कहा, "नहीं, मैं तो ऐसा नहीं चाहती।" मैंने उसकी बात समझी, लेकिन यह तो बहुत ही गंभीर है...युवाओं को सत्ता के लिए लड़ना पड़ता है, लेकिन वे अपने अधिकारों और स्वतंत्रता के लिए नहीं, फिर से अपराध और दहशत के लिए...🤕
 
मोकामा ग्राउंड पर हुए भडकोले को देखकर तो लगता है कि बिहार की राजनीति में कोई नई खेल शुरू नहीं हुआ, बल्कि पुरानी कहावत सच हो गई है। यहां धूल सिर्फ उड़ती नहीं, इतिहास भी लिखती। युवाओं को यह समझना चाहिए कि जातीय श्रेष्ठता और गुटबंदी ने बीते सदियों में भारतीय राजनीति को इतना दर्दनाक बनाया है।

अगर 90 के दशक के अखबारों की सुर्खियां देखकर युवाओं को अच्छा लगता है, तो वे खुद को बताएं कि उनके पास यही ज्ञान और अनुभव है। नब्बे के दशक में जहानाबाद की धरती पर नक्सली सेनाएं बनी, आज भी वही राजनीतिक शब्दावली अपनी जगह पर है। युवाओं को यह समझना चाहिए कि सत्ता और ताकत की लड़ाई में न केवल मतों की जंग लड़ी जाती है, बल्कि ताकत और सम्मान की भी घोषणा होती है।

🚨 राजनीति में तात्कालिकता से संघर्ष करना सबसे जरूरी, लेकिन गुटबंदी और अपराध की दिशा में नहीं। युवाओं को अपने अधिकारों और स्वतंत्रता के लिए लड़ना चाहिए। 🙌
 
मैं समझता हूँ कि बिहार में मोकामा ग्राउंड पर हुई घटना ने राजनीतिक वर्चस्व में गरमाया है, लेकिन यह भी सच है कि युवाओं को सत्ता के लिए तात्कालिकता से संघर्ष करना पड़ता है। हमारे देश में कई जगहों पर ऐसा ही देखा गया है, जहां राजनीतिक दल अपने राजनीतिक करियर में एक-दूसरे को हराने के लिए तात्कालिकता को अपनाया करते हैं।
 
मोकामा की घटना बहुत ही दिलचस्प है 🤔। लगता है कि युवाओं को बार-बार सत्ता के लिए लड़ने से उन्हें अपने अधिकारों के बारे में पता चलने लगा है। लेकिन इसके साथ ही ताकत और सम्मान की भी बहुत बड़ी खोज करनी पड़ रही है 🤑। मुझे लगता है कि हमें अपनी राजनीतिक पार्टियों को और भी स्थायी बनाने की जरूरत है।
 
मोकामा की घटना बहुत ही चिंताजनक है 🤕। यहां पर जदयू प्रत्याशी को गिरफ्तार करने से पहले से ही यह तैयार था कि नेताओं को खूनी धूल में फँसाया जाए। और अब जब युवाओं को सत्ता के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है, तो उन्हें यह समझना चाहिए कि राजनीति में ताकत की भी जंग लड़ी जाती है, न कि नसबंदी। पार्टियों और नेताओं के बीच की धुन में बदलाव आ रहा है।
 
मोकामा ग्राउंड पर यह घटना तो हिन्दुस्तान की राजनीतिक जंग को फिर से पलट देती है 🤯। लेकिन युवाओं को यह नहीं भूलना चाहिए कि राजनीति में ताकत और सम्मान की बात कही जाती है, लेकिन दहशत और अपराध की स्थिति फिर से बन सकती है। युवाओं को अपनी आवाज़ सुननी चाहिए, उनकी बात समझनी चाहिए। हमें उन्हें राजनीतिक जंग में नहीं डालना चाहिए, बल्कि उनके अधिकारों और स्वतंत्रता की लड़ाई में खड़े होना चाहिए 🙌
 
मोकामा ग्राउंड पर जो घटना हुई है, यह हमें याद दिलाती है कि बिहार में राजनीति एक जटिल खेल है। जब तक भारतीय जनता पार्टी के नेताओं को उनके पुराने विरोधियों पर इस तरह से हमला करने के लिए मजबूर नहीं किया गया, तब तक सत्ता के लिए राजनीतिज्ञों के बीच तात्कालिकता की लड़ाई जारी रहेगी।
 
मोकामा ग्राउंड पर हुई घटना से बिहार के युवाओं को यह सीखना बहुत जरूरी है कि सत्ता के लिए तात्कालिकता के साथ संघर्ष करने से अच्छा नतीजा नहीं निकलेगा। हमें अपने अधिकारों और स्वतंत्रता के लिए लड़ना चाहिए, न कि गुटबंदी और अपराध की दिशा में। यह जानते हुए भी कि इतिहास हमेशा लिखता है, हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारी कहानी एक नई दिशा में आगे बढ़े।

मुझे लगता है कि युवाओं को अपने भविष्य को बनाने के लिए हमें सोच-विचार करना होगा। उन्हें यह समझना चाहिए कि सत्ता के लिए जंग लड़ने में उनकी भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है, लेकिन यह जंग उन्हें खुद नहीं लड़ना चाहिए। उन्हें अपने मतों और आवाज़ को सुनने के लिए बैठना चाहिए, न कि गुटबंदी और अपराध की दिशा में।

आज के युवाओं को यह समझना बहुत जरूरी है कि राजनीति में ताकत और सम्मान भी जीतने की खेल है। उन्हें अपने सपनों को पूरा करने के लिए कड़ी मेहनत करनी चाहिए, न कि बाहरी शक्तियों पर भरोसा करना।

मैं आशा करता हूं कि युवाओं को यह समझने में मदद मिलेगी और वे अपने भविष्य को एक नई दिशा में आगे बढ़ाएंगे। हमें उन्हें समर्थन और प्रोत्साहन देने की जरूरत है ताकि वे अपने सपनों को सच कर सकें।
 
अरे वाह, ये तो बहुत भावुक लग रहा है 🤕 मोकामा ग्राउंड पर हुई घटना से ज्यादा चिंतित हूँ अपने देश की राजनीति की भविष्य की दिशा के बारे में 🤔 अगर हम युवाओं को तात्कालिकता से सत्ता के लिए संघर्ष करने के लिए प्रेरित करें तो वे अपने अधिकारों और स्वतंत्रता के लिए लड़ने में भी सक्षम होंगे। हमें उन्हें गुटबंदी और अपराध की दिशा में नहीं निकलने देना चाहिए, बल्कि उनको राजनीति में ताकत और सम्मान की घोषणा करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए 🙌
 
नालेज़, यह तो पूरी तरह से सच है 🤔, जब तक हमें ये नहीं सिखाया जाता, तब तक खूनी धूल की परत फिर से पड़ने लगती है... बिहार में तो यह एक नई खेल शुरू हुआ है, जहां युवाओं को सत्ता के लिए संघर्ष करना पड़ता है... और यही बात हर जगह सुनाई देती है।
 
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