मेरी राय तो यही है कि हमारे देश की बहुत सारी समस्याओं का समाधान करने के लिए हमें अपनी एकता पर जोर देना चाहिए। मोहन भागवत जी ने बात की है कि हम सभी एक ही पूर्वज के वंशज हैं, यह सच्चाई है। लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि हमें अपनी सांस्कृतिक बहुता को दबाना चाहिए। हमारी सांस्कृतिक विविधता ही हमारी ताकत है।
मैं समझता हूँ कि कुछ लोगों को लगता है कि हमें अपने पास की सभी संस्कृतियों को दबाना चाहिए और अपनी एक ही संस्कृति को बढ़ावा देना चाहिए। लेकिन मैं इस तरह की बातों से सहमत नहीं हूँ। हमें अपनी सभी संस्कृतियों को स्वीकार करना चाहिए और उन्हें एक-दूसरे से मिलकर एक नया समृद्धि का रास्ता तैयार करना चाहिए।
हमें यह भी याद रखना चाहिए कि हमारे देश में बहुत सारे लोग हैं जो अपनी अलग-अलग संस्कृतियों और परंपराओं को बनाए रखना चाहते हैं। हमें उनकी बातों को समझना चाहिए और उन्हें सम्मान करना चाहिए।
मैं समझता हूँ कि कुछ लोगों को लगता है कि हमें अपने पास की सभी संस्कृतियों को दबाना चाहिए और अपनी एक ही संस्कृति को बढ़ावा देना चाहिए। लेकिन मैं इस तरह की बातों से सहमत नहीं हूँ। हमें अपनी सभी संस्कृतियों को स्वीकार करना चाहिए और उन्हें एक-दूसरे से मिलकर एक नया समृद्धि का रास्ता तैयार करना चाहिए।
हमें यह भी याद रखना चाहिए कि हमारे देश में बहुत सारे लोग हैं जो अपनी अलग-अलग संस्कृतियों और परंपराओं को बनाए रखना चाहते हैं। हमें उनकी बातों को समझना चाहिए और उन्हें सम्मान करना चाहिए।