PM Modi: 'न्याय की भाषा वही हो, जो न्याय पाने वाले को समझ आए...', पीएम मोदी का 'ईज ऑफ जस्टिस' पर जोर

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि न्याय की भाषा वही होनी चाहिए, जो न्याय पाने वाले को समझ आए। इसका स्वागत करने के लिए उन्होंने बातचीत में कहा, 'हमारी अदालतों और कानूनी सेवाओं वाले अधिकारियों, युवाओं के कानून के छात्रों और आम आदमी के बीच एक सेतु का काम करते हैं। हमारी न्याय प्रणाली को मजबूत करने की जरूरत है।
 
भाई, मुझे ये बात बहुत पसंद आ रही है 😊, कि प्रधानमंत्री जी सोच रहे हैं कि हमारी न्याय प्रणाली बदलनी चाहिए ताकि वह सच्ची न्याय दिला सके। लेकिन मुझे लगता है कि यह सिर्फ शब्दों की बात नहीं हो सकती, हमें अपनी अदालतें, कानूनी सेवाओं, और सबके बीच समझौता करना होगा। भाई, हमारे देश में इतने सारे लोग हैं जिन्हें न्याय चाहिए, और हमें उन्हें सुनना होगा, उनकी आवाज़ सुननी होगी। अगर हम अपनी न्याय प्रणाली मजबूत करते हैं, तो कोई भी दुखी नहीं रहेगा।
 
मोदीजी की बात तो अच्छी है पर अगर हमारे अधिकारियों और जांच एजेंसियों में कुछ सुधार नहीं होता तो यह सब व्यर्थ ही जाएगा 🤔. न्याय प्रणाली मजबूत करना जरूर है, लेकिन इसके लिए हमें अपने अधिकारियों को भी अच्छा प्रशिक्षण देना चाहिए और उन्हें अपनी जिम्मेदारियों को ठीक से निभाने के लिए मोटिवेट करना चाहिए। अगर हम यह सब कर सकते हैं तो ही हमारी न्याय प्रणाली मजबूत होगी। और अगर हमारे युवाओं को अपने अधिकार के बारे में जागरूक बनाने की जरूरत है तो उनके लिए भी जरूरी स्टेशन्स और स्कूल बनाए जाने चाहिए।
 
मुझे लगता है कि देश में अभी भी बहुत सारे लोगों को न्याय का भूला हुआ महसूस होता है, खासकर उन लोगों को जिनकी बात नहीं होती। प्रधानमंत्री जी की बात तो सही है, हमें सुनने वालों को समझने और उनकी जरूरतों को देखने की जरूरत है। लेकिन मुझे लगता है कि यही स्थिति बनी रहेगी, अगर हम न्याय प्रणाली को बदलने और उसमें सुधार करने की कोशिश नहीं करते।
 
मैंने पढ़ा है प्रधानमंत्री मोदीजी की बात, लेकिन मुझे लगता है कि याद कराने वाली भाषा और समझाने वाली भाषा दो अलग-अलग चीजें हैं। एक तो हमारे न्याय प्रणाली में कानून का छात्र है, जिसे हमें समझना है; दूसरा हमारे आम आदमी के बीच सेटु बनाना है। मुझे लगता है कि हमारे न्याय प्रणाली में दोनों चीजें जरूरी हैं, लेकिन उन्हें एक साथ समझना थोड़ा मुश्किल हो सकता है। 🤔
 
मुझे लगता है कि सरकार की तरफ से यह बहुत अच्छा कदम उठाया गया है, लेकिन अभी भी एक सवाल तय नहीं हुआ है कि न्याय को कैसे समझाएं। हमें अपने देश में इतनी जटिलता और असमानता है, यह तो समझना ही संभव होगा। सरकार के इस फैसले से हमें उम्मीद है कि न्याय और समानता की बात करने वाले अधिकारी और आम आदमी एक-दूसरे को समझने लगेंगे।
 
मोदी जी की बात में सच्चाई है 🙌, लेकिन कानून के छात्रों को समझना और उनके साथ जुड़ना भी बहुत जरूरी है, नहीं तो न्याय की भाषा सिर्फ शब्दों में नहीं रहती। हमारी अदालतों में बदलाव लाने की जरूरत है ताकि वहां शांतिपूर्ण तरीके से बातचीत हो और सबको सम्मान मिले।
 
मुझे लगता है कि प्रधानमंत्री जी की बात में सहमति है, लेकिन हमें यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि हमारी न्याय प्रणाली वास्तव में सार्वजनिक और सम्मुख हो। तो कोई भी व्यक्ति बिना डरे अपनी समस्याओं की जांच कर सके। मुझे लगता है कि हमें यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि हमारी अदालतों और कानूनी सेवाओं वाले अधिकारियों को भी अपने काम के प्रति जिम्मेदार महसूस कराएं।
 
मुझे लगता है कि यह बात समझदारी से कही जा रही है, लेकिन अभी भी बहुत कुछ सुधारने की जरूरत है। प्रधानमंत्री जी ने कहा है कि न्याय की भाषा वही होनी चाहिए, जो न्याय पाने वाले को समझ आए। लेकिन क्या हमारी अदालतें और कानूनी सेवाएं ऐसी हैं? क्या युवाओं के कानून के छात्रों और आम आदमी के बीच एक सेतु का काम हो पाया है? मुझे लगता है कि हमें अपनी न्याय प्रणाली को मजबूत करने के लिए बहुत कुछ कर सकते हैं।

मैं समझता हूं कि प्रधानमंत्री जी की बात स्वागत योग्य है, लेकिन अभी भी हमें अपने देश में न्याय की भाषा बदलने के लिए बहुत काम करना होगा। हमें अपने अदालतों और कानूनी सेवाओं को सुधारना होगा, ताकि युवाओं के कानून के छात्रों और आम आदमी के बीच एक सेतु का काम हो पाये।

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मोदीजी की बात समझ में आती तो फिर भी, लगता है कि उन्होंने कानून की दुनिया को थोड़ा अलग सोच लिया है 🤔 न्याय प्रणाली तो हमेशा बड़ी और जटिल होती है, ऐसे में 'सेटु' बनाना एक अच्छा विचार लगता, परंतु यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि इस सेतु पर सबकी बातें सुनी जाएं और समझी जाएं, नहीं तो बस एक नया 'सेटू' बना दिया जाएगा।
 
न्याय प्रणाली तो है जिससे हमें दूसरों की गलतियों में अपनी भी गलतियाँ पहचानने का मौका मिलता है... 🤔
कुछ लोग कहते हैं कि अगर न्याय की भाषा कुछ और होती, तो सब ठीक होता। लेकिन देखिए, यही बात हमारे पास ही है, जीवन में हर रोज़ नई नई गलतियाँ होती रहती हैं। फिर तो न्याय की भाषा कैसे बदली? 🤷‍♂️
लेकिन अगर हम इस बात पर विचार करें कि हमारी अदालतें और कानूनी सेवाएं अपने काम करने में सुधार करें, तो शायद सब कुछ ठीक होता। हमें न्याय प्रणाली को मजबूत बनाने की जरूरत है, लेकिन यही नहीं है। हमें इसका सही तरीके से उपयोग करने की भी जरूरत है। 💡
 
मैं समझ नहीं पाऊंगा जब तक हमारे देश में लोगों के मन में यह सवाल सिर्फ और सीधे यह रह जाता है कि सरकार तो अच्छी क्यूँ है? 🤔 क्या हमारी अदालतें वास्तव में न्याय पाने वाले लोगों की बोली बुझाती हैं या फिर बस अपने आप ही बड़े-बड़े शब्दों से भर जाती हैं? 🤷‍♂️ और यह तो कहने के लिए भी पर्याप्त नहीं है कि हमारे देश में न्याय प्रणाली मजबूत करने की जरूरत है, कौन तय करेगा इसके लिए? 🤔
 
मुझे लगता है कि यह बातें बहुत ही महत्वपूर्ण हैं 🤔। अगर हमारी अदालतों में लोग जिस तरह से सुनते हैं, उसे बदलने की जरूरत है। तो न्याय की भाषा वही होनी चाहिए, जो न्याय पाने वाले को समझ आए। लेकिन यह बातें और अधिक स्पष्ट होनी चाहिए। हमारी न्याय प्रणाली में दोष हैं जिनका हल करने की जरूरत है।
 
मैने देखा है कि अदालत में तो सब ठीक है, लेकिन बाहर की जिंदगी में भी न्याय की जरूरत है। सरकार को यह सुननी चाहिए कि किसी भी व्यक्ति के घर पर भी न्याय होना चाहिए, नहीं तो सब कुछ फैल जाएगा। मैं तो उम्मीद करता हूं कि प्रधानमंत्री जी की बात मान ली जाए और आम आदमी को भी न्याय मिले।
 
मुझे लगा कि यह बहुत अच्छा विचार है 🤝, लेकिन कुछ चीजें थोड़ी सावधानी से समझनी चाहिए। अगर हम सबको समान न्याय मिलना है, तो हमें सभी की आवाज़ सुननी चाहिए और उनकी समस्याओं को देखना चाहिए। न्याय की भाषा तो एकदम से बदल जाती है जब हमारे पास इतनी अधिक सामर्थ्य और संसाधन होते हैं। मुझे लगता है कि हमें अपने अदालतों और कानूनी सेवाओं को और भी उन्नत बनाना चाहिए, ताकि हर किसी को न्याय मिल सके।
 
मुझे लगता है कि ये बहुत अच्छी बात है कि प्रधानमंत्री जी ने ऐसा कहा है, लेकिन मैं सोचता हूँ कि यह भी सच्चाई है - हमारे देश में बहुत से लोगों को अभी भी न्याय नहीं मिल पा रहा है। और अगर हमारी अदालतें और कानूनी सेवाएं ठीक से काम करें, तो शायद सब कुछ बदल जाएगा। लेकिन यह सवाल है कि आगे क्या होगा, क्योंकि इस देश में बहुत ज्यादा राजनीतिक और आर्थिक दबाव है।
 
न्याय की भाषा समझना ज्यादा मुश्किल है! 🤔 सरकार द्वारा कुछ बदलाव लाने की जरूरत है, ताकि हमें पता चल सके कि हमारी अदालतों और कानूनी सेवाओं वाले अधिकारियों को भी क्या समझना चाहिए। 🤝 अगर हम सभी एक दूसरे को समझ sake to, तो न्याय की भाषा समझने में आसान हो जाएगी। साथ hi, सरकार द्वारा कुछ बदलाव लाने की जरूरत है, ताकि हमारी न्याय प्रणाली मजबूत ho sake. 🚧
 
मोदी जी की बात में कुछ समझ है 🤔, न्याय और न्यायपूर्ति की दुनिया बहुत जटिल है, तो फिर भी हमें सोचने की जरूरत है। यह सच है कि अदालतें और कानूनी सेवाएं न्यायपूर्तियों के बीच एक सेतु बनाती हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हमें सिर्फ न्यायपूर्तियों पर भरोसा करना चाहिए। हमें यह भी सोचना चाहिए कि हमारी न्याय प्रणाली में कितने छोटे लोग और समाज के अन्य हिस्से शामिल हैं, जो भी बहुत जरूरी है 🙌,
 
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