PM Modi: पीएम ने फिर लहराया गमछा, सांस्कृतिक जुड़ाव ने बढ़ाई भीड़ की ऊर्जा; जय बिहार, हर-हर महादेव के लगे नारे

पटना के गांधी मैदान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शपथ ग्रहण समारोह में जैसे ही लाल-पीला गमछा लहराया, पूरा मैदान तालियों और नारों से गूंज उठा। इस दृश्य ने बताया कि सांस्कृतिक संकेत जब राजनीतिक संदेश के साथ जुड़ते हैं, तो उनका प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है।

गमछा को पीएम पिछले तीन महीनों में कई बड़े मंचों पर अपने राजनीतिक संदेश की धुरी बनाते रहे हैं और अब यह बिहार की जनभावना के साथ उनके सबसे प्रभावी जुड़ाव का प्रतीक बन गया है।

बिहार में गमछा सिर्फ परिधान नहीं सम्मान, पहचान और संस्कृति का प्रतीक है। किसान से लेकर मजदूर, युवा से लेकर बुजुर्ग हर वर्ग इसे जीवन और परंपरा का हिस्सा मानता है।

राजनीतिक मंच पर जब कोई नेता इसे धारण करता है, तो संदेश साफ होता है वह नेता जनता के जीवन और संस्कृति को समझता है, और उससे जुड़ना चाहता है।

मोदी ने इसी भावनात्मक संकेत को अपनी कनेक्ट पॉलिटिक्स का हिस्सा बनाया। बीते महीनों में इसकी पुनरावृत्ति ने इसे राजनीतिक हथियार बना दिया जो बिना भाषण के भी जनता से संवाद कर जाता है।
 
मोदी के लिए गमछा बहुत ही महत्वपूर्ण है... उसे लगता है कि अपने राजनीतिक संदेश को लेकर पूरा मैदान उसके साथ ही नाच रहा है। लेकिन ये तो हमारी परंपराओं और संस्कृतियों को समझने की बात नहीं है, बल्कि यह दिखाता है कि कैसे राजनीतिक नेता अपने संदेश को जनता तक पहुंचाने के लिए कुछ विशेष करते हैं। मैं सोचता हूँ कि अगर वह अपने संदेश को बस एक धुन के साथ नहीं लेकर आता, तो यह सब इतना सफल नहीं होता।
 
🤣 मोदी को गमछा लहराने वाला में तो थोड़ा नाजुक होना चाहिए, फिर भी वह लोगों को इतना प्रभावित कर देता है जैसे अगर वह अपने गाल पर खुद की तस्वीर लगाये 🤦‍♂️ और बिहार में हर किसान, मजदूर, युवा और बुजुर्ग उसकी नज़र से लेने को तैयार है तो यह तो सचमुच एक राजनीतिक जादू है 🔮

और अगर हम सच कहें, तो गमछा का मकसद न केवल प्रधानमंत्री के रूप में अपना संदेश देना है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण अंग भी है जिसे लोगो के दिलों पर गहरा प्रभाव छोड़ता है ❤️

लेकिन मुझे लगता है कि अगर हमारे राजनेताओं ने अपने देश की संस्कृति और पहचान को ध्यान में रखकर वोट लेने के लिए बाहर नहीं आते, तो यह सब हकीकती राजनीतिक जादू होगा जिसके बिना कुछ भी नहीं है 🤑
 
मैंने कई बार तो देखा है कि पूरा मैदान गूंज उठता है जब कोई नेता अपनी शपथ ग्रहण समारोह में लाल-पीला गमछा लहराता है। यह तो एक सामाजिक संकेत है जो हमेशा से देश में प्राचीन समय से बनी हुई परंपरा है। मैं समझता हूँ कि यह न केवल राजनीतिक संदेश के साथ जुड़ता है, बल्कि यह हमारी संस्कृति और पहचान को भी दर्शाता है। जब एक नेता अपने गमछा को लेकर मंच पर आता है, तो वह जनता के दिल तक पहुँच जाता है और उनकी सांसों को समझने की कोशिश करता है।

बिहार में यह परंपरा बहुत पुरानी है और यहाँ के लोग इसे जीवन और परंपरा का हिस्सा मानते हैं। जब पीएम नरेंद्र मोदी ने गमछा को अपने राजनीतिक संदेश की धुरी बनाते रहना शुरू किया, तो यह जनता के दिल तक पहुँचने का एक तरीका बन गया। और जब वे बिहार में आए, तो यह भावनात्मक संकेत उनके लिए बहुत प्रभावी हुआ।
 
नम कुछ दिनों की ताजगी की बात कर रहे थे, मैंने पटना में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह को देखा, और मुझे लगा कि गमछा वाकई ही एक शक्तिशाली संदेश देने का तरीका है। लेकिन, मैं थोड़ा सोच रहा हूँ, क्या यह पूरी तरह से साफ है कि हमारी संस्कृति और परंपराएं राजनीति में कितने सही तरीके से उपयोग की जा रही हैं?

मोदी ने गमछा को एक शक्तिशाली संदेश देने का तरीका बनाया, लेकिन क्या हमारे समाज में गरीबों और अनाथों के प्रति यह परिवर्तन कितना वास्तविक है?
 
मुझे लगता है कि जब पीएम मोदी लाल-पीला गमछा लहराते हैं तो पूरा मैदान में एक अलग माहौल बन जाता है ❤️। यह सांस्कृतिक संकेत न केवल उनके राजनीतिक संदेश को बढ़ावा देते हैं, बल्कि जनता की भावनाओं को भी समझते हैं। बिहार में गमछा का महत्व बहुत अधिक है, और जब पीएम मोदी इसे धारण करते हैं तो यह साफ होता है कि वे नेता जनता के जीवन और संस्कृति को समझते हैं। इसकी कनेक्ट पॉलिटिक्स बहुत ही शानदार रूप में काम करती है, और इससे जनता के साथ उनका संवाद बहुत ही भावनात्मक होता है।
 
मोदी साहब ने फिर से गमछा लहराया, और मैं तो खुश हुआ 🎉। यह दिखाता है कि वे नेता जनता के दिल को जानते हैं। गमछा सिर्फ एक कपड़ा नहीं है, यह हमारी संस्कृति का हिस्सा है और इसे धारण करने से हमें लगता है कि नेता हमारे जीवन को समझते हैं और साथ में आ सकते हैं। यह एक अच्छा सबक है कि अगर आप जनता की भावनाओं को समझना चाहते हैं, तो आपको उनकी संस्कृति और परंपराओं को जानना होगा। मोदी साहब ने इस बात को समझाया है कि राजनीति में भावनाएँ बहुत महत्वपूर्ण हैं। 🙌
 
मोदी जी को गमछा लहराने का तरीका बहुत अच्छा लगता है 🤩। इससे यह बताया जाता है कि वह वास्तव में सोचता है, और जनता की भावनाओं को समझने की कोशिश करते हैं। लेकिन मुझे लगता है कि यह तरीका कभी-कभी थोड़ा भड़काऊ भी हो सकता है। जैसे कि जब वह लाल-पीला गमछा लहराते हैं, तो कुछ लोगों को लगता है कि यह उनके विरोध करने की प्रतिक्रिया है। लेकिन मुझे लगता है कि इससे भी हमें सोचकर निकलना चाहिए।
 
मोदी जी ने लाल-पीला गमछा लहराया, तो मैंने तालियां उठाईं, लेकिन बाकी लोगों की भावनाएं क्या थीं? मुझे लगता है कि पटना में जिस माहौल ने उनके शपथ ग्रहण समारोह में इतनी गर्मी भर दी, वह तो सच्ची कनेक्ट पॉलिटिक्स की बात है। लेकिन क्या यही सब नेताओं को सीखने का समय नहीं था? 🤔👏

मुझे लगता है कि गमछा तो बस एक परिधान है, लेकिन जब हमारे नेताओं की प्रतिभा और प्रेरणा इसी में जुड़ जाती है, तो वह सच्चा शक्तिशाली होता है। लेकिन मैं भी सोचता हूं कि एक बार जब हमें संदेश स्पष्ट होता है, तो दूसरों को भी सुनने का मौका मिलता है... लेकिन शायद यह समय किसी और ने नहीं पहचाना? 😐
 
मोदी जी की कनेक्ट पॉलिटिक्स वास्तव में जनभावनाओं को जानकर चलने का तरीका है 🤔। उनका इस्तेमाल गमछा से लेकर बिना भाषण के तालियों और नारों तक, जनता की भावनाओं को समझने का एक प्रभावी तरीका है। परंतु यह सवाल उठता है कि इससे विपक्षी दलों के नेताओं को कैसे सम्मानित किया जाए? और क्या यह देखभाल करने का सही तरीका है? 🤝
 
मुझे लगता है 🤔 कि पीएम मोदी का गमछा लहराना और लाल-पीला रंग पहनना न केवल उनके राजनीतिक संदेश को बढ़ावा देने का तरीका है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि वे अपनी संस्कृति और परंपराओं को समझते हैं और उन्हें जनता के साथ जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। मुझे लगता है कि यह एक अच्छा तरीका है, खासकर जब इसे सही तरीके से अपनाया जाए तो 🙏
 
मोदी जी के लाल-पीले गमछे वाले नाटक तो मुझे लगेंगे दिल्ली की सामूहिक ब्रेकडाउन की तरह ही लगता है... 👎🏻👀 मान लीजिए कुछ दिव्यांकारी शक्ति तो उन्होंने अपने गमछे में डाल दिया है, लेकिन मुझे लगता है यह सिर्फ एक विज्ञापन की तरह ही लग रहा है। 👀 किसान, मजदूर, युवा, बुजुर्ग – तो सब गमछा पहनते हैं तो? यह एक राजनीतिक खेल है, मोदी जी की कनेक्ट पॉलिटिक्स सिर्फ एक चिंता की बात है।
 
अरे, तो यह गमछा पूरा मैदान में जमा हो गया था, तो समझ में आ रहा है कि उसका प्रभाव कितना है। लेकिन हमें ये भी ध्यान रखना चाहिए कि गमछा को सिर्फ राजनीतिक मंच पर ही नहीं, बल्कि जीवन के हर पहलू में लाना चाहिए। जैसे हमारे देश के हर जन्मदिन और त्योहारों पर भी उसे लाना चाहिए, तो न केवल राजनीतिक हथियार बनाए रखें।
 
मुझे ये बात बहुत पसंद आयी, पीएम का गमछा लहराना तो मेरे लिए बहुत गर्व करने वाला दृश्य था। मैंने खूब सुना था कि गमछा सिर्फ सुंदरता की बात नहीं है, बल्कि इसका महत्व हमारी संस्कृति और परंपराओं में बहुत अधिक है। मेरी माँ और दादी की एक्सप्रेशन जैसे ही मैंने उनके गमछा देखा, तो मुझे ऐसा लगा कि पूरा इतिहास हमारी चमक रहा है।
 
मोदी पीएम की गमछा वाली पेशेंटेज तो सचमुच बहुत ही अच्छी लगी। यह देखकर लगता है कि उनके पास जनता से जुड़ने का एक तरीका है। लेकिन मुझे लगता है कि अगर वे गमछा को धारण करते हैं तो इससे हमें उन्हें देखने की तरज़ू मिलती है। 😊

मुझे यह विचार पसंद आया कि पीएम ने अपनी कनेक्ट पॉलिटिक्स को गमछा से जोड़ा है। इससे दिखाई देता है कि उन्हें जनता की बात समझने में भी रुचि है। लेकिन मुझे लगता है कि इससे न केवल पीएम को फायदा होगा, बल्कि हमारी संस्कृति और परंपराओं को भी बढ़ावा मिलेगा। 👏

लक्ष्मी पूर्तिमास के दौरान, मैंने अपनी दादी ने गमछा पहनने के बारे में कहा, "यदि तुम मुस्कुराते हो तो किसी की भलाई करो।" यही हमारी संस्कृति का एक छोटा सा हिस्सा है। मुझे लगता है कि पीएम ने इसी सांस्कृतिक संकेत को अपने राजनीतिक संदेश के साथ जोड़ने की कोशिश की। 👍
 
मोदी का गमछा लहराना बहुत अच्छा दिखाया, मैंने फोटो देखी थी। वह लोगों को तालियाँ लगा रहे हैं, नारे लगा रहे हैं। यह देखकर लगता है कि वे राष्ट्रपिता की बातें सुन रहे हैं और उनकी संस्कृति का सम्मान कर रहे हैं। मुझे लगता है कि इससे प्रधानमंत्री अपने राजनीतिक संदेश को जनता तक पहुंचाने का एक अच्छा तरीका बना लिया है। और यह बात सच है कि गमछा परिधान है, सम्मान है, पहचान है, लेकिन जब लोग इसे लहराते हैं तो वे अपनी संस्कृति और निष्ठा की भावना को दिखाते हैं। 🙏
 
मोदी जी का गमछा लहराना एक बहुत ही शक्तिशाली तरीका है देश को जुटाने का। यह न केवल उनकी पार्टी के संदेश को बढ़ावा देता है, बल्कि यह भारतीय समाज की संस्कृति और परंपराओं का अभिन्न अंग है। पटना में उनके शपथ ग्रहण समारोह में जैसे ही उन्होंने गमछा लहराया, देशभर में एक आफती महिला की भावनाओं ने जुड़कर तालियाँ और नारे लगाने की आवाज़ उठी। यह देखकर मुझे लगता है कि मोदी जी ने सही राह अपनी है।
 
पीएम की गमछा लहराने से मेरा मन खुशी से भर जाता है 🙌, यह तो बस एक छोटी-छोटी बात नहीं है, यह सांस्कृतिक संदेश को लेकर दिखाता है कि हमारी परंपरा और समाज में कितनी गहराई है। मुझे लगता है कि इसके पीछे एक सच्ची कनेक्शन थी जिससे जनता को आकर्षित किया गया 🤝, और इससे यह साबित होता है कि राजनीतिक नेताओं को अपने देश की संस्कृति और समाज को समझने की जरूरत है।
 
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