बिहार में शिशुओं के दूध में यूरेनियम: स्वास्थ्य जोखिम और नियंत्रण की आवश्यकता
भारतीय स्वास्थ्य संगठनों का कहना है कि बिहार के छह जिलों में, शिशुओं के दूध में यूरेनियम मौजूद होने पर गंभीर स्वास्थ्य जोखिम हो सकता है। अनुसंधान में पाया गया है कि लगभग 70% शिशुओं की सेहत इस जोखिम से प्रभावित हो सकती है, लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि इसका खतरा अभी भी स्वीकार्य सीमा से नीचे है।
यह अध्ययन एम्स दिल्ली और अन्य संस्थानों के वैज्ञानिकों के सहयोग से किया गया। इसमें 40 माताओं से लिए गए नमूनों का विश्लेषण किया गया, जिनमें कटिहार, खगड़िया, नालंदा और अन्य तीन जिलों की शामिल थीं।
अध्ययन के अनुसार, माताओं के दूध में यूरेनियम स्तर बहुत कम है, लेकिन यह खतरनाक हो सकता है। इस अध्ययन से पता चला है कि भूजल प्रणाली में भारी धातुओं की मौजूदगी है, जिससे शिशुओं की सेहत पर इसका प्रभाव पड़ सकता है।
वैज्ञानिकों ने बताया है कि यह अध्ययन आगे की बड़ी शृंखला का पहला चरण है। वे अन्य राज्यों में भारी धातुओं, कीटनाशकों और पर्यावरणीय प्रदूषकों की जांच करने की तैयारी कर रहे हैं।
इस अध्ययन से यह भी पता चलता है कि बिहार में 1.7% भूजल में यूरेनियम की समस्या है, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा तय किए गए सीमा से अधिक है। इसका मतलब है कि यह पेयजल में डब्ल्यूएचओ के निर्देशों की अनुपालन नहीं हो रही है।
इस समस्या का समाधान ढूंढने के लिए, सरकार और स्वास्थ्य एजेंसियों को ग्रामीण क्षेत्रों में भारी धातुओं की स्क्रीनिंग को लेकर अभियान चलाना चाहिए।
भारतीय स्वास्थ्य संगठनों का कहना है कि बिहार के छह जिलों में, शिशुओं के दूध में यूरेनियम मौजूद होने पर गंभीर स्वास्थ्य जोखिम हो सकता है। अनुसंधान में पाया गया है कि लगभग 70% शिशुओं की सेहत इस जोखिम से प्रभावित हो सकती है, लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि इसका खतरा अभी भी स्वीकार्य सीमा से नीचे है।
यह अध्ययन एम्स दिल्ली और अन्य संस्थानों के वैज्ञानिकों के सहयोग से किया गया। इसमें 40 माताओं से लिए गए नमूनों का विश्लेषण किया गया, जिनमें कटिहार, खगड़िया, नालंदा और अन्य तीन जिलों की शामिल थीं।
अध्ययन के अनुसार, माताओं के दूध में यूरेनियम स्तर बहुत कम है, लेकिन यह खतरनाक हो सकता है। इस अध्ययन से पता चला है कि भूजल प्रणाली में भारी धातुओं की मौजूदगी है, जिससे शिशुओं की सेहत पर इसका प्रभाव पड़ सकता है।
वैज्ञानिकों ने बताया है कि यह अध्ययन आगे की बड़ी शृंखला का पहला चरण है। वे अन्य राज्यों में भारी धातुओं, कीटनाशकों और पर्यावरणीय प्रदूषकों की जांच करने की तैयारी कर रहे हैं।
इस अध्ययन से यह भी पता चलता है कि बिहार में 1.7% भूजल में यूरेनियम की समस्या है, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा तय किए गए सीमा से अधिक है। इसका मतलब है कि यह पेयजल में डब्ल्यूएचओ के निर्देशों की अनुपालन नहीं हो रही है।
इस समस्या का समाधान ढूंढने के लिए, सरकार और स्वास्थ्य एजेंसियों को ग्रामीण क्षेत्रों में भारी धातुओं की स्क्रीनिंग को लेकर अभियान चलाना चाहिए।