स्पॉटलाइट-बुमराह ने फील्ड पर किसे कहा बौना, क्या मिलेगी सजा: स्टंप माइक में गाली भी हुई रिकॉर्ड, ऐसे मामलों में पहले क्या हुआ, देखें वीडियो

बुमराह ने टेम्बा को 'बौना' कहा था, अब सवाल उठता है कि क्या इस शब्द पर सजा मिलेगी?

भारत-दक्षिण अफ्रीका टेस्ट के दौरान बुमराह ने स्टंप माइक पर टेम्बा को 'बौना' कहने की बात कही थी, जिसके बाद सोशल मीडिया पर विवाद बढ़ गया। यह शब्द अक्सर अपमानजनक होता है, और इसका उपयोग अक्सर गैरपेशेवर और असंवेदनशील तरीके से किया जाता है।

भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान भुवनेश्वर कुमार ने बाद में बताया था कि जब उन्होंने यह शब्द सुना, तो उनकी प्रतिक्रिया नहीं दिखी। लेकिन इसके बावजूद, इस शब्द पर सजा का सवाल उठता है।

क्या इस शब्द पर सजा मिलेगी? इसका जवाब अभी तक नहीं आया है। लेकिन अगर ऐसा होगा, तो भारतीय क्रिकेट नियमों में बदलाव करने की जरूरत हो सकती है ताकि ऐसे शब्दों को रोका जा सके।

इस तरह के मामलों में पहले क्या हुआ? इससे पहले, भारतीय क्रिकेट टीम ने कभी-कभी खिलाड़ियों पर अपमानजनक शब्दों का उपयोग करने के लिए संघर्ष किया है। लेकिन इसके बाद भी ऐसे मामलों में सजा नहीं दी गई थी।

इस तरह के मामलों में सजा देने की जरूरत है ताकि खिलाड़ियों को उनके प्रदर्शन पर ध्यान दिया जाए और न्याय की नीति बनाई जाए।
 
मुझे लगता है कि फिर से ऐसा मामला आया है जहां खिलाड़ी अपने शब्दों से अन्य को दर्शकों के सामने घायल कर दिया! 🤕 इस तरह की बातें करना जरूरी नहीं है, और यह नशीले मादकों की लत को बढ़ावा नहीं देती है। अगर ऐसा शब्द हमेशा कहा जाता, तो खिलाड़ियों पर सजा चाहिए। इसके अलावा, स्टंप माइक के नियमों में बदलाव करने की जरूरत है ताकि यह शब्द कभी भी सामने आए। 👊
 
नम सुनकर, मेरी राय है कि इस शब्द का उपयोग करने वाले क्रिकेट खिलाड़ियों को सजा मिलनी चाहिए। लेकिन जरूरत भी है, अन्य प्रिय दोस्तों का ध्यान रखें, अगर ऐसा हुआ तो इस शब्द पर रोक लगाने के लिए हमें कुछ और करना होगा। जैसे कि बाकी खिलाड़ियों को भी इस तरह के अपमानजनक शब्दों से परेशान न करें।

और अगर ऐसा हुआ तो हमें रोकने वाले अधिकारियों को भी माफी चाहिए। क्योंकि उनका काम है हमारी सुरक्षा और सामाजिक अनुकूलता।
 
कहीं के भी ऐसे मामले नहीं हैं जहां खिलाड़ी को सजा मिली होगी। लेकिन अगर इस तरह के शब्दों का उपयोग करने वाले खिलाड़ी सजा मिलती, तो शायद दूसरों को भी उनके प्रदर्शन पर ध्यान देने और न्याय की नीति बनाने का अवसर मिलेगा।
 
🙄 अगर इस शब्द पर सजा मिलती है तो अच्छी बात होगी, लेकिन अगर नहीं तो खिलाड़ी के प्रदर्शन पर ध्यान देने की जरूरत नहीं है, क्योंकि यह एक खेल है न कि एक सामाजिक मामला। 🤔
 
तो फिर बुमराह पर सजा मिलनी चाहिए, नहीं तो भारतीय क्रिकेट टीम के खिलाड़ियों के लिए एक अच्छा उदाहरण नहीं होगा। अगर ऐसा होता, तो हमें सोचते रहना चाहिए कि कैसे इस तरह की घटनाओं को रोका जा सके। शायद फील्डिंग प्रशिक्षण में भी इसका ध्यान देना चाहिए, ताकि खिलाड़ियों को ऐसे शब्दों से निपटने का तरीका सीख जाए।
 
तो यह वार्ड 'बौना' कितना खराब है? मुझे लगता है कि ऐसे शब्दों को रोकना चाहिए, लेकिन अगर साजिश नहीं होती तो इसका फायदा भी हो सकता है। खिलाड़ियों पर दबाव न लगाएं, बल्कि उन्हें अपने प्रदर्शन पर ध्यान देने का मौका दें। कोई भी शब्द सुनकर आंसू नहीं आ सकते, लेकिन अगर ऐसा होता तो खिलाड़ियों को फायदा होता।

मुझे लगता है कि कप्तान भुवनेश्वर कुमार ने सही कहा, जब उन्होंने प्रतिक्रिया नहीं दिखाई, यह अच्छा है। खिलाड़ियों पर दबाव नहीं, बल्कि उनके प्रदर्शन पर ध्यान दें। फिर भी अगर ऐसे शब्दों को रोकने की जरूरत है तो नियमों में बदलाव करना चाहिए।

तो अब जिस खिलाड़ी ने ऐसा कहा, उसकी सजा की बात है। अगर साजिश नहीं होती तो इसका फायदा भी होगा। लेकिन अगर सजा दी जाए तो नियमों में बदलाव होना चाहिए।

मुझे लगता है कि इस तरह के मामलों में सजा देना चाहिए, ताकि खिलाड़ियों पर ध्यान दिया जाए और न्याय की नीति बनाई जाए। 🤔
 
बेटे को भी ऐसा सोचता हूँ 🤔, जब कोई बड़ा खिलाड़ी ऐसा कुछ कहता है तो पूरा देश विरोध में आ जाता है। लेकिन अगर बच्चों को भी ऐसे शब्दों का उपयोग करने का मौका मिलता है तो क्या फायदा? यह सीखने का एक अच्छा तरीका नहीं है, लेकिन सजा देना जरूरी है। अगर खिलाड़ी ऐसा करेंगे तो उन्हें सजा मिले और अन्य खिलाड़ियों को भी सिखाया जाए। प्रियजनों को भी बच्चों को यह सीखने देना चाहिए, कि कैसे सहानुभूति और सम्मान दिखाएं 🤝
 
बात करते हैं इस मामले से... 😐 बुमराह को ऐसा क्या करना था? तो भी वह शब्द इतना गंभीर है कि इसकी सजा देने की जरूरत है। लेकिन अगर सजा देने जाते हैं तो फिर भारतीय क्रिकेट नियमों में बदलाव करने की जरूरत है, बिल्कुल सही कहा। इससे पहले ऐसे मामले हुए थे और सजा नहीं दी, इसलिए इस मामले में सजा देना जरूरी है ताकि खिलाड़ियों पर ध्यान दिया जाए। लेकिन यह तो एक पक्ष है, और इसके साथ-साथ बुमराह के प्रदर्शन को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए, फिर ही सजा देनी चाहिए।
 
मुझे लगता है कि भुवनेश्वर कुमार से नहीं थोड़ा तुरंत माफी मांगनी चाहिए, लेकिन यह बात फौरन करनी चाहिए न? अगर ऐसा नहीं हुआ तो उसकी प्रतिक्रिया भी दिखाई जाएगी। इससे और खिलाड़ियों को इस तरह से डराने में मदद नहीं होगी, फिर क्या सजा का सवाल उठता है? किसी भी तरह का अनुचित शब्द उपयोग करने वाले लोगों को सजा देनी चाहिए, न कि हमेशा माफ कर देना। 🤔👎
 
अरे भाई, इस शब्द पर सजा मिलनी चाहिए, लेकिन यह सवाल है कि क्या सच्चाई सुनाई देगी। बुमराह ने कहा था कि वह शब्द फूटबॉल खेलने वालों से पसंद नहीं करते हैं और टेम्बा को 'बौना' कहना तय कर दिया। लेकिन यह शब्द बहुत ही अपमानजनक है और इसका उपयोग असंवेदनशील तरीके से किया जाता है।

अगर इस तरह के मामलों में सजा नहीं दी गई, तो यह न्यायिक प्रणाली की कमी पर उजागर होता है। क्या खिलाड़ियों को उनके प्रदर्शन के आधार पर मानदंड निर्धारित किए जाने चाहिए? क्या खिलाड़ियों को अपने व्यवहार से सजा देनी चाहिए या फिर उन्हें अपने शब्दों के प्रभाव को समझने का मौका दिया जाए?

इस तरह के मामलों में सजा देने से न केवल खिलाड़ियों को शिक्षित किया जा सकता है, बल्कि यह हमारी समाज के लिए भी एक महत्वपूर्ण संदेश देता है कि अपमानजनक शब्दों का उपयोग कभी नहीं करना चाहिए। 🤔
 
बुमराह और टेम्बा की बात करने से पहले हमें यह सोचना चाहिए कि क्यों लोग इस तरह से बात करते हैं। देश में ऐसे कई मामले हैं जहां लोग अपने शब्दों से दूसरों को दर्शाते हैं, तो फिर उन्हें सजा मिलनी चाहिए या नहीं। मेरे अनुसार, अगर ऐसा होता, तो हमें राष्ट्रीय स्तर पर ऐसे शब्दों के उपयोग पर रोक लगानी चाहिए। इसके लिए हमें खेल नियमों में बदलाव करना पड़ सकता है और खिलाड़ियों को उनके प्रदर्शन पर ध्यान देने की जरूरत है। यही है न्याय, जिसमें किसी भी तरह से लोगों को अपमानित नहीं किया जाता।
 
यही बात है! जब भी ऐसे मामले आते हैं तो सोचता हूँ कि खिलाड़ियों को उनके प्रदर्शन पर ध्यान देना चाहिए, लेकिन फिर भी ऐसे शब्दों का उपयोग करने वाले को सजा मिलनी चाहिए।

कुछ दिन पहले हुई एक बात का याद है, जब वीरेंद्र सहनी ने खेलों से संबंधित मैच के दौरान अपने अन्य खिलाड़ी को मार-मजाक करने का मौका दिया, तो उस पर सजा लगाई गई थी।

अब इस तरह के मामलों में सजा देनी चाहिए, ताकि सभी खिलाड़ियों को समान अवसर मिल सके। और फिर भी, हमारे खेल को और भी अच्छा बनाने के लिए हमेशा सोचते रहें।
 
क्या टेम्बा को सजा मिलने से पहले सब समझेंगे कि 'बौना' शब्द कितना अपमानजनक है? यह शब्द कभी भी किसी के साथ आर्थिक या जातिगत अपमान नहीं करता, बल्कि व्यक्तिगत अपमान है।

अगर इस शब्द पर सजा मिलेगी, तो खिलाड़ियों को अपने शब्दों के पीछे क्या सोच रहे थे? और अगर ऐसी चीजें नहीं थीं, तो फिर क्यों इस तरह बोल दिया?

सबको सोचने की जरूरत है कि खेल में हमारा व्यवहार कितना अच्छा होगा। अगर हम अपने शब्दों और कृत्यों से अच्छा प्रदर्शन करते हैं, तो ही हम खुद को और दूसरों को सम्मानित बना सकते हैं।

और सबसे ज्यादा, यह एक सबक है कि हमें हमेशा अपने शब्दों को सोच-समझकर बोलना चाहिए। कभी-कभी कुछ भी कहने से पहले थोड़ा समय लेना और फिर सोच-विचार करना जरूरी होता है।
 
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