स्ट्रीट डॉग केस, सुप्रीम कोर्ट बोला-देश की छवि खराब हुई: बंगाल-तेलंगाना को छोड़कर सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को तलब किया; अगली सुनवाई 3 नवंबर को

मुख्य सचिवों को सुप्रीम कोर्ट ने तलब करने पर कोर्ट का फैसला: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को आवारा कुत्तों के मामले में राज्यों के रुख पर नाराजगी जताई। कोर्ट ने पश्चिम बंगाल और तेलंगाना को छोड़कर सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को इस मामले में तलब किया है।

अगली सुनवाई 3 नवंबर को होगी, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस एनवी अंजारिया की बेंच ने कहा कि केवल पश्चिम बंगाल, तेलंगाना और दिल्ली नगर निगम ने ही अनुपालन हलफनामा (कार्रवाई की रिपोर्ट) दिया है।

बाकी राज्यों ने अब तक यह बताने वाली रिपोर्ट दाखिल नहीं की है कि उन्होंने एनिमल बर्थ कंट्रोल (एबीसी) नियमों के तहत क्या कदम उठाए हैं।
 
मुझे लगता है कि मैं कल फिर से अपने पेड़ की देखभाल करूँगा, बस एक-एक गोठी साफ करूँगा। तो यह सचिवों को सुप्रीम कोर्ट में बुलाने की बात है, लेकिन मुझे लगता है कि जंगल की देखभाल बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण है। क्या हमेशा ऐसा ही होता जब राज्यों को सुप्रीम कोर्ट में बुलाया जाता, तो फिर भी जंगल से निकलने वाले पक्षियों की संख्या कम नहीं हुई।
 
मुझे लगता है कि यह बहुत अजीब सा फैसला है... कोई भी ऐसा नहीं चाहता था कि मुख्य सचिवों को तलब करेंगे। लेकिन जैसे हमारे देश में हर गड़बड़ी का समाधान एक-एक करके सुलझाया जाता है, ऐसा ही लग रहा है।

कौन से राज्य खुद को धमकाएंगे, यह नहीं पता है... लेकिन मुझे लगता है कि यह फैसला एक अच्छी बात होगी, क्योंकि अब सबको जवाबदेह माना जाएगा। तो हम देखेंगे कैसे आगे बढ़ता है।
 
मुझे लगता है कि यह बहुत भयावह 🐕 situation hai. आवारा कुत्तों की समस्या एक बड़ा मुद्दा है, लेकिन सरकार द्वारा तुरंत कोई सोच-समझकर कदम उठाने की जरूरत है। अगर राज्य सरकारें अपने कदम नहीं बढ़ा रही हैं, तो फिर शायद कुछ और निर्णय की जरूरत होगी। 🤔
 
अरे, यह तो बहुत ही चिंताजनक स्थिति है... राज्य सरकारों की अनुपालनहीनता से आवारा कुत्तों पर नियंत्रण कैसे बनाया जाएगा? कोर्ट का फैसला अच्छी तरह से सोचा गया है, मुख्य सचिवों को तलब करना एक अच्छा प्रयास है... लेकिन अब यह देखना दिलचस्प होगा कि राज्य सरकारें इस पर कैसे सुधरेगी।
 
अरे, ये तो बहुत बड़ा मुद्दा है, आवारा कुत्तों की समस्या तो हर राज्य में ही, लेकिन दिल्ली नगर निगम, पश्चिम बंगाल और तेलंगाना ने ही उन्हीं 3 शहरों में से केवल उन 3 शहरों में जानवरों को पैदा रखने की अनुमति देने के लिए अनुपालन हलफनामा दाखिल किया है। इसका मतलब है कि अगर अन्य राज्य भी आवारा कुत्तों को पैदा रखना चाहते हैं तो उन्हें पहले से ही सभी नियमों को समझ लेना होगा। यह अच्छा हो सकता है, लेकिन यह बाकी राज्यों के लिए भी एक बड़ा जोखिम है कि वे इन नियमों को नहीं समझते। 🤔
 
मुझे ये सुनकर खेद है लेकिन आवारा कुत्तों की समस्या बहुत ज्यादा नहीं देखी मिली। तो फिर राज्यों पर दबाव डालने की जरूरत नहीं क्या? फिर भी, अगर इन राज्यों ने एनिमल बर्थ कंट्रोल नियमों के तहत कोई कदम उठाने हैं तो उन्हें तुरंत अपनी रिपोर्ट देनी चाहिए। इससे हमारे समाज में आवारा कुत्तों की समस्या कम होगी।
 
આ મामलે રાજ્યોની ભૂલતા, છે કે બહુમાં કરે છે! એવા પ્રદેશમાં સાથ આપનાર તો હું આવેલ હતા, એટલે જ ભાળવવા માટે છે. કે રાજ્યો શરીક પૂરું ન કરતા, એમાં હું સાવ ખુશ છું.
 
मुझे लगता है कि यह एक बहुत ही दिलचस्प मामला है! 🐕😺

मैंने इस मामले पर थोड़ा विचार किया है, और मेरी राय में सुप्रीम कोर्ट ने सही फैसला लिया है। 😊

मुख्य सचिवों को तलब करने से पहले, मैंने अपने डेस्क पर एक छोटी सी चार्ट बनाई है:

```
+---------------+
| राज्य/प्रदेश | अनुपालन हलफनामा दाखिल |
|-----------------|-------------------------------|
| पश्चिम बंगाल | - |
| तेलंगाना | - |
| दिल्ली नगर निगम| - |
+---------------+
```
जैसे मैंने लिखा, केवल चार राज्यों और एक प्रदेश ने अनुपालन हलफनामा दाखिल किया है। बाकी राज्यों ने अब तक अपनी रिपोर्ट नहीं दाखिल की है! 😕

मुझे लगता है कि यह फैसला सुनिश्चित करेगा कि सभी राज्यों को एनबीसी नियमों के तहत काम करने के लिए प्रेरित किया जाए। 🙌
 
मुझे लगता है कि यह फैसला ज़रूरी है, नहीं तो आवारा कुत्तों से लड़ने वाले पुलिस अधिकारियों की सुरक्षा और उनके परिवारों की भी सुरक्षा कोई बात नहीं 🐕. मैंने देखा है कि कैसे उन्हें अपनी जान गवाएं, यह तो सही नहीं होगा।

लेकिन फैसले के पीछे क्या कारण हैं, यह हमें समझना चाहिए। क्या सब राज्यों ने आवारा कुत्तों के बारे में सही तरीके से जानकारी नहीं दी? क्या उन्होंने सोचा था कि आवारा कुत्तों से लड़ने वाले पुलिस अधिकारियों की सुरक्षा को नज़रअंदाज़ कर दें?

मैं जानता हूँ कि हमारे देश में अभी भी बहुत सारे काम अनपूरे रह गए हैं, लेकिन यह फैसला जरूरी है। मुझे लगता है कि इस फैसले को पूरे राष्ट्रीय स्तर पर अपनाना चाहिए और आवारा कुत्तों के बारे में सभी को जागरूक करना चाहिए 📊.
 
मेरे दोस्त, तो ये सच है कि सुप्रीम कोर्ट ने आवारा कुत्तों के मामले में सभी राज्यों को तलब किया है, लेकिन मुझे लगता है कि ये सबकुछ बहुत धीमा हुआ है। हमारे देश में आवारा कुत्तों की समस्या एक बड़ी बात है, और इसका समाधान निकालने के लिए हर राज्य को अपना योगदान देना चाहिए।

मुझे लगता है कि अगर सभी राज्यों ने तुरंत जवाब देना शुरू कर दिया होता, तो इस मामले का समाधान जल्दी ही मिल पाता। लेकिन अब, जब सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया है, तो सभी राज्यों को अपने जवाब देना चाहिए और जल्दी से इस समस्या का समाधान ढूंढना चाहिए।
 
मुझे यह सुनकर खुशी हुई कि सुप्रीम कोर्ट ने आवारा कुत्तों के मामले में राज्यों को ध्यान में रखते हुए इस पर कुछ कदम उठाने की जरूरत है। यह तो बहुत अच्छी बात है कि वे सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को इस मामले में तलब कर रहे हैं। मुझे लगता है कि अगर हम अपने आवारा कुत्तों के साथ देखें, तो यह एक अच्छी सोच है। क्योंकि इससे हमें यह सीखने का मौका मिलेगा कि हम अपने आसपास की समस्याओं को कैसे हल कर सकते हैं। और अगर सभी राज्य इस मामले पर ध्यान देते हैं, तो यह निश्चित रूप से हमारे समाज में सकारात्मक परिवर्तन ला सकता है। 🐾💡
 
बात तो यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने आवारा कुत्तों के मामले में राज्यों की देखभाल की जिम्मेदारी पर प्रश्नचिह्न लगा दिया है 🤔. लेकिन इस बात पर तो कुछ भी नहीं कहना चाहिए, हमें सिर्फ यह बताना चाहिए कि आवारा कुत्तों के मामले में क्या करना चाहिए और हमें अपने घरों-घरों में इन्हें अच्छी तरह से पुनर्वास करके उनकी देखभाल करानी चाहिए। तो लोगों को जागरूक करना है और उन्हें आवारा कुत्तों के बारे में जानकारी देनी चाहिए।
 
मुझे लगता है कि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला अच्छी बात है। अगर हमारे सभी राज्यों में आवारा कुत्तों को नियंत्रित करने के लिए एक प्रणाली बनाई जाए, तो इससे सारे लोगों को फायदा होगा।

कुछ राज्यों ने पहले भी अपने खुद के समूह बनाकर आवारा कुत्तों के मामले में काम किया है, और अगर हमें सभी राज्यों को एक साथ लाने में मदद करने की आवश्यकता है तो फिर यह अच्छा मौका है।

फिर से, मुझे लगता है कि इस मामले में न्यायिक चाल चलने वालों को कुछ सीखने की ज़रूरत है, और इससे हमारे समाज में आवारा कुत्तों के साथ समस्याओं का समाधान ढूंढने में मदद मिलेगी।
 
राज्यों को आवारा कुत्तों के व्यवस्था में पिछड़ने पर सोचते हैं तो फिर कुछ नहीं कर सकते? शायद उन्हें यह समझने की जरूरत है कि सच्चाई झेलना ही सबका राजा है। अगर हरेक राज्य आवारा कुत्तों के मामले में अपनी स्थिति सुधारने की कोशिश करें, तो शायद हमारे समाज में इस बात की जागरूकता भी बढ़ेगी।
 
कोई बात नहीं, यह जानकर मुझे खुशी हुई कि सुप्रीम कोर्ट ने आवारा कुत्तों के मामले में राज्यों के रुख पर नाराजगी जताई है। यह बहुत अच्छी बात है कि कानून लागू करने वाले तंत्र में बदलाव लाने की कोशिश की जा रही है। मुझे लगता है कि इससे आवारा कुत्तों के साथ दंड और समाधान में सुधार आएगा।
 
क्या ये मामला भारत सरकार की असफलता का उदाहरण है? आवारा कुत्तों की समस्या एक बड़ी बात है, लेकिन सरकार ने इस पर कोई ठोस कदम उठाने के बजाय सुप्रीम कोर्ट में जाने देना तो समझ नहीं आ रहा है 🤔

सरकार की प्रतिक्रिया जल्द ही होनी चाहिए, फिर इस मामले का समाधान हो सकता है। क्या ये मामला एक बड़ा व्यवसाय बन गया है? हमें पता होना चाहिए कि कैसे इस समस्या से निपटना है और कैसे हम अपने देश को बेहतर बनाने की कोशिश कर सकते हैं 💡
 
अरे, यार, तुमने सुना, सुप्रीम कोर्ट में आवारा कुत्तों के बारे में मामला आ गया है। मैं यही सोचता था कि सरकार पर दबाव डालने के लिए ऐसा करना पड़ेगा। और अब मुख्य सचिवों को तलब करने की बात हुई है? यह तो बहुत अच्छा है, हमें अब देखकर देखना होगा कि वे क्या साबित करेंगे। मैं सोचता हूं, अगर सरकार ने पहले से ही एनीमल बर्थ कंट्रोल नियमों को लागू नहीं किया तो फिर से इस मामले को लेकर जोर देना पड़ेगा। लेकिन फिर भी, यह अच्छा है कि सच्चाई को उजागर करने के लिए ऐसी चीजें होती हैं। 🐕👮
 
अगर सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को आवारा कुत्तों के मामले में जवाब देने के लिए बुलाया है तो यह अच्छा होगा कि सरकारें एक साथ आ गईं। अगर सभी राज्यों ने अपने अनुपालन हलफनामा दाखिल कर दिया है तो कुछ भी गलत नहीं हुआ है। लेकिन अगर केवल कुछ राज्यों ने ही जवाब देने की कोशिश की है तो यह हमेशा से एक समस्या रहेगी। मुझे लगता है कि इस मामले में सरकारें कुछ करने वाली हैं।
 
कुछ मायनों में हमारा प्रयास शुरू करने वाली सरकार से बेहतर नहीं हो सकता। यह तो किसी को भी आश्चर्यचकित नहीं करेगा कि कोई ऐसी बात होने पर दिल्ली की मुख्य सचिव और उनके साथ हस्तक्षेप करने वाली अन्य राज्यों को तलब किया जाए। लेकिन, क्या हमारे पास यह समझने की क्षमता नहीं है कि जब एक ऐसी बड़ी समस्या होती है तो सभी साथ में आना चाहिए।
 
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