जैन धर्म ने दुनिया को शांति, करुणा और सतत जीवन की राह दिखाई: उपराष्ट्रपति सीपी राधाकृष्णन ने कहा।
उपराष्ट्रपति सीपी राधाकृष्णन ने शनिवार को श्री हंसरत्न सूरीश्वरजी महाराज जी के आठवें 180 उपवास पारण समारोह में भाग लिया। उन्होंने दिव्यतपस्वी आचार्य हंसरत्न सूरीश्वरजी महाराज के पवित्र महापर्ण में भाग लेने के लिए बहुत आभार जताया।
उपराष्ट्रपति ने कहा, "दुनिया के सबसे प्राचीन धर्मों में से एक, जैन धर्म के गहन योगदान पर रोशनी डालते हुए हमें इसकी शिक्षाओं - अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह और अनेकांतवाद - ने भारत और विश्व पर अमिट छाप छोड़ी है।"
उन्होंने कहा, "भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महात्मा गांधी द्वारा अपनाई गई अहिंसा, वैश्विक शांति आंदोलनों को प्रेरित करती रही है। जैन धर्म के शाकाहार, पशुओं के प्रति करुणा और सतत जीवन शैली के सिद्धांतों ने पर्यावरणीय उत्तरदायित्व के एक आदर्श के रूप में दुनिया भर में मान्यता प्राप्त हो रही है."
उन्होंने अपनी व्यक्तिगत यात्रा को याद करते हुए बताया, "मैंने 25 वर्ष पहले काशी की यात्रा के बाद शाकाहार अपनाया था, और यह पाया था कि इससे विनम्रता, परिपक्वता और सभी प्राणियों के प्रति प्रेम की भावना विकसित होती है।"
उपराष्ट्रपति ने कहा, "प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में प्राकृत को 'शास्त्रीय भाषा' का दर्जा देने तथा ज्ञानभारतम मिशन जैसी पहलों के माध्यम से जैन पांडुलिपियों को संरक्षित करने के लिए सरकार के प्रयासों की प्रशंसा करता हूं।"
उन्होंने तमिलनाडु में जैन धर्म की ऐतिहासिक व्यापकता और तमिल संस्कृति पर इसके व्यापक प्रभाव पर प्रकाश डाला। उन्होंने संगम और संगमोत्तर काल के दौरान तमिल साहित्य में जैन धर्म के महत्वपूर्ण योगदान का उल्लेख किया।
आचार्य हंसरत्न सूरीश्वरजी महाराज एक श्रद्धेय जैन मुनि हैं जो अपनी आध्यात्मिक साधना और दीर्घकालिक तप साधना के लिए जाने जाते हैं। महापर्णा उनके 180 दिनों के उपवास का औपचारिक समापन है, जिसे उन्होंने आठवीं बार किया है, जो जैन धर्म के सिद्धांतों और नैतिक मूल्यों के प्रसार के प्रति उनकी भक्ति, अनुशासन और प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
उपराष्ट्रपति सीपी राधाकृष्णन ने शनिवार को श्री हंसरत्न सूरीश्वरजी महाराज जी के आठवें 180 उपवास पारण समारोह में भाग लिया। उन्होंने दिव्यतपस्वी आचार्य हंसरत्न सूरीश्वरजी महाराज के पवित्र महापर्ण में भाग लेने के लिए बहुत आभार जताया।
उपराष्ट्रपति ने कहा, "दुनिया के सबसे प्राचीन धर्मों में से एक, जैन धर्म के गहन योगदान पर रोशनी डालते हुए हमें इसकी शिक्षाओं - अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह और अनेकांतवाद - ने भारत और विश्व पर अमिट छाप छोड़ी है।"
उन्होंने कहा, "भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महात्मा गांधी द्वारा अपनाई गई अहिंसा, वैश्विक शांति आंदोलनों को प्रेरित करती रही है। जैन धर्म के शाकाहार, पशुओं के प्रति करुणा और सतत जीवन शैली के सिद्धांतों ने पर्यावरणीय उत्तरदायित्व के एक आदर्श के रूप में दुनिया भर में मान्यता प्राप्त हो रही है."
उन्होंने अपनी व्यक्तिगत यात्रा को याद करते हुए बताया, "मैंने 25 वर्ष पहले काशी की यात्रा के बाद शाकाहार अपनाया था, और यह पाया था कि इससे विनम्रता, परिपक्वता और सभी प्राणियों के प्रति प्रेम की भावना विकसित होती है।"
उपराष्ट्रपति ने कहा, "प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में प्राकृत को 'शास्त्रीय भाषा' का दर्जा देने तथा ज्ञानभारतम मिशन जैसी पहलों के माध्यम से जैन पांडुलिपियों को संरक्षित करने के लिए सरकार के प्रयासों की प्रशंसा करता हूं।"
उन्होंने तमिलनाडु में जैन धर्म की ऐतिहासिक व्यापकता और तमिल संस्कृति पर इसके व्यापक प्रभाव पर प्रकाश डाला। उन्होंने संगम और संगमोत्तर काल के दौरान तमिल साहित्य में जैन धर्म के महत्वपूर्ण योगदान का उल्लेख किया।
आचार्य हंसरत्न सूरीश्वरजी महाराज एक श्रद्धेय जैन मुनि हैं जो अपनी आध्यात्मिक साधना और दीर्घकालिक तप साधना के लिए जाने जाते हैं। महापर्णा उनके 180 दिनों के उपवास का औपचारिक समापन है, जिसे उन्होंने आठवीं बार किया है, जो जैन धर्म के सिद्धांतों और नैतिक मूल्यों के प्रसार के प्रति उनकी भक्ति, अनुशासन और प्रतिबद्धता को दर्शाता है।