'हिंदू भारत के लिए जिम्मेदार हैं', बेंगलुरु में मोहन भागवत का बड़ा बयान; बताया RSS का टारगेट

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने बेंगलुरु में एक व्याख्यान दिया, जहां उन्होंने कहा हिंदू समाज को सत्ता की चाह नहीं है, बल्कि राष्ट्र के गौरव के लिए संगठित करने की है। भागवत ने कहा कि भारत में कोई अहिंदू नहीं हैं, सभी एक ही पूर्वजों के वंशज हैं और देश की मूल संस्कृति हिंदू है।

भागवत ने आरएसएस को सत्ता की चाह नहीं होती बताया, वह समाज में प्रमुखता नहीं चाहता। उनके देश में, लोगों को इस पर विश्वास करना बहुत मुश्किल लगता था, लेकिन अब वे विश्वास करते हैं। उन्होंने कहा कि जब यह प्रश्न उठाया जाता है कि आरएसएस हिंदू समाज पर क्यों ध्यान केंद्रित करता है, तो इसका उत्तर यह है कि हिंदू ही भारत के लिए जिम्मेदार हैं।

भागवत ने कहा, 'भारत में वास्तव में कोई अहिंदू नहीं है और सभी मुसलमान और ईसाई एक ही पूर्वजों के वंशज हैं। शायद उन्हें यह बात पता नहीं है या उन्होंने यह बात भुला दी है।' उन्होंने कहा, 'जानबूझकर या अनजाने में, हर कोई भारतीय संस्कृति का पालन करता है, इसलिए कोई भी अहिंदू नहीं है और प्रत्येक हिंदू को यह समझना चाहिए कि वह हिंदू है, क्योंकि हिंदू होने का मतलब भारत के लिए जिम्मेदार होना है।
 
मैंने देखा है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की बातें तो अब बहुत आम हो गई हैं। मुझे लगता है कि शायद लोगों को अपने आसपास की सच्चाई से परिचित होने में थोड़ी देर लग जाए। मैंने भी कभी ऐसा नहीं कहा था, लेकिन अब जब देख रहा हूँ कि कैसे समाज बातों को पकड़ लेता है, तो लगता है कि शायद हमें सोच-विचार करने की जरूरत है।
 
मोहन भागवत की बातें सुनकर मुझे लगता है कि उनकी दृष्टिकोण में एक गहराई है, जिसे आसानी से समझ नहीं मिलती। वह बोल रहे हैं कि हमारी संस्कृति इतनी शक्तिशाली है कि यह हर किसी को अपना घर बनाती है। और जब भी कोई यह कह देता है कि मैं अहिंदू हूँ, तो उनके लिए यह एक बड़ा सवाल है। क्योंकि हमारे पास एक समृद्ध इतिहास है, जिसमें सभी नस्लों का मिलकर अपना योगदान दिया गया है। और अब जब हम इस बात पर विश्वास करते हैं कि हमारी संस्कृति इतनी शक्तिशाली है कि यह हर किसी को अपना घर बनाती है, तो मुझे लगता है कि हमें अपनी पहचान को मजबूत करने पर ध्यान देना चाहिए 🙏
 
मेरी बात है! आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत को मुझे थोड़ा अजीब लग रहा है, जैसे कि वह अपने देश के इतिहास और समाज को बदलने वाली ऐसी बातें कह रहे हैं जिन्हें सोचा नहीं जा सकता। लेकिन फिर भी, मुझे लगता है कि उनकी बातों में थोड़ा सच्चाई भी है। हमारा यह देश और उसकी संस्कृति कुछ ऐसी ही है, जहां सभी लोग एक ही पूर्वजों के वंशज हैं और इसे अपनत्व की भावना से समझना चाहिए।

लेकिन मुझे लगता है कि आरएसएस को अपने दिशा-निर्देश पर ध्यान देना चाहिए, न कि सत्ता की ओर ध्यान देना। और यह भी सच है कि हमारे देश में लोगों को एक साथ लाने के लिए कुछ ऐसा होना चाहिए जो हम सबको एकजुट करे। तो मुझे लगता है कि आरएसएस की इस बात पर ध्यान देना जरूरी है कि वह समाज में प्रमुखता नहीं चाहती, बल्कि लोगों को एक साथ लाने के लिए कुछ ऐसा करना चाहिए।
 
मुझे याद आता है मेरी बहन ने साल पहले बैंगलोर गयी थी, वहाँ उसने एक पुरानी दुकान में खाने की बात करके तीन दिन तक मेरे साथ बात की। तो भारत में वास्तव में कोई अहिंदू नहीं है? शायद सच है लेकिन हमारे समाज में बहुत ज्यादा अंतर्विवाह होती है तो यह धारणा पूरी नहीं है।
 
मुझे लगता है की ये बातें थोड़ी बहुत संवेदनशील लगती हैं 🤔। मेरा विचार है कि हमें अपनी संस्कृति और पहचान को दूसरों की सीमाओं से नहीं परिभाषित करना चाहिए। आरएसएस की ध्यान देने वाली बातों से हमें यह समझना चाहिए कि हमारे समाज में बहुत सी अलग-अलग धर्म और जातियाँ हैं और हमें इन सभी समुदायों की भावनाओं और जरूरतों को समझना चाहिए।

मुझे लगता है की मोहन भागवत जी की बात सुनकर यह महसूस होता है कि हमारे देश में कई लोग अभी भी अपने धर्म और संस्कृति को पहचान रहे हैं और उन्हें इस बात पर विश्वास करना चाहिए।
 
मेरी बात मुझे लगता है कि मोहन भागवत जी की बोली में कुछ ऐसा है जिस पर मैं सोच रहा हूँ 🤔। अगर हमारा देश हिंदू है, तो क्योंकि वह हमारा गौरव और समृद्धि का स्रोत है? 🙏 मुझे लगता है कि भागवत जी ने सही कहा, हमें अपनी पूर्वजों की बात करनी चाहिए, लेकिन फिर भी हमें यह समझना चाहिए कि हर कोई इस देश को प्यार करता है, चाहे वह हिंदू हो या नहीं। 🌈
 
बेटियों और बच्चों की शिक्षा में ध्यान देना बहुत जरूरी है, लेकिन यह तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बोलों से अलग है 🤔। भारत में वास्तव में सभी लोग एक ही पूर्वजों के वंशज हैं और हमारी संस्कृति एक ही है, तो फिर कहीं पर अहिंदू नहीं होना चाहिए 🙅‍♂️। शायद यह बात कुछ लोगों को पसंद नहीं आएगी, लेकिन सच्चाई यह है कि हमें अपनी संस्कृति और पहचान के प्रति गर्व करना चाहिए ❤️
 
मैं तो सोचता हूं की आरएसएस के नेता मोहन भागवत की बातें सबको सही नहीं लग सकती हैं। वे देश में पूरे समाज के लिए एक ही संस्कृति के माध्यम से जुड़ने की बात कर रहे हैं, परन्तु ये सच नहीं है। हमारा देश बहुत विविध है, जहां हर किसी को अपनी अपनी धर्म, भाषा और संस्कृति में जीने का अधिकार है।
 
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने बेंगलुरु में एक व्याख्यान दिया, जहां उन्होंने कहा हिंदू समाज को सत्ता की चाह नहीं है, बल्कि राष्ट्र के गौरव के लिए संगठित करने की है। 😊 तो यार, यह बात समझ आ गई है कि आरएसएस में कौन सी जिम्मेदारी है, यह क्या है? उनकी बात में लगता है कि हिंदू ही भारत के लिए जिम्मेदार हैं? 🤔 तो फिर क्यों हमारे देश में अलग-अलग धर्मों के लोग रहते हैं? कोई अहिंदू नहीं है और सभी एक ही पूर्वजों के वंशज हैं? ये बात तो सही है, लेकिन क्या हमारे देश में यह सब स्वीकार किया गया है? 🤷‍♂️

मुझे लगता है कि आरएसएस ने एक अच्छी बात कही है, लेकिन इसे सही तरीके से समझना जरूरी है। हमें अपनी संस्कृति को बचाने और बढ़ाने के लिए एक साथ मिलकर काम करना चाहिए, न कि अलग-अलग धर्मों के लोगों को अलग करके पेश करना। 🙏 तो फिर हमें आरएसएस की बातों पर विश्वास करना चाहिए या नहीं? यह तो सीधी सवाल है! 😬
 
अरे, देखो तो मोहन भागवत ने बोल दिया कि हम सभी एक ही पूर्वजों के वंशज हैं और यह तो सही है, लेकिन फिर भी कोई भी अहिंदू कहा जाता है? नहीं मानता, सब ही एक ही परिवार से। उन्हें देश की मूल संस्कृति हिंदू होने को समझाना जरूरी है। और आरएसएस को सत्ता चाहकर भी नहीं, बस समाज में प्रमुखता मानने को तैयार हैं।
 
मैंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत की बातें पढ़ी, तो बहुत अच्छा लगा 🤔। मुझे लगता है कि वे सच्चे नेता हैं, जो समाज में सामंजस्य लाने की कोशिश कर रहे हैं। उनकी बात में सच्चाई है, भारत में कोई अहिंदू नहीं हैं और हम सभी एक ही पूर्वजों के वंशज हैं। मुझे लगता है कि आरएसएस की सोच ठीक है, लेकिन मैंने कभी भी ऐसा नहीं सोचा होगा कि मैं अपनी पहचान को कोई दूसरे नाम से बताऊँगा। मैं बस एक मुंबई का लड़का हूँ, जो अपने परिवार और दोस्तों के साथ खुश रहता है। 🤗
 
बस, ये बात तो सब जानती है कि भारत में कहीं भी अहिंदू नहीं होते, यह तो शायद आरएसएस प्रमुखों का नया विचार ही है 🤔। लेकिन सच्चाई यह है कि भारतीय समाज में बहुत से लोग अपनी पहचान बताते हैं और उन्हें अहिंदू नहीं कहा जा सकता। मुझे लगता है कि आरएसएस प्रमुखों ने फिर से गलत बात कही है।
 
मुझे लगता है की ये बातें पूरे देश में सुनने को मिल रही हैं, लेकिन फिर भी बहुत से लोग इन बातों पर सवाल उठाने की इच्छा नहीं कर रहे। मेरा कहना है कि हमें अपनी समाजिक असमानताओं पर विचार करना चाहिए, और देखना चाहिए कि हम एक-दूसरे को कैसे प्रभावित करते हैं। भारत की विविधता उसकी मजबूती है, इसलिए हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हर किसी को सम्मान मिले, न कि किसी को दूसरे की तुलना में।
 
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) को पूरे देश में सत्ता की चाह नहीं थी, बल्कि उन्होंने देश को एकजुट करने और भारत की मूल संस्कृति को मजबूत बनाने का लक्ष्य है 🙏। मेरे लिए, यह बात मानने में आसान नहीं है। हमारे देश में कई तरह की समुदाय हैं और उनमें से हर एक की अपनी जरूरतें और चिंताएं होती हैं।
 
मुझे लगता है कि आरएसएस की बातें हमेशा से ही तो मुश्किल होती आ रही हैं और आज भी ऐसा ही है।

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मेरी तो यह सोचने की जरूरत है कि आरएसएस की दृष्टिकोण कैसे हिंदू समाज में प्रभाव डाल सकती है, लेकिन इस पर प्रतिक्रिया भी हमेशा से ही नकारात्मक रहती है।

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मैं चाहता हूं कि लोग समझें कि आरएसएस की बातें सुनने से पहले उनका विचार कैसे देखा जाए। आमतौर पर यह सोचा जाता है कि आरएसएस किसी भी समूह या धर्म को कमजोर करने का प्रयास करता है।

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लेकिन मेरी राय में ऐसा नहीं है, और मैं चाहता हूं कि लोग इस बारे में सोचें कि आरएसएस की दृष्टिकोण वास्तव में हिंदू समाज को मजबूत करने की कोशिश कर रही है।

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उसके अलावा, मैं चाहता हूं कि लोग समझें कि भारत में वास्तव में तो हमारे पूर्वजों ने इतनी बड़ी संस्कृति और समृद्धि बनाई थी, और आरएसएस की बातें इस बारे में जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है।

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मैं एक छोटी सी ग्राफिक बनाना चाहता हूं, जिसमें लिखा होगा: "आरएसएस: हमारी पूर्वजों की संस्कृति को मजबूत करने की दृष्टिकोण"

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भागवत जी की बात सुनकर मुझे लगता है कि आरएसएस का उद्देश्य सचमुच राष्ट्र के गौरव को बढ़ाना है, लेकिन इसके लिए हमें अपने आप को एक समृद्ध और विविध देश की भावना से जोड़ने की जरूरत है। मुझे लगता है कि अगर हमारे देश की हर धर्म या समुदाय के लोगों को एक साथ लाते हैं, तो आरएसएस की मिशन पर विश्वास करना आसान हो जाएगा।

मुझे लगता है कि भारत में हमारी समृद्ध संस्कृति और इतिहास को बढ़ावा देने के लिए हर कोई हिंदू नहीं होना चाहिए। पूरे देश में सभी के पास एक ही पूर्वजों का वंश है।

मुझे लगता है कि हमें अपने आप को भारतीय संस्कृति के अंतर्गत समेटने की जरूरत है, न कि अलग-अलग धर्म या समुदायों को अलग कर देने की।
 
बेंगलुरु में आरएसएस की बात सुनकर लगता है की यह समाज को विभाजित करने की कोशिश कर रहे हैं 🤔। कहीं भारत एक देश नहीं है, बल्कि कई धर्मों और जातियों का मिश्रण है। इसका मतलब यह नहीं है की हमें अपनी पूर्वजों को त्यागना चाहिए या हमें एक ही धर्म अपनाना चाहिए।
 
मुझे लगता है कि मोहन भागवत जी के विचार को सुनकर बहुत आश्चर्यचकित हुआ हूँ। मैं समझता हूँ कि वह आरएसएस के नेता हैं और उनके देश में जनता को एक ही धारणा होती है। लेकिन अगर हम बात कर रहे हैं तो भारत में बहुत सारे अलग-अलग धर्मों और संस्कृतियों की उपस्थिति है, और यही दिलचस्प बात है।

मुझे लगता है कि हमें अपने आप को एक हिस्से के रूप में समझने की जरूरत नहीं है, बल्कि हमें संपूर्णता के रूप में समझने की जरूरत है। अगर हम यह सोचेंगे कि मैं मुसलमान हूँ या ईसाई हूँ, तो यहाँ तक कि भारतीय होने की भी अपनी खुद की अर्थपूर्णता नहीं होगी।

मुझे लगता है कि हमें अपनी विविधता को स्वीकार करने की जरूरत है, और यही हमें एक मजबूत और समृद्ध देश बनाने में मदद करेगा। ताकि भारत में वास्तव में सभी नागरिक एक ही पूर्वजों के वंशज हों, तो शायद यह सुनिश्चित होगा कि हमारे पास एक मजबूत और समृद्ध देश हो।
 
मुझे लगा की राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत की बातों में एक खास बात है 🤔। उन्होंने कहा है कि हिंदू समाज को सत्ता की चाह नहीं है, बल्कि राष्ट्र के गौरव के लिए संगठित करने की है। मुझे लगता है की यह बहुत ही महत्वपूर्ण बात है, क्योंकि हमें अपने देश और समाज को एकजुट करने की जरूरत है। 🌟

मैं उनकी बात से सहमत हूं कि भारत में सभी लोग एक ही पूर्वजों के वंशज हैं और देश की मूल संस्कृति हिंदू है। यह बहुत ही सच्चा कहावत है - 'जग में भेदभाव नहीं है, बस हमारी ज़रूरतों के अनुसार बुनियादी बात' 🙏

मुझे उम्मीद है कि भागवत साहब की बातें नागरिकों में विश्वास और एकता की भावना को बढ़ावा देंगी। हमें अपने समाज में एकजुट होने की जरूरत है और सभी लोगों को साथ में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करने की जरूरत है। 🌈
 
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