'अब तक ग्रोथ के जिन पैरामीटर्स पर काम हुआ, उनकी वजह से...', PM मोदी ने G-20 में रखे ये प्रस्ताव

ग्रोथ के जिन पैरामीटर्स पर काम हुआ, उनकी वजह से हमारी पृथ्वी पर बहुत बड़ी आबादी संसाधनों से वंचित रह गई है, यह पहली बार ग20 शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है।

पिछले कई दशकों में, जी-20 ने वैश्विक वित्त और वैश्विक आर्थिक विकास को दिशा दी है, लेकिन विकास के ये पैरामीटर्स पर अब तक काम हुआ है, उनके कारण बहुत बड़ी आबादी संसाधनों से वंचित रह गई है।

साथ ही, प्रकृति के अति शोषण को भी बढ़ावा मिला है। अफ्रीका इसका बहुत बड़ा भुक्तभोगी है। आज जब अफ्रीका पहली बार जी-20 समिट की मेजबानी कर रहा है, तो यहां हमें विकास के पैरामीटर्स पर फिर से विचार करना चाहिए।

इसका एक रास्ता भारत की सभ्यता के मूल्यों में है और वो रास्ता इंटग्रल ह्यूमनिज्म (Integral Humanism) का है। यानि हमें मानव, समाज और प्रकृति तीनों को एक इंटिग्रेटेड होल (Integrated Whole) के रूप में देखना होगा। तभी प्रगति और प्रकृति के बीच सद्भाव संभव हो पाएगी।

दुनिया में ऐसे कई समुदाय हैं, जिन्होंने अपने पारंपरिक और पर्यावरण-संतुलित जीवनशैली (Traditional & Eco-Balanced Lifestyle) को संभाल कर रखा है। इन परंपराओं में सस्टेनिबिलिटी तो दिखती ही है, साथ ही इनमें, सांस्कृतिक ज्ञान, सामाजिक एकता और प्रकृति के प्रति गहरे सम्मान के भी दर्शन होते हैं।

भारत का प्रस्ताव है कि जी-20 के तहत एक ग्लोबल ट्रेडिशनल नॉलेज रिपोजिटरी बनाई जाए। भारत का जो, इंडियन नॉलेज सिस्टम्स इनिशिएटिव है, वो इसका आधार बन सकता है। यह वैश्विक प्लेटफॉर्म, मानवता के सामूहिक ज्ञान को भावी पीढ़ी तक पहुंचाने में मदद करेगा।
 
मैंने बहुत सोचा है कि हमारे इस विश्व में ताकत और कमजोरियों को समझना जरूरी है। अगर हमारे पैरामीटर्स पर काम किया गया है, तो यह बिल्कुल सही कहा जाता है कि बहुत से लोग संसाधनों से वंचित रह गए हैं।

मेरी राय में इसका एक बड़ा कारण है हमारी आधुनिक जीवनशैली। हम अपने दैनिक जीवन में बहुत ज्यादा ध्यान और प्रयास करते हैं ताकि हम तेजी से आगे बढ़ सकें। लेकिन इस प्रक्रिया में हम किसी भी बात पर ध्यान नहीं देते।

भारत के इंटग्रल ह्यूमनिज्म (Integral Humanism) का सिद्धांत बहुत ही अच्छा है। अगर हम इसे अपनाएं, तो मानव, समाज और प्रकृति एक-दूसरे के साथ सहयोग करेंगे।

अब दुनिया में बहुत से समुदाय हैं जो अपनी परंपराओं को बनाए रख रहे हैं। हमें भी उनकी राहों को देखना चाहिए और सीखना चाहिए।
 
मुझे लगता है कि अगर हम अपने पारंपरिक मूल्यों और पर्यावरण-संतुलित जीवनशैली को फिर से विचार करें, तो हम अपनी पृथ्वी को बचाने में सफल हो सकते हैं। जी-20 समिट का समय अच्छा है, हम यहां से कुछ नया और समग्र निकाल सकते हैं।

क्या नहीं था विकास के बारे में बात करने से पहले प्रकृति की देखभाल पर चर्चा करने का समय? आबादी बढ़ती जा रही है, लेकिन हमें यह भी समझना चाहिए कि हमारी हर क्रिया का पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ सकता है।
 
ग्रोथ के पैरामीटर्स पर ग20 ने देखा है कि हमारी पृथ्वी पर बहुत बड़ी आबादी संसाधनों से वंचित रह गई है। यह सच है, लेकिन मुझे लगता है कि हमें अपनी सभ्यता के मूल्यों में फिर से देखना होगा। इंटग्रल ह्यूमनिज्म की बात करें तो हमें मानव, समाज और प्रकृति को एक इंटिग्रेटेड होल के रूप में देखना चाहिए।
 
मुझे लगता है कि अगर हमारे पैरामीटर्स में बदलाव लाने की बात कहते हैं तो फिर हमें अपनी सभ्यता के मूल्यों पर भी विचार करना चाहिए। इंटग्रल ह्यूमनिज्म बहुत ही सही दिशा में आ रहा है। हमें मानव, समाज और प्रकृति तीनों को एक साथ लेकर चलना चाहिए।
 
अगर हम सब मिलकर इंटग्रल ह्यूमनिज्म की दिशा में काम करें, तो फिर संसाधनों का सही तरीके से वितरण हो सकता है! 🌎💡 नोटिस करो दुनिया में ऐसे कई राष्ट्र हैं जहां प्राकृतिक संसाधनों का संतुलित उपयोग करने की परंपरा है, और वहाँ भी बहुत तेजी से विकास हो रहा है! 🚀 इसके लिए हमें अपनी जड़ों में और अपने समाज में एक-दूसरे के प्रति सहयोग करना चाहिए। भारत ने अपने 'इंडियन नॉलेज सिस्टम्स इनिशिएटिव' से वैश्विक शिक्षा और ज्ञान को बढ़ावा देने में बहुत मदद की है, और अब यह ग्लोबल ट्रेडिशनल नॉलेज रिपोजिटरी बनाने की बात करना ठीक है! 📚🌈
 
मेरी राय है कि हमारी दुनिया में विकास के बारे में बहुत थोड़ा सोच-समझकर नहीं किया जाता, फिर भी आजकल कुछ लोग समझ गए हैं कि प्रगति और पर्यावरण को टालने का नाम तो मुश्किल ही नहीं बल्कि जरूरी है 🌿

मुझे लगता है कि हमें अपनी संस्कृति के मूल्यों को फिर से देखना चाहिए, जैसे कि इंटग्रल ह्यूमनिज्म। हमें समझना चाहिए कि मानव, समाज और प्रकृति तीनों को एक्स्ट्रीमली इनटिग्रेटेड होल के रूप में देखना चाहिए। तभी हम प्रगति और पर्यावरण के बीच संतुलन खोजने में सफल हो सकते हैं 🌈

आजकल, अफ्रीका जैसे देशों ने भी अपने तरीके से विकास की ओर बढ़ने का प्रयास किया है, लेकिन हमें यह समझना चाहिए कि उनकी जरूरतें और परिस्थितियां अलग-अलग हैं। इसलिए, हमें एक्स्ट्रीमली सुसज्जित और समग्र दृष्टिकोण के साथ अपनी रणनीति बनानी चाहिए 🤔
 
बिल्कुल सही कहा, भारत ने अपने सभ्यता के मूल्यों पर आधारित एक नया दिशा बनाने की जरूरत है। इंटग्रल ह्यूमनिज्म की बात करते हुए, हमें वास्तव में मानव, समाज और प्रकृति को एक साथ लेकर आ सकते हैं। लेकिन यह सोचकर भी नहीं रहें, कि हमारी वर्तमान पद्धति परिवर्तन लाने के लिए बहुत जरूरी है।

आज की पीढ़ी को समझने के लिए, हमें अपने पुराने मॉडलों से निकलना होगा। यह वैश्विक ट्रेडिशनल नॉलेज रिपोजिटरी बनाने की बात अच्छी है, लेकिन इसके लिए हमें बहुत सावधानी से काम करना होगा।
 
अगर हम जी-20 के पैरामीटर्स पर बदलाव लाने की बात करें, तो पहले अपना खुद का रास्ता बनाना ही चाहिए।
 
आज कल की युवा पीढ़ी को पता है कि हमारी पृथ्वी पर इतनी बड़ी आबादी संसाधनों से वंचित रहने का मतलब क्या है? मुझे लगता है कि हमें अपने पूर्वजों के ज्ञान और परंपराओं को फिर से देखने की जरूरत है। भारत का प्रस्ताव ग्लोबल ट्रेडिशनल नॉलेज रिपोजिटरी बनाने का बहुत अच्छा है, ताकि हम अपनी संस्कृति और परंपराओं को दुनिया भर में फैलाएं और साथ ही, प्रकृति के अति शोषण को रोक सकें।
 
मुझे लगता है कि ग्रोथ के पैरामीटर्स पर काम करने से हमारी पृथ्वी पर बहुत बड़ी आबादी संसाधनों से वंचित रह गई है। मैं समझता हूँ कि जी-20 ने वैश्विक वित्त और वैश्विक आर्थिक विकास को दिशा दी, लेकिन हमें अपनी सभ्यता के मूल्यों में फिर से विचार करना चाहिए। इंटग्रल ह्यूमनिज्म की बात करें, तो यह हमें मानव, समाज और प्रकृति को एक इंटिग्रेटेड होल के रूप में देखने की जरूरत है। ऐसे समुदायों से सबक लेते हुए, हमें अपने जीवनशैली में बदलाव लाना चाहिए। और भारत का प्रस्ताव, एक ग्लोबल ट्रेडिशनल नॉलेज रिपोजिटरी बनाने का, बहुत अच्छा है। यह वैश्विक प्लेटफॉर्म, हमारे सामूहिक ज्ञान को भविष्य की पीढ़ी तक पहुंचाएगा। लेकिन, इस पर काम करने के लिए भी हमें अपने नागरिकों को शिक्षित करना होगा, ताकि वे समझ सकें कि हमारा भविष्य कैसे बनेगा। 🤔💡
 
अगर हम ग्रोथ के ये पैरामीटर्स पर थोड़ा विचार करें, तो समझ आ रहा है कि हमारी दुनिया में बहुत बड़ी आबादी संसाधनों से वंचित रह गई है 🤯। लेकिन अगर हम भारत की सभ्यता के मूल्यों में जाएं, तो वहीं पर हमें विकास के पैरामीटर्स पर फिर से विचार करना चाहिए। 🌿

जी-20 समिट के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि हमें प्रकृति के अति शोषण को रोकने पर ध्यान देना चाहिए। और यही बात मेरे लिए सही है! 🌸

क्या हमारी दुनिया में ऐसे समुदाय नहीं हैं जिन्होंने अपने पारंपरिक और पर्यावरण-संतुलित जीवनशैली को संभाल कर रखा है? अगर हम उनसे सीखते हैं, तो फिर हम विकास के पैरामीटर्स पर बदलाव ला सकते हैं! 🌟

और भारत का ग्लोबल ट्रेडिशनल नॉलेज रिपोजिटरी का प्रस्ताव? यह वैश्विक प्लेटफॉर्म मानवता के सामूहिक ज्ञान को भविष्य की पीढ़ी तक पहुंचाने में मदद करेगा! 📚

आइए, हम इस बारे में और चर्चा करें कि हम विकास के पैरामीटर्स पर बदलाव लाने कैसे कर सकते हैं! 💬
 
मैंने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) में पढ़ाई की, और मेरे दोस्तों ने कहा है कि उन्होंने अपने परिवार की बीमारी को लेकर बहुत ज़्यादा चिंतित थे। मैंने उन्हें एक अच्छी प्रोफेशनल गाइड करने वाली फेसबुक पेज दिखाई, और अब उनकी बीमारी ठीक हो गई।
 
अरे, यह तो बहुत बड़ा मुद्दा है! हमारी दुनिया में इतनी ज्यादा लोग संसाधनों से वंचित हैं... 🤯 क्या हमें अपनी पृथ्वी पर एक्सप्लॉइट करने का सिर्फ एक रास्ता चाहिए? नहीं! हमें इसका एक नया रास्ता ढूंढना चाहिए। जैसे कि भारत ने इंटग्रल ह्यूमनिज्म की बात कही है... 🌿 पृथ्वी, मानव और समाज तीनों को एक साथ देखना चाहिए। हमें अपनी परंपराओं को भी बहाल करना चाहिए, जैसे कि अफ्रीका के विभिन्न समुदाय हैं जो सस्टेनिबिलिटी और पर्यावरण-संतुलित जीवनशैली में रह रहे हैं। हमारा प्रस्ताव बिल्कुल सही है... एक ग्लोबल ट्रेडिशनल नॉलेज रिपोजिटरी बनाने का! 📚
 
મને લાગ્યું છે કે, આપણા દેશમાં બધા જ એવા હોય છે. તેમની ગરીબી, આખું દેશ કમ્પિલ થઈ જાય છે, હોવતી નથી.

આપણે એવું ચર્ચા કરવું જોઈએ છીએ, કે ભારતની પ્રગતિ અને આસપાસના દેશોના વિકાસને જેમ જ સંબંધિત છે. અલગ રીતે, ભારતનું આ પ્રસ્તાવ અમારી આજીવક હોય.
 
दुनिया की ग्रोथ परीक्षा में हमारी पृथ्वी तो हार गई, लेकिन हमारी संस्कृति नहीं 🙅‍♂️। यह सच है कि जी-20 ने वैश्विक आर्थिक विकास को दिशा दी, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हमें प्रकृति का शोषण कर सकते हैं और संसाधनों से अन्याय कर सकते हैं। 🌎

भारत का सुझाव ग्लोबल ट्रेडिशनल नॉलेज रिपोजिटरी बनाने का है, जो वैश्विक प्लेटफॉर्म का निर्माण करेगा और मानवता के सामूहिक ज्ञान को भावी पीढ़ी तक पहुंचाएगा। लेकिन इसके लिए हमें अपने परंपराओं और संस्कृति को फिर से विचार करना होगा, ताकि हम एक इंटिग्रेटेड होल (Integrated Whole) के रूप में देख सकें। 🤝

हमें यह सीखना होगा कि प्रगति और प्रकृति के बीच सद्भाव संभव नहीं है अगर हम अपने विकास पर्यावरण को विनाशकारी बनाते हैं। हमें अपने जीवनशैली में बदलाव लाना होगा, ताकि हम एक ऐसा भविष्य दिखा सकें जहां प्रकृति और मानवता के बीच संतुलन बनाए रखा। 🌿
 
मेरा मन एक पक्का है कि हमारी तेजी से बढ़ती आबादी और विकास दर के बीच एक संतुलन बनाए रखने के लिए हमें अपने पर्यावरण और समाज को भी ध्यान में रखना चाहिए। अगर हम प्रकृति के अति शोषण को रोकने और संसाधनों को सustainably उपयोग करने पर ध्यान देते हैं तो ही हम अपने भविष्य की दिशा में सही निर्णय ले सकते हैं।

आज जब अफ्रीका जी-20 समिट की मेजबानी कर रहा है, तो यह एक अच्छा अवसर है कि हम विकास के नए परिप्रेक्ष्यों से अपने निर्णय लें। भारत का प्रस्ताव ग्लोबल ट्रेडिशनल नॉलेज रिपोजिटरी बनाने का एक अच्छा विचार है। इससे हम अपने ज्ञान और समृद्धि को दुनिया से बांटने में मदद कर सकते हैं।

लेकिन, इस प्रक्रिया में हमें धैर्य रखना होगा और हमें यह समझना चाहिए कि पारंपरिक जीवनशैली और पर्यावरण संतुलन एक दीर्घकालिक प्रयास है। 😊
 
पहले तो मुझे ये बात पसंद आयी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ग्रोथ परामीटर्स पर चर्चा की है, लेकिन फिर सोचते हुए, मुझे लगता है कि हमारे देश में इंटग्रल ह्यूमनिज्म की बात करना चाहिए। यानी, हमें अपने समाज और प्रकृति को एक साथ लेकर चलना चाहिए, तभी हमारी पृथ्वी पर विकास और प्रगति के साथ-साथ प्रकृति की रक्षा भी हो सकेगी। 🌎💚

मुझे अफ्रीका की बात करनी बहुत पसंद आयी है, वहां की जीवनशैली तो पूरी तरह से पर्यावरण-संतुलित है। हमें उनकी बात सुननी चाहिए और अपने देश में भी ऐसा बदलाव लाने का प्रयास करना चाहिए। यह एक अच्छा रास्ता हो सकता है जी-20 समिट में। 🌳💫

भारत का ये प्रस्ताव तो बहुत ही दिलचस्प है, वैश्विक प्लेटफॉर्म बनाने से हमारा ज्ञान और संसाधनों का उपयोग दुनिया भर में फैल सकता है। यह एक अच्छा तरीका हो सकता है अपनी सभ्यता के मूल्यों को दुनिया के सामने लाने का। 🌟📚
 
ग्रोथ के बारे में बात करते समय, हमें सोचना होगा कि अगर हमारी पृथ्वी पर बहुत बड़ी आबादी संसाधनों से वंचित रह गई है, तो इसका मतलब यह नहीं है कि हमारे पास अपने मूल्यों और परंपराओं को बदलने की जरूरत नहीं है। #ग्रोथकीपरमीटर्स

भारतीय सभ्यता के मूल्यों में इंटग्रल ह्यूमनिज्म (Integral Humanism) बहुत महत्वपूर्ण है, जो हमें मानव, समाज और प्रकृति को एक साथ लेकर आने की जरूरत है। #इंटग्रलह्यूमनिजम

दुनिया में ऐसे कई समुदाय हैं जिन्होंने अपने परंपरागत और पर्यावरण-संतुलित जीवनशैली को संभाल रखा है, जिससे सस्टेनिबिलिटी और सांस्कृतिक ज्ञान को दिखाई देता है। #पर्यावरणसंतुलन

भारत का प्रस्ताव ग्लोबल ट्रेडिशनल नॉलेज रिपोजिटरी बनाने का है, जिससे वैश्विक प्लेटफॉर्म मानवता के सामूहिक ज्ञान को भावी पीढ़ी तक पहुंचाएगा। #जी-20
 
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