हिंदी हैं हम शब्द शृंखला में आज का शब्द है राका, जिसका अर्थ है पूर्णिमा की रात। हरिवंशराय बच्चन की कविता- मेरा प्यार पहली बार लो तुम।
प्राण, संध्या झुक गई गिरि, ग्राम, तरु पर, उठ रहा है क्षितिज के ऊपर सिंदूरी चाँद। सूर्य जब ढलने लगा, कह गया था, मानवों, खुश हो कि दिन अब जा रहा है। श्रम की क्रूर घड़ियाँ चल रही हैं, लेकिन समय सुंदर, सुहाना आ रहा है, छा गई है शांति खेतों और वनों में।
पर प्रकृति के वक्ष की धड़कन बना-सा, दूर, अनजानी जगह पर एक पंछी मंद लेकिन मस्त स्वर से गा रहा है। औधरा की पीन पलकों पर विनिद्रित एक सपने-सा मिलन का क्षण हमारा। स्नेह के कंधे प्रतीक्षा कर रहे हैं, झुक न जाओ और देखो, उस तरु भी प्राण, संध्या झुक गई गिरि, ग्राम, तरु पर। उठ रहा है क्षितिज के ऊपर सिंदूरी चाँद मेरा प्यार पहली बार लो तुम।
इस समय हिलती नहीं है एक डाली, इस समय हिलता नहीं है एक पत्ता। यदि प्रणय जागा न होता, इस निशा में, सुप्त होती विश्व के संपूर्ण सत्ता और उसका टूटना होता असंभव। प्यार से संसार सोकर जागता है, इसलिए है प्यार की जग में महत्ता। हम किसी के हाथ में साधन बने, सृष्टि की कुछ माँग पूरी हो रही है।
हम नहीं कोई अपराध कर रहे, मत लजाओ और देखो, उस तरु भी। प्राण, रजनी भिंच गई नभ के भुजाओं में, थम गया है शीश पर निरुपम रुपहरा चाँद मेरा प्यार बारंबार लो तुम।
प्राण, संध्या झुक गई गिरि, ग्राम, तरु पर, उठ रहा है क्षितिज के ऊपर सिंदूरी चाँद। सूर्य जब ढलने लगा, कह गया था, मानवों, खुश हो कि दिन अब जा रहा है। श्रम की क्रूर घड़ियाँ चल रही हैं, लेकिन समय सुंदर, सुहाना आ रहा है, छा गई है शांति खेतों और वनों में।
पर प्रकृति के वक्ष की धड़कन बना-सा, दूर, अनजानी जगह पर एक पंछी मंद लेकिन मस्त स्वर से गा रहा है। औधरा की पीन पलकों पर विनिद्रित एक सपने-सा मिलन का क्षण हमारा। स्नेह के कंधे प्रतीक्षा कर रहे हैं, झुक न जाओ और देखो, उस तरु भी प्राण, संध्या झुक गई गिरि, ग्राम, तरु पर। उठ रहा है क्षितिज के ऊपर सिंदूरी चाँद मेरा प्यार पहली बार लो तुम।
इस समय हिलती नहीं है एक डाली, इस समय हिलता नहीं है एक पत्ता। यदि प्रणय जागा न होता, इस निशा में, सुप्त होती विश्व के संपूर्ण सत्ता और उसका टूटना होता असंभव। प्यार से संसार सोकर जागता है, इसलिए है प्यार की जग में महत्ता। हम किसी के हाथ में साधन बने, सृष्टि की कुछ माँग पूरी हो रही है।
हम नहीं कोई अपराध कर रहे, मत लजाओ और देखो, उस तरु भी। प्राण, रजनी भिंच गई नभ के भुजाओं में, थम गया है शीश पर निरुपम रुपहरा चाँद मेरा प्यार बारंबार लो तुम।