उत्तराखंड की प्राकृतिक सुंदरता और धार्मिक महत्व वाले तुंगनाथ मंदिर में हुए एक अनोखे घटनाक्रम ने देशभर के श्रद्धालुओं को आकर्षित कर लिया है। हाल ही में, इस महाकाय मंदिर के कपाट 189 दिनों बाद सुबह 11:30 बजे खुलने के बाद फिर से बंद कर दिए गए।
तुंगनाथ मंदिर, जो कि पंचकेदारों में से तीसरा केदार है, भगवान शिव को समर्पित है और इसकी उम्र लगभग 1000 वर्ष है। इस दिन की विशेषता यह थी कि बाबा तुंगनाथ की चल उत्सव विग्रह डोली मक्कूमठ स्थित मर्कटेश्वर मंदिर के लिए रवाना हो रही है, जिससे श्रद्धालुओं को छह महीनों तक वहां दर्शन करने का अवसर मिलेगा।
इस दौरान, 1.70 लाख से अधिक श्रद्धालु तुंगनाथ धाम पहुंचे, जिनमें से अधिकांश भगवान तुंगनाथ की पूजा-अर्चना करने के लिए आए हैं। मंदिर के प्रबंधक बलबीर सिंह नेगी ने बताया कि इस बार कपाट बंदी की तैयारियों में स्थानीय भक्त और पुजारियों ने परंपरा का पूर्ण पालन किया।
बाबा तुंगनाथ की डोली की यात्रा लगभग 30 किलोमीटर की होगी, जो कि दो दिनों में पूरी होगी। इसके बाद, मक्कूमठ स्थित मर्कटेश्वर मंदिर में श्रद्धालुओं का भव्य स्वागत किया जाएगा, जहां छह महीने तक शीतकालीन पूजा और दर्शन होंगे।
यह घटनाक्रम न केवल धार्मिक महत्व को दर्शाती है, बल्कि यह भारत की प्राकृतिक सुंदरता और समृद्ध संस्कृति का एक अद्भुत उदाहरण है।
तुंगनाथ मंदिर, जो कि पंचकेदारों में से तीसरा केदार है, भगवान शिव को समर्पित है और इसकी उम्र लगभग 1000 वर्ष है। इस दिन की विशेषता यह थी कि बाबा तुंगनाथ की चल उत्सव विग्रह डोली मक्कूमठ स्थित मर्कटेश्वर मंदिर के लिए रवाना हो रही है, जिससे श्रद्धालुओं को छह महीनों तक वहां दर्शन करने का अवसर मिलेगा।
इस दौरान, 1.70 लाख से अधिक श्रद्धालु तुंगनाथ धाम पहुंचे, जिनमें से अधिकांश भगवान तुंगनाथ की पूजा-अर्चना करने के लिए आए हैं। मंदिर के प्रबंधक बलबीर सिंह नेगी ने बताया कि इस बार कपाट बंदी की तैयारियों में स्थानीय भक्त और पुजारियों ने परंपरा का पूर्ण पालन किया।
बाबा तुंगनाथ की डोली की यात्रा लगभग 30 किलोमीटर की होगी, जो कि दो दिनों में पूरी होगी। इसके बाद, मक्कूमठ स्थित मर्कटेश्वर मंदिर में श्रद्धालुओं का भव्य स्वागत किया जाएगा, जहां छह महीने तक शीतकालीन पूजा और दर्शन होंगे।
यह घटनाक्रम न केवल धार्मिक महत्व को दर्शाती है, बल्कि यह भारत की प्राकृतिक सुंदरता और समृद्ध संस्कृति का एक अद्भुत उदाहरण है।